गुलदार के हमलों से भयभीत लोग इंद्रमणि बडोनी की प्रतिमा के सामने बहाएंगे आंसू

विधानसभा सत्र में मुद्दा उठाने पर भी टकटकी लगाए हैं लोग

धाद संस्था ने किया लोगों से जनभागीदारी का आह्वान

अविकल उत्तराखंड

दिनेश शास्त्री

देहरादून। उत्तराखंड की कथित ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में पूरे सोलह महीने बाद मानसून सत्र चल रहा है। सत्र मात्र तीन दिन का है, बुधवार को पहला दिन शोक संवेदना और तीन विधेयक पेश करने के साथ निपट गया। अब दो दिन बचे हैं। देखना यह होगा कि पर्वतीय क्षेत्रों में मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं को निर्वाचित विधायक कितनी संवेदनशीलता से उठाते भी हैं या नहीं।

अभी दो दिन पूर्व पौड़ी जिले के रिखणीखाल में एक महिला अपने भाई को राखी बांधने गई तो मायके में गुलदार उसके बच्चे को उठा ले गया। त्यौहार के दिन हुई इस दुखद घटना ने पहाड़ के गांवों में जंगली जानवरों के आतंक की घटना ने जनसामान्य को झकझोर दिया है। सरकार, सत्ता पक्ष, विपक्ष, प्रशासन यानी किसी भी स्तर पर किसी ने न तो अफसोस जताया और न ही कोई दिलासा देने आगे आया। दरअसल यह पहाड़ के गांवों की नियति बन गया है। एक गैरसरकारी रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड की स्थापना के बाद से लेकर अब तक प्रदेश में मानव-वन्य जीव संघर्ष में 1125 से भी अधिक लोगों की जान जा चुकी हैं और इनमें सर्वाधिक जानें गुलदार ने ली हैं।

उत्तराखंड के सामाजिक सरोकारों के लिए समर्पित स्वैच्छिक संगठन धाद ने शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करने के साथ ही इस मुद्दे पर को विमर्श के केंद्र में लाने की पहल की है। धाद के पदाधिकारी तन्मय ममगाईं के अनुसार व्यवस्था में बैठे लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए कल 22 अगस्त को शाम 6 बजे घंटाघर में लोग इंद्रमणि बडोनी चौक पर एकत्र होंगे और एक बार फिर सरकार के समक्ष इस समस्या के समाधान के लिए मांगपत्र जारी कर शासन को सौंपेंगे। उन्होंने हर संवेदनशील नागरिक से इस अभियान का हिस्सा बनने की अपील की है।

गुलदार के हमले की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में निरंतर खाली हो रहे पहाड़ के गांवों को इसके लिए जिम्मेदार कतई नहीं माना जा सकता। यह तो सिस्टम की विफलता है कि गुलदार जंगल छोड़ कर आबादी का रुख कर रहा है। बताते चलें, इसी वर्ष 4 फरवरी को भी पौड़ी में ऐसी ही घटना हुई थी। यही नहीं डबरा गाँव में भी एक महिला को गुलदार ने निवाला बना डाला था। टिहरी, चमोली रुद्रप्रयाग तमाम जिलों में इस तरह की सैकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं। इस तरह की घटनाओं के बाद स्वाभाविक रूप से लोगों में आक्रोश उपजता है और कुछ दिन बाद लोग भूल जाता है और वन विभाग भी मामूली मुआवजा देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है किंतु गुलदार के हमले लगातार बढ़ते जाते हैं।

लोग धरना प्रदर्शन के साथ तमाम दरवाजे खटखटाते आ रहे हैं किंतु स्थिति में कोई निर्णायक बदलाव नहीं हुआ। इन्हीं परिस्थितियों के मद्देनजर धाद के हरेला गाँव अध्याय के साथ गुलदार के हमलों से बचाव के लिए कल सामूहिक मांगपत्र जारी करने का कार्यक्रम बनाया गया है। देखना यह है कि इस प्रकरण की गूंज विधानसभा में होती है या नहीं और अगर होती है तो कौन सा विधायक इसे उठाता है। एक तरह से कल का दिन निर्वाचित विधायकों के लिए कसौटी भी है। जनता तो उन्हें चुनने का “पुरस्कार” पा ही रही है।

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