आरटीआई कार्यकर्ता व अधिवक्ता विकेश का जिला बदर का आदेश निरस्त

कमिश्नर कोर्ट में सुनवाई के बाद जिला बदर आदेश किया रद्द

देहरादून। आरटीआई कार्यकर्ता व अधिवक्ता विकेश नेगी के छह महीने के जिला बदर सम्बन्धी डीएम के आदेश को कमिश्नर ने रद्द कर दिया।

शनिवार को कमिश्नर कोर्ट में विकेश नेगी के वकील जीसी शर्मा,अनु पंत व एस के सुन्द्रियाल ने जिला बदर की प्रशासन की कार्रवाई का तर्कसंगत विरोध किया था।

सभी दलीलें सुनने के बाद कमिश्नर विनय शंकर पांडे ने अधिवक्ता विकेश के जिला बदर की कार्रवाई को निरस्त कर दिया गया।

गौरतलब है कि लगभग 25 जुलाई को दून पुलिस की रिपोर्ट के बाद डीएम ने विकेश नेगी को छह महीने के जिला बदर किया था।

इस कार्रवाई का विभिन्न राजनीतिक दलों व संगठनों ने विरोध किया था। विकेश नेगी ने हाल ही में सैन्य धाम निर्माण में गड़बड़ी का मसला उठाया था।

देखें कमिश्नर के आदेश

न्यायालय आयुक्त, गढ़वाल मण्डल, शिविर देहरादून।

अपील संख्या 12/2024-25

अन्तर्गत धारा 6 गुण्डा नियंत्रण अधिनियम

अपीलकर्ता

श्री विकेश नेगी पुत्र स्व० सोबत सिंह नेगी, निवासी 350 वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली मार्ग, धर्मपुर, थाना नेहरू कालोनी, देहरादून हाल निवासी ग्राम जलेटी पो०ओ० नैल, जिला टिहरी गढ़वाल।

बनाम

विपक्षी

उत्तराखण्ड राज्य द्वारा कलक्टर, देहरादून।

नकल निर्णय दि०-31-8-2024

प्रश्नगत अपील जिला मजिस्ट्रेट, देहरादून द्वारा वाद संख्या-02/2023 सरकार बनाम विकेश नेगी अन्तर्गत धारा 3 (1) गुण्डा अधिनियम में पारित आदेश दिनांक 23-07-2024 के विरूद्ध योजित की गयी है।

डावा apple?

शिधिर देहराद

पक्षों के वि० अधिवक्ताओं को सुना। अपीलार्थी के वि० अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि अवर न्यायालय का निर्णय पत्रावली पर साक्ष्य एवं तथ्यों के विपरीत है। अवर न्यायालय ने तथ्यों की विवेचना सही से नहीं की। अपीलार्थी के विरूद्ध जो भी एफ.आई.आर. दर्ज दिखायी गयी है वह एक ही समुदाय द्वारा एवं अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन से सम्बन्धित है तथा अपीलार्थी उक्त विनोद कुमार, हरिजन का, अधिवक्ता है। अपीलार्थी एक आर.टी.आई एक्टिविस्ट है तथा अपीलार्थी ने राज्य को उसकी हड़पी गयी जमीन के बावत अन्य जनहित में याचिकायें उच्च न्यायालय में दायर की जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज मिलीभगत से हुई। निम्न न्यायालय ने यह तथ्य नजरन्दाज कर दिया कि थाना नेहरू कालोनी में दिनांक 01-04-2024 को उप निरीक्षक दीपक द्विवेदी रपट नं03 25 समय 13:04 बजे अपीलार्थी के विरूद्ध सूचना दर्ज करायी तथा बिना किसी सबूत के अनर्गल आरोप लगाये तथा उसी रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया है। अपीलार्थी पेशे से अधिवक्ता है तथा जिन केसों के बावत उक्त कार्यवाही की गयी है उनमें से किसी भी कैस में अपीलार्थी को गिरफ्तार नही किया गया है।

ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है कि अपीलार्थी ने ‘किसी भी व्यक्ति को रिपोर्ट लिखवाने अथवा गवाही देने से रोका हो। अपीलार्थी एक्ट धारा 2 (बी) में गुन्डा शब्द की परिभाषा में नहीं आता है। अपीलार्थी ने आर०टी०आई के अन्तर्गत पुलिस एवं आबकारी विभाग के कर्मचारियों के विरूद्ध भ्रष्टाचार से सम्बन्धित सूचना एकत्रित की थी, ये सब उसी का दुष्परिणाम है। अपीलार्थी ने पूर्व मेयर एवं वर्तमान में एक भाजपा के नेता के विरूद्ध धारा 156 (3) के अन्तर्गत वाद दायर किया था उसी के प्रतिशोध में कार्यवाही की गयी। अवर न्यायालय द्वारा इस तथ्य की भी अनदेखी की गई कि जो नोटिस अपीलार्थी को प्रेषित किया गया है वह गुण्डा एक्ट की धारा-3 में वर्णित आदेशात्मक प्राविधानों के विपरीत है नोटिस में अपीलार्थी पर पंजीकृत अभियोगों का कोई वर्णन नही किया गया, जिसके कारण अपीलार्थी द्वारा नोटिस के आधार पर ही अपना प्रत्युत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसके कारण अवर न्यायालय में वाद कार्यवाही दूषित थी। उक्त आधार पर अपील स्वीकार करने एवं आलोच्य आदेश दिनांक 23-07-2024 को अपास्त करने का अनुरोध किया गया। अपने कथनों के पक्ष में अपीलार्थी अधिवक्ता द्वारा में मा० उच्च न्यायालय, इलाहाबाद 2009 (3) एडीजे 361 (डीबी), राजकुमार दुबे बनाम राज्य व अन्य निर्णय दिनांक 16-02-2009 की रूलिंग प्रस्तुत की गई।

प्रत्युत्तर में अभियोजन अधिकारी, द्वारा कथन किया गया कि अपीलकर्ता द्वारा वर्ष 2022 से

लेकर वर्ष 2024 तक कुल 05 आपराधिक कृत्य कारित किए गए है। इस कारण से अपीलकर्ता एक अभ्यस्तः

अपराधी है जो अध्याय 16 एवं 17 के अपराध अभ्यस्तः कारित करता है। मु०अ०सं० 18/2022, धारा

447/353/186/504/506 भादवि में अपीलकर्ता व अन्य द्वारा दिनाक 22/01/2022 को अतिकृमण हटाने

वाले लोक सेवकों के विरूद्ध आपराधिक बल का प्रयोग किया गया था। अपीलकर्ता द्वारा मौके पर मौजूद अवैध

कब्जा धारकों को उसका कर लोक सेवकों के साथ गाली गलौज और धक्का-मुक्की कर सरकारी कार्य में बाधा उत्पन्न किया गया था। मु0अ0सं0 173/2022, धारा 147/504/506/427 भादवि मे अपीलकर्ता द्वारा वादी की भूमि पर कब्जा करने की नियत से मौके पर मौजूद गार्ड के साथ मार-पीट, गाली-गलौज एवं जान से मारने की धमकी दी गई। जिस कारण अपीलार्थी से भय व्याप्त है। मु0अ0सं0 221/2022, धारा 147/504/506/427 भादवि में अपीलकर्ता द्वारा वादी की भूमि पर कब्जा करने की नियत से मौके पर मौजूद गार्ड के साथ मार-पीट, गाली-गलौज एवं जान से मारने की धमकी दी गई। जिस कारण से वादी को भय व्याप्त है। इसके पूर्व भी अपीलकर्ता के विरूद्ध वादी द्वारा अभियोग पंजीकृत किया गया था। मु०अ०सं० 78/2024, धारा 42/460/120 बी भादवि में अपीलकर्ता के द्वारा भूमि को अवैध विक्रय किया गया एवं विक्रय प्रतिफल वापस ना करते हुए धमकी दी गई थी। मु०अ०सं० 139/2024, धारा 420/467/468/471/506/120बी भादवि मे वादी ने कथन किया है कि अपीलकर्ता द्वारा कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर धन हड़प लिए। अपीलकर्ता द्वारा कारित अपराध मानव जीवन एवं संपत्ति के विरूद्ध कारत अपराध की श्रेणी में आता है। अपीलकर्ता के इस कृत्य से समाज के आम जन मानस मे भय का महौल है। उक्त के अतिरिक्त गुण्डा अधिनियम के तहस कार्यवाही के विचाराधीन होने की अवधि में अपीलकर्ता के विरूद्ध दिनांक 21-07-2024 को थाना नेहरू कॉलोनी में मु0अ0सं0 235/2024 अंतर्गत धारा 323/504/506/420/467/468/471 भादवि तथा दिनांक 22-07-2024 को थाना नेहरू कोलोनी में NCR No.06/2024 अन्तर्गत धारा 224 B.N.S दर्ज किया गया है। अपीलार्थी अभ्यस्तः अपराधी है और अभ्यस्तः अपराध कारित करता है। अपीलकर्ता द्वारा आम लोगों की भूमि पर अवैध कब्जा करने के अपराध कारित किए गए है। जिससे कि आम जन मानस मे भय व्याप्त है। जिसके कारण न्यायालय जिला मजिस्ट्रेट, देहरादून द्वारा आदेश दिनांक 23-07-2024 पारित किया गया है, जो कि विधि सम्मत है और अपील निरस्त होने योग्य है।

दोनों पक्षों को सुना गया तथा अवर न्यायालय की पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रकरण के अवलोकन से विदित है कि थानाध्यक्ष, थाना नेहरू कालोनी, देहरादून अपीलकर्ता के विरूद्ध धारा 3(1) गुंडा अधिनियम में चालानी रिपोर्ट वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, देहरादून के माध्यम से प्रेषित की गई, जिसमें अपीलार्थी को शातिर किस्म का अपराधी, जपनद क्षेत्रान्तर्गत बल्वा / जान से मारने की धमकी देने व अवैध रूप से भूमि पर कब्जा करने व धोखाधड़ी जैसे जघन्य अपराध करने का अभ्यत, अपने आप को एड़वोंकेट बाताकर अपने कार्यों में बाधा पहुंचाने वाले स्थानीय व्यक्तियों व आम जनता को डराता धमकाना, आपराधिक किया कलापो में आम जनता में नाम से भय व्याप्त और अपीलार्थी के डर से इसके विरूद्ध शिकायत / रिपोर्ट लिखाने व गवाही देने को कोई तैयार नही होना तथा अपीलार्थी के कृत्यों जन मानस में भय व्याप्त होना व्यक्त किया गया तथा अपीलार्थी के विरूद्ध निम्नवत आपराधिक इतिहास को दर्शाया गयाः-

1-मु०अ०सं० 18/2022, धारा 447/353/186/504/506 भादवि चालानी थाना नेहरू कॉलोनी

APIRiRe

आयुक्त, गढ़वाल

2

  • शिविर देहरादून

2-मु0अ0सं0 173/2022, धारा 147/504/506/427 भादवि चालानी थाना नेहरू कॉलोनी 3-मु0अ0सं0 211/2022, धारा 147/504/506/427 भादवि चालानी थाना नेहरू कॉलोनी

  • मु0अ0सं0 78/2024, धारा 420/406/120बी भादवि चालानी थाना डोईवाला 4

5- मु०अ०सं० 139/2024, धारा 420/467/468/471/506/120बी भादवि चालानी थाना रायपुर उक्त के आधार पर न्यायालय जिला मजिस्ट्रेट, देहरादून मे वाद संख्या 02/2024 पंजीकृत किया गया था जिमसें न्यायालय जिला मजिस्ट्रेट, देहरादून द्वारा अपीलकर्ता के विरूद्ध 6 मास हेतु जनपद देहरादून से निष्कासन का आदेश पारित किया गया है। अपीलार्थी के वि० अधिवक्ता द्वारा मुख्य तर्क किया गया कि जो नोटिस अपीलार्थी को प्रेषित किया गया है वह गुण्डा एक्ट की धारा-3 में वर्णित आदेशात्मक प्राविधानों के विपरीत है नोटिस में अपीलार्थी पर पंजीकृत अभियोगों की कोई वर्णन नही किया गया, जिसके कारण अवर न्यायालय में वाद कार्यवाही दूषित थी। चालानी रिपोर्ट में 05 अभियोग दर्ज होना कहा गया लेकिन उनमें से किसी भी अभियोग में अपीलार्थी सिद्धदोष नही हुआ है और न ही अपीलार्थी द्वारा किसी को रिपोर्ट लिखावाने से धमकाया या किसी को गवाही देने हेतु रोका गया है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, देहरादून/थानाध्यक्ष, नेहरू

कॉलोनी देहरादून द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में में बाधा पहुंचाने वाले स्थानीय व्यक्तियों व आम जनता को डराता धमकाना, आपराधिक किया कलापो में आम जनता में नाम से भय व्याप्त और अपीलार्थी के डर से इसके विरूद्ध शिकायत / रिपोर्ट लिखाने व गवाही देने को कोई तैयार नही होना तथा अपीलार्थी के कृत्यों जन मानस में भय व्याप्त होना व्यक्त किया गया, लेकिन उक्त के सम्बंध में कोई Material साक्ष्य अभियोजन पक्ष द्वारा अवर न्यायालय की पत्रावली पर उपलब्ध नही कराये गये है। अवर न्यायालय द्वारा मात्र रिपोर्ट के आधार पर अपीलार्थी को गुण्डा नियंत्रण अधिनियम की धारा 3 (1) के तहत नोटिस निर्गत किया गया वह धारा-3 में वर्णित आदेशात्मक प्राविधानों के विरूद्ध निर्गत किया गया है, जो कि प्रारूप फार्म ए के Sub Clause (d) में वर्णित किसी भी Material, Alligation वर्णित नही किया गया। इस संबंध में मा० उच्च न्यायालय, इलाहाबाद 2009 (3) एडीजे 361 (डीबी), राजकुमार दुबे बनाम राज्य व अन्य निर्णय दिनांक 16-02-2009 में व्यवस्था दी गई है कि U.P Control of Goondas Act, 1970-Section 3-Notice-Validity of-Contention that impugned notice is bad in law-As it does not contain general nature of material allegations- Expression ‘material allegations’ not defined in Act-Dictionary meaning’ Material’ means ‘important’ and ‘essential’- Notice under Section 3(1) of Act should contain essentioal assertion- Impugned notice, contains crime numbers and sections- And whethre adccused had been charge-sheeted etc.-No assertion of requried broad particulars in notice in each of cases- Impugned notice set aside. [Paras 5 and 6]

गढ़वाल शिविर देहरादूज

उक्त न्यायिक दृष्टांत प्रश्नगत प्रकरण पर प्रासंगिक है। गुण्डा नियंत्रण अधिनियम की धारा धारा 2 (ख) के अन्तर्गत भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 या धारा 153ख या धारा 294 या उक्त संहिता के अध्याय 15, 16, 17 व अध्याय 22 के अधीन दण्डनीय अपराध को अभ्यस्ततः कारित करता है, या कारित करने का प्रयास करता है, या कारित करने के लिये दुष्प्रेरित करता है। अपीलार्थी अपराध कारित करने हेतु अभ्यस्त हो या उसके द्वारा आदतन एक ही प्रकृति का अपराध बार-बार किया जा रहा हो से अभयस्तः माना जा • सकता है, जबकि प्रश्नगत प्रकरण के अवलोकन से अपीलार्थी पर पंजीकृत अभियोग किसी में भी सक्षम न्यायालय द्वारा उसे सिद्धदोष नही घोषित किया गया है तथा और अपीलार्थी के डर से इसके विरूद्ध शिकायत/रिपोर्ट लिखाने व गवाही देने को कोई तैयार नही होना तथा अपीलार्थी के किया कलापों व कृत्यों जन मानस में भय व्याप्त हो के सम्बंध में कोई Material साक्ष्य अवर न्यायालय की पत्रावली पर उपलब्ध नही है और न ही इस न्यायालय के समक्ष अभियोजन पक्ष प्रस्तुत कर पाया है मात्र बीट रिपोर्ट के आधार पर अपीलार्थी को गुण्डा नियंत्रण अधिनियम के तहत जनपद से निष्कासन किया जाना उचित नही है। इस प्रकार स्पष्ट है किसी भी पंजीकृत अपराध में अपीलार्थी को किसी सक्षम न्यायालय द्वारा सिद्धदोष नही किया गया है, जिसके कारण गुण्डा नियंत्रण अधिनियम की धारा धारा 2 (ख) से अपीलार्थी आच्छादित नही होता है। ऐसी स्थिति में अपील बलयुक्त होने के कारण स्वीकारणीय है।

आदेश

उपरोक्त विवेचना के आलोक में अपील बलयुक्त होने के कारण स्वीकार की जाती है। अवर न्यायालय का आलोच्य आदेश दिनांक 23-07-2024 निरस्त किया जाता है। आदेश की प्रति सहित अवर न्यायालय की पत्रावली वापस लौटायी जाय। इस न्यायालय की पत्रावली बाद आवश्यक कार्यवाही संचित हो।

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