नेगीदा ने सबसे ज्यादा किया है इस आवाज का इस्तेमाल
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वरिष्ठ पत्रकार विपिन बनियाल की कलम से
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा की आवाज तो आप अलग से पहचान लेते होंगे ना। जी हां, वहीं सुषमा श्रेष्ठ जिन्हें पहले हमने हिंदी सिनेमा में बाल कलाकारों के लिए पार्श्व गायन करते देखा और अब पूर्णिमा के नाम से मस्त अंदाज में गाते हुए देखते हैं। तेरा मुझ से है पहले का नाता कोई या फिर पापा को मम्मी से मम्मी को पापा से प्यार है, जैसे गानों में बच्चों की आवाज सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा ही बनी। सिर्फ पूर्णिमा बनकर गाना शुरू किया, तो फिर सोना कितना सोना है, चने के खेेत में, शाम है धुंआ धुंआ जैसे तमाम गाने उनकी आवाज में लोकप्रिय हुए। मगर हम यहां बात कर रहे हैं खास तौर पर उत्तराखंडी गढ़वाली फिल्मी गीतों में सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा की आवाज, उनके योगदान की।
एक अनुमान के अनुसार, बॉलीवुड की किसी गायिका ने सबसे ज्यादा उत्तराखंडी गढ़वाली गाने यदि गाए होंगे, तो वह सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा ही है। उनके गाए उत्तराखंडी गढ़वाली गानों की सूची इतनी लंबी है कि किसे शामिल करें, किसे नहीं, समझ से परे है। फिर भी कई गाने हैं उनके। जैसे-तिल चिट्ठी किले नी भेजी, धारी कलिंका माई कब होली दैणी, अपणी तौं सरमीली आंख्यू न, दिखण दया जरा, जब बिटी जनम ल्याई, कबि सुख नी राई वगैरह, वगैरह।
दरअसल, सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा का उत्तराखंड से पहला परिचय नरेंद्र सिंह नेगी ने वर्ष 1986 में कराया था, जबकि उन्होंने घरजवै फिल्म के लिए उनकी आवाज का इस्तेमाल किया। इस दौरान नेगीदा को सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा की आवाज, उनका पेशेवराना अंदाज और सबसे ज्यादा गढ़वाली शब्दों के उच्चारण को लेकर उनकी सहजता ने प्रभावित किया। इसके बाद, उन्होंने बंटवारू, बेटी ब्वारी, कौथिग, छम घुंघरू, चक्रचाल, मेरी गंगा होली त मैमूु आली जैसी तमाम फिल्मों में सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा की आवाज का प्रयोग किया। ज्यादातर गाने हिट साबित हुए। धुन पहाड़ की यू ट्यूब चैनल के साथ बातचीत में नेगीदा ने खुद सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा से जुड़ी इन खूबियों का जिक्र किया है। सुषमा श्रेष्ठ पूर्णिमा से संबंधित उत्तराखंडी गढ़वाली फिल्मी गानों से जुड़ी तमाम बातों को विस्तार से जानने के लिए धुन पहाड़ की यू ट्यूब चैनल के वीडियो को जरूर देखें।
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