स्मृति शेष- मुंबई में रहकर दिल में गांव बसता था
फिल्म समीक्षक दीप भट्ट ने कुछ यूं याद किया ‘बीरू’ को
अविकल उत्तराखंड
दोस्तो, भारतीय फिल्मोद्योग के ‘हीमैन’ यानी धर्मेन्द्र के निधन की खबर बहुत आहत करने वाली है। अभी कुछ समय पहले ही जब उनके निधन की खबर तमाम टीवी चैनल्स और प्रिंट मीडिया में प्रसारित हुई तो वे आधिकारिक नहीं थीं तब मैंने उनकी दीर्घायु की कामना करते हुए एक आलेख जनसंदेश टाइम्स के लिए निश्छल, भावुक और खिलंदड़े धर्मेंद्र शीर्षक से लिखा था।
मुझे उम्मीद थी कि वे पूरी तरह स्वस्थ होकर आठ दिसंबर को अपना नब्बेवां जन्मदिन मनाएंगे। यह उनके परिवार और करोड़ों प्रशंसकों की भी इच्छा थी मगर ऐसा नहीं हो सका और आज़ उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
मेरी धरम जी से कभी व्यक्तिगत मुलाकात नहीं हो पाई पर एक अजीब संयोग बना कि 17 मई 2007 को जब मैं देव आनंद साहब के इंटरव्यू के लिए उनके बांद्रा पाली हिल जिगजैग रोड स्थित आनंद रिकार्डिंग स्टूडियो पहुंचा तो देव साहब के पीए मोहन चूड़ीवाला ने मुझे सूचना दी कि आज फिल्मों की बड़ी हस्ती उनसे मुलाकात के लिए पहुंचने वाली है ।

इसलिए देव साहब ने आपको 22 मई 2007 को शाम पांच सवा पांच बजे इंटरव्यू के लिए बुलाया है। चूड़ीवाला ने कहा रुक जाइए आप कम से कम उस हस्ती को देखते हुए जाइए। एक दो सेकंड बाद देव साहब के पेंट हाउस से पहले निर्माता निर्देशक बीआर इशारा साहब निकले तो मैंने उन्हें आवाज लगाकर नमस्कार किया। वे मेरे पहले से मित्र थे। उसके कुछ देर बाद ही धरम जी अपने दोनों बेटों सन्नी और बाबी देओल के साथ उतरे और सीधे पेंट हाउस की सीढ़ियां चढ़ते हुए गये। उनका वह पहला और आखिरी दीदार था जो मैंने किया। जिन्दगी में कई मलाल रह जाते हैं। अभिनेताओं की जिन्दगी में भी ऐसा होता है और आम आदमी की जिन्दगी में भी। मुंबई में सभी महान अदाकारों से मिला और उनके इंटरव्यूज किए पर उस भाग दौड़ में धरम जी से मिलने का कभी सुयोग नहीं बना। पर उनसे फिल्मी पर्दे का नाता तो बना ही रहा। उनकी जिस फिल्म का मैं सबसे ज्यादा प्रशंसक हूं वह है सत्यकाम। हृषिदा खुद इस फिल्म के सबसे बड़े प्रशंसक थे। फिल्म उनके निर्देशन में ही बनी थी।
उन्होंने मुझे एक इंटरव्यू के दौरान कहा भी था कि मेरी सर्वश्रेष्ठ फिल्म सत्यकाम है। मैंने कहा जिसमें धर्मेन्द्र थे, वे बोले हां। तब तक सत्यकाम मैंने नहीं देखी थी।
उन्होंने बताया था कि जब उन्होंने सत्यकाम की पटकथा दादा मुनि यानी अशोक कुमार को सुनाई थी तो उन्होंने कहा कि एक ईमानदार आदमी है। जो अपनी ईमानदारी के कारण कई नौकरियां छोड़ दिया और बेहद तंगी का जीवन जिया और एक दिन ब्लड कैंसर से मर गया ऐसी फिल्म को देखने कौन आएगा। हम यह फिल्म नहीं करेगा।

हृषिदा ने बताया था कि उन्होंने दादा मुनि से कहा तुम्हें कैंसर से मारने में दुःख हो रहा है तो डायरिया से मार देते हैं। मरना तो है एक दिन। तुम यह क्यों नहीं सोचता कि एक आदमी ईमानदार था। कई नौकरियां छोड़ा और एक दिन मर गया पर अपने मूल्यों से कभी नहीं डिगा ।
पब्लिक फिल्म देखने के बाद इस संदेश को क्यों नहीं अपने साथ ले जाना चाहेगी। खैर दादा मुनि फिल्म करने के लिए राज़ी हुए। सत्यकाम निकालने की जिम्मेदारी उन्हीं की थी पर उन सख्त मानदंडों पर खरा उतरने की जिम्मेदारी हृषिदा ने धर्मेंद्र के कंधों पर डाली थी।
कहने को फिल्म में संजीव कुमार साहब भी थे पर असल इम्तिहान धर्मेन्द्र ने ही दिया था। मैं समझता हूं यह उनके जीवन का सबसे कठिन रोल था जिसे उन्होंने इस शिद्दत से निभाया कि यह दर्शकों के दिल में उतर गया। यह और बात है कि फिल्म चली नहीं थी उस वक्त पर धर्मेन्द्र की जिंदगी की यह सबसे सार्थक फिल्म है। उन्होंने शोला और शबनम, काजल, दिल भी तेरा हम भी तेरे, चुपके-चुपके, अनुपमा, चरस, मेरा गांव मेरा देश, दोस्त, शोले, फूल और पत्थर, समाधि, जीवन मृत्यु और प्रतिज्ञा, ब्लैकमेल, मेरा नाम जोकर और लोफर जैसी अनगिनत फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाई और क्या खूब निभाईं। वे सही मायनों में जनता के एक्टर थे। उन्होंने जनता के दिलों पर राज किया।
वर्षों पहले जब मैं नामचीन अभिनेत्री शर्मिला टैगोर जी का इंटरव्यू कर रहा था तो उन्होंने धर्मेंद्र को याद करते हुए कहा था कि एक जमाने से मैं उससे नहीं मिली पर वह शहर का आदमी तो हो नहीं सकता वह गांव का आदमी ही रहेगा और सचमुच वे गांव के ही आदमी रहे। मुंबई से कुछ दूरी पर उनका फार्महाउस था और वे वहां सचमुच गांव का ही जीवन जी रहे थे। वे वास्तव में बहुत भोले, भावुक और खिलंदड़े मिजाज के व्यक्ति थे। जनता के साथ जिस तरह वे फार्म हाउस से रोज़ कोई न कोई वीडियो बनाकर अपनी मुहब्बत का इज़हार करते रहते थे वैसे आज़ कितने अभिनेता हैं। आज़ भले ही वे इस संसार में नहीं हैं ज़माना उनकी दरियादिली और उनके सिनेमाई योगदान के लिए उन्हें याद रखेगा। मेरा उन्हें सादर नमन और शोक-संतप्त परिवार के प्रति शोक संवेदना।

