नामिक के लोग 18 किमी की दूरी तय कर पहुंचते हैं तहसील मुख्यालय मुनस्यारी

ग्रामीणों के श्रमदान से सुदूरवर्ती पहाड़ी स्थल नामिक में लगा मोबाइल टावर

बदलाव- बिर्थी फॉल के शुल्क से सुधर रही स्थानीय अर्थव्यवस्था

अस्कोट-आराकोट अभियान 2024 प्रारंभिक अस्थाई रिपोर्ट

ग्राम समाज के तालाब में तैर रहीं ट्राउट मछली

गतांक से आगे

…बिर्थी फॉल का आकर्षण अब स्थानीय अर्थव्यवस्था का रूप से ले रहा है..

गाँव में सामुदायिकता की भावना है आपस में राय-मशविरा कर निर्णय लिए जाते हैं. झरना देखने का शुल्क 20 रुपए रखा गया है. शुल्क लेने का काम महिला समूह कर रहा है. यह राशि युवतियों को दैनिक मानदेय और झरना क्षेत्र के रखरखाव और साफ़-सफाई में खर्च किया जाता है।

झरने का पानी नहरों और गूलों में बंटने के बाद भी काफी बच जाता है। इस पानी में स्थानीय युवकों ने एक स्वीमिंग पूल बनाया है, जिसका शुल्क 20 रुपए प्रति व्यक्ति है।

गाँव में मत्स्य विभाग की एक बड़ी योजना आई है, कुछ महिलाएं उसके निर्माण में लगी हैं। यहाँ ट्राउट मछली का उत्पादन होगा और जिसकी सप्लाई स्थानीय बाजारों में होगी। ग्राम समाज द्वारा किया जा रहा यह प्रयास स्थायी और पर्यावरण के अनुकूल विकसित किए जाने वाले पर्यावरण का बेहतरी उदाहरण है।

बिर्थी से बला होते हुए नामिक वाले रास्ते में रुग्वेर खर्क में फैली विशालकाय शिलाएं रॉक क्लाइंबिंग और जंगल हाइकिंग का आदर्श स्थान बन सकती हैं। जिससे इलाके में साहसिक पर्यटकों को आकर्षित कर रोजगार की संभावनाएं पैदा की जा सकती हैं।

नामिक की ओर जाने वाले इसी मार्ग पर दस हजार फीट की ऊंचाई पर धारापानी टॉप है। इसी टॉप को पार कर नामिक गांव में पहुंचा जा सकता है। नामिक के लोग आज भी 18 किमी लंबे इस मार्ग से तहसील मुख्यालय मुनस्यारी पहुंचते हैं। धारापानी टॉप से एक रास्ता नामिक और दूसरा हीरामणि ग्लेशियर को जाता है। कुछ पर्यटन कारोबारी छोटे-छोटे दलों को लेकर यहां आते हैं। धरापानी टॉप और थाला ग्वार में कैंपिंग साइट बनायी जाती है। स्थानीय ग्रामीण इस कारोबार में पोर्टर की ही भूमिका निभा पाते है।

नामिक गांव के भगवान सिंह जयमाल ने अपने गांव को बदलने और समाज के लिए काम करने का निर्णय लिया है। पिछले बीस सालों में शिक्षा मित्र से लेकर प्राइमरी और फिर जूनियर हाईस्कूल में एकल अध्यापक का दायित्व संभालकर उन्होंने अपने गांव में शिक्षण संस्था को जीवित रखा है। जयमाल कहते हैं, अपने परिवार की कीमत पर उन्होंने यहां से पलायन नहीं करने का निर्णय लिया। गांववालों को संगठित कर आंदोलन किया। अब यह विद्यालय उच्चीकृत किया गया है। इस वर्ष दो अध्यापक भी मिले हैं और इस बार भी मुझे ही स्कूल को संचालित करने का जिम्मा दिया गया है।

नामिक लंबे समय से स्कूल, अस्पताल और सड़क की बाट जो रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि, पिछले तीन चुनावों का उन्होंने बहिष्कार किया। मोबाइल टॉवर के लिए महीनों धरना दिया। गांव के लोग श्रमदान कर टावर के पोलों को गांव तक लाए। तब जाकर नेटवर्क की सुविधा मिली। लेकिन सिग्नल की दिक्कत यहां बनी हुई है।

नामिक से कीमू जाते हुए रामगंगा घाटी में विकास का विद्रूप चेहरा देखने को मिला। यहां सड़क निर्माण के लिए डायनामाइट से चट्टानों को तोड़कर मलबा सीधे नदी में डाला जा रहा था।

ऐसा ही हाल प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बन रही प्रत्येक सड़क का है। कीमू गांव के लोगों ने बताया कि, गोगिना से कीमू तक के लिए बनने वाली सड़क वर्षों पहले आधे में छोड़ दी गई। सड़क तो बनी नहीं, इससे इलाके में भूस्खलनों का नया खतरा पैदा हो गया है। कीमू से लाहुर के मार्ग पर लमतरा खरक, मथारी बुग्याल साहसिक पर्यटन की दृष्टि से अहम संभावनाओं वाले हैं। लेकिन बागेश्वर जिले के इस दूरस्थ क्षेत्र तक योजनाकारों की नजर की नहीं जाती है।

कर्मी, बदियाकोट, बोरबलड़ा, भरकांडे गांव आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा और संचार की सुविधाओं से वंचित हैं। कर्मी गांव के लोकमान सिंह कर्याल कहते हैं, मोबाइल टावर के लिए गांव वालों ने लंबे समय तक आंदोलन किया।

अपने इलाके के लिए स्वास्थ्य और संचार की सुविधाओं के लिए आवाज उठाने पर उन्हें मुकदमे झेलने पड़े। ग्रामसभा ने टावर के लिए खुद उपकरण खरीदकर मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी को उपलब्ध कराए।

श्रमदान कर पोल और उपकरण गांव तक पहुंचाए। इसके बावजूद गांव में कमजोर नेटवर्क की समस्या बनी हुई है।

क्षेत्र में पढ़े-लिखे युवा रोजगार के घटते अवसरों को लेकर चिंतित हैं। कभी सेना को अपने लिए सर्वाधिक उपयुक्त सेवा समझने वाले दानपुर के युवा अपने लिए बंद होते दरवाजों से व्यथित हैं। कभी फिर से भर्ती खुलने की आस में जंगलों में दौड़ लगाते युवाओं चेहरे में नाउम्मीदी साफ पढ़ी जा सकती है।

रोजगार के कम होते अवसरों के चलते कुछ युवाओं ने कृषि कोबऔद्यानिकी से जोड़ने का प्रयास किया है। बदियाकोट में युवाओं ने कीवी और सेब के बाग लगाने का काम शुरू किया है। लीती के अध्यापक भवान सिंह कोरंगा ने कीवी की सफल खेती कर घाटी के लोगों को इस ओर प्रेरित करने का काम किया है।

समडर, बोरबलड़ा भड़कांडे तक सड़क पहुंचने लगी है लेकिन मल्ला दानपुर के यह इलाके सड़क, संचार और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं। अधिकांश इलाकों में लोग कीड़ा जड़ी के लिए उच्च हिमालय की ओर गए थे। घरों में केवल बुजर्ग, महिलाएं और छोटे बच्चे ही थे। कीड़ा जड़ी के बारे में कोई सरकारी नीति नहीं होने के कारण इस बेशकीमती जड़ी बूंटी का अवैज्ञानिक और अवैध दोहन हो रहा है। क्षेत्र के स्कूल अध्यापकों के लिए तरस गए हैं। गर्भवती महिलाओं को सिर्फ एएनएम के सहारे छोड़ दिया गया है।

इस कारण असामान्य स्थिति में महिलाओं की जान तक चली जाती है। पर्यटन की अपार संभावनाएं समेटे मल्ला दानपुर-पैनखंडा के ये इलाके नियोजित पर्यटन से दूर हैं। पर्यटन कारोबार में कौशल विकास नहीं होने से कुकुरमुत्ते की तरह उग आए होमस्टे मात्र सब्सिडी का उपयोग करने का उपाय बनकर रह गए हैं। गंदगी से पटे कस्बे, अस्वास्थ्यकर शयन सुविधाएं, पर्यटन को लेकर हमारी सोच और व्यवसाय के रूप में विकसति करने में विफल होती दिख रही हैं।

इधर, बिर्थी से होकरा मार्ग पर पड़ने वाले मल्ला डोर गांव, ला-झेकला गांव के ठीक ऊपर बसा है। ला-झेकला गांव में 7 अगस्त 2009 को बादल फटने के बाद हुई तबाही में 38 लोगों की जान चली गई थी। इस घटना में डोर गांव को भी भारी नुकसान हुआ था। डोर तक पहुंचने का का रास्ता भूस्खलन से चकनाचूर हो चुका है।

तल्ला डोर में सड़क होने से गाँव वाले अब पुराने गाँव को छोड़कर नीचे की तरफ पलायन कर रहे हैं। डोर से सैणराथी के रास्ते में एक बड़ा पहाड़ टूटकर गिर रहा है। पूरा रास्ता खतरों से भरा है। सैणराथी के बीचों-बीच की जमीन धँस रही है। गांव के तीन तरफ लैंडस्लाइड हो रहा है और इसका वजूद खतरे में है।

होकरा में गाँव के युवक छिटपुट स्तर पर होम-स्टे, घोड़ों से दुलान आदि की संभावना वह देख रहे हैं। गांव में इंटर कॉलेज के सरहद से ही एक और लैंडस्लाइड सक्रिय हुआ है। मुख्य गाँव को खतरे से बाहर नहीं मान सकते। लीतीगांव में लोग परंपरागत बीजों के संग्रह में जुटे हैं।

गांव में ट्राउट मछली के दो बड़े सेंटर हैं। ग्रामीण इन्हें लेकर बहुत उत्साहित भी थे। यह लीती में हुआ बड़ा बदलाव माना जा सकता है। यह भी समझ आ रहा है कि कफनी और गोगिना का सड़क मार्ग होने और घने बाँज वनों की संपदा के कारण आने वाले दिनों में यहाँ पर्यटन गतिविधियाँ काफी जोर मारेंगी। यहाँ एक बड़ा कॉपरेट होटल भी कुछ समय पहले बना था।

शक्ति हिमालयाज नामक कंपनी ने ‘लीती 360’ नाम का रिसोर्ट बनाया था. रिसोर्ट के लिए अपेक्षित एकांत अधिक लोगों की आवाजाही से प्रभावित हुआ तो अब इसका रेडीमेड ढांचा रमाड़ी के जंगल में शिफ्ट हो गया है।

हालाँकि, ऐसे बड़े होटल स्थानीय लोगों के लिए लाभप्रद नहीं। इसका शेफ तक तो सिंगापुर से आता है। सामा इंटर कॉलेज के बच्चों ने भविष्य की ऐसी योजनाएं बतायीं, जो इतने दूरस्थ स्थानों में सुनने को कम ही मिलता है कोई शेफ बनना चाहता है, कोई ट्रेकिंग व्यवसाय का एक्सपर्ट तो कोई अपना उद्यान लगाना चाहता है। बच्चों ने बताया कि अग्निवीर योजना के बाद सेना में जाना बेकार है. शायद, गाँव-घरों में इस विषय पर चर्चा होती रही होगी। यह सैन्यप्रधान इलाका है।

पहाड़ के युवाओं का सेना से मोहभंग भी अच्छी निशानी तो नहीं. भराड़ी के धार पर सरयू को शक्ल देखकर काफी मायूसी हुई. यहाँ साथियों को मालूम पड़ा कि हरसिंग्याबगड़ और सोंग में लग रही जल विद्युत् परियोजना के बाद सरयू टनल में जा पहुंची है. कुमाऊं के सर्वाधिक क्षेत्र को सिंचित करने वाली नदी के हालात जानकर यात्री दल आहत हुआ।

बदियाकोट का भव्य नंदा देवी मंदिर इस क्षेत्र की संपन्नता और वास्तु कौशल का द्योतक है। मंदिर का गर्भगृह दुमंजिले में, जबकि मुख्य मंदिर नीचे है। यहाँ मुख्य द्वार का निर्माण लोहार के द्वारा निर्मित है। आम तौर पर मंदिर के मुख्य द्वार सवर्णों की मिल्कियत होते हैं। गाँव वालों ने बतया कि 80 के दशक में गाँव के ठाकुरों और दलितों के बीच विवाद हो गया था। तब से दोनों की पूजा अलग-अलग समय होती हैं।

बदियाकोट को समदर से जोड़ने वाली सड़क के निर्माण के कारण पुराना रास्ता नेस्तनाबूत हो चुका है। हिमनी गांव में विशाल चारागाह हैं। यहां सेब के बगीचे भी हैं। आलू की जबरदस्त खेती। हिमनी वाले, मैदानों को नहीं भागे। ऐसा लगता है कि, गांव में कॉपरेट फार्मिंग हो रही है। लेकिन साधारण किसानों ने यह इबारत लिखी है।

बेदिनी और अन्य बुग्यालों में लागू हुई हाईकोर्ट की नई गाइडलाइन्स के बाद स्थानीय लोगों के सामने खड़ी हो चुकी है। वाण गाँव के लोग इसकी रिट लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि रूपकुंड और बेदिनी-आली की जड़ में बसे होने पर भी वे उससे लाभान्वित नहीं हो पा रहे हैं।

पिछले दशकों में युवकों ने बड़ी मुश्किल से पर्यटन उद्योग को यहाँ स्थापित किया जा सका लेकिन अब बहुत निराशा है। वाण में 20 साल पहले दो चार दुकानें थीं लेकिन अब यह कस्बे का आकार ले चुका है। कस्बे में घर दुकान और मकान के साथ होम स्टे और होटल जुड़ चुके। यहाँ सस्ते में रहने और खाने की व्यवस्था है। मगर पानी का संकट बढ़ रहा है। बाण में भी कई जगह सक्रिय भू-स्खलन उद्घाटित हुए हैं। सड़कों के अनियोजित कटान ने आग में घी का काम किया है।

कनोल और उसके पास का गांव जबरदस्त भूस्खलन की चपेट में है। पाखी के तीस परिवारों को अन्यत्र बसाया गया है। लेकिन बहुत से मकान अभी भी खतरे की जद में हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क के लिए गलत तरीके से की गई खुदाई के कारण उनके जलस्रोत सूख गए हैं। गांव में भूस्खलन का कारण भी यह सड़क ही है…

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