रामनगर के गांव में प्रशासन ने मकानों पर चलाया बुलडोजर

पूछड़ी गांव में बैरिकेडिंग, जीरो जोन घोषित,आंदोलनकारी गिरफ्तार

विभिन्न जन संगठनों ने कहा, लोगों को बेघर करना बेहद निंदनीय

अविकल उत्तराखंड

रामनगर। हाईकोर्ट से स्टे के बावजूद नैनीताल रामनगर तहसील में बसे पूछड़ी गांव में पुलिस प्रशासन एवं वन विभाग ने मकानों को ध्वस्त करने की कार्रवाई की।बुलडोज़र चला कर पचास से ज्यादा घरों को तोडा गया ।
शांतिपूर्ण तरीकों से विरोध कर रहे आंदोलनकारियों को भी गिरफ्तार किया गया है

उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी; समाजवादी लोक मंच के मुनीश कुमार, गिरीश आर्य, ललित उप्रेती, महेश जोशी और अन्य साथी के साथ भुवन, आसिफ, सुनील पर्णवाल, तुलसी छिम्बाल, सरस्वती जोशी, गीता और दीपक तिवारी अभी पुलिस हिरासत में है। इसके आलावा कुछ गांववासी भी हिरासत में हैं। गांववालों के साथ मारपीट की भी खबर है

हम उत्तराखंड सरकार को याद दिलाना चाहेंगे कि जिस राज्य में सत्तर प्रतिशत से ज्यादा ज़मीन वन ज़मीन है, उस राज्य में लगभग बीस साल बीतने के बावजूद वन अधिकार कानून पर अमल ही न करना जनता के बुनियादी अधिकारों पर हमला है।

राजीव लोचन साह, अध्यक्ष, उत्तराखंड लोक वाहिनी, विनोद बडोनी, शंकर गोपाल, राजेंद्र शाह – चेतना आंदोलन, तरुण जोशी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा, हीरा जंगपांगी,  महिला किसान अधिकार मंच, भुवन पाठक, अजय जोशी एवं शंकर बर्थवाल, सद्भावना समिति उत्तराखंड, इस्लाम हुसैन, उत्तराखंड सर्वोदय मंडल, नरेश नौडियाल, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी
व हेमा जोशी, सामाजिक कार्यकर्ता ने प्रशासन व सरकार से कार्रवाई को रोकने की मांग की है।

विभिन्न संगठनों ने
गिरफ्तार लोगों की तत्काल रिहाई कराने के साथ साथ हम इस गैर क़ानूनी बेदखली प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने के लिए मांग की । संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने कहा है कि जिनके घरों को तोड़े गए या जिनकी सम्पतियों या खेती पर क्षति हुई है, उन लोगों को मुआवज़ा दिया जाये और ज़िम्मेदार अधिकारीयों पर विभागीय एवं क़ानूनी कार्यवाही की जाये।  

संजय रावत की फेसबुक वॉल से साभार

नैनीताल जिले के रामनगर तहसील में बसे पूछड़ी गांव में पिछले वर्ष वन अधिकार कानून 2006 के अन्तर्गत ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति का गठन हो चुका है। कानून कहता है कि इस समिति के गठन होने के बाद, भूमि पर अधिकार की प्रक्रिया पूर्ण होने से पहले किसी को भी उसके घर और जमीन से बेदखल नहीं किया जा सकता है।

पूछड़ी क्षेत्र में 39 लोगों को इसी भूमि पर हाईकोर्ट से स्टे मिला हुआ है । जिनको बेदखल किया जा रहा है, उनलोगों की भूमि भी इसी प्रकृति के होने के कारण कानूनन उनको नहीं हटाया जा सकता है। 1966 में पूछड़ी क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया था। किसी भी क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र बनाने की वन अधिनियम 1927 में एक प्रक्रिया है जिसके तहत एक बंदोबस्त अधिकारी की नियुक्ति की जाती है। सूचना के अधिकार में जब बंदोबस्त अधिकारी की रिपोर्ट मांगी गई तो वन विभाग ने राज्य सूचना आयोग में स्टांप पर लिखकर दिया कि हमारे पास इसके दस्तावेज नहीं है।

इसके बावजूद भी पूछड़ी गांव में चारों तरफ से बैरिकेडिंग कर इसे जीरो जोन घोषित कर दिया है यहां पर किसी को भी और मीडिया को भी आने की इजाजत नहीं है। जन संगठनों के नेताओं और कार्यकर्ताओं समेत 29 लोगों शांति भंग का आरोपित बताकर उप जिलाधिकारी द्वारा नोटिस दिए गए हैं तथा दर्जनों लोगों को हिरासत में ले लिया गया है।
जिन लोगों को हाईकोर्ट से स्टे मिले हुए हैं वन व जिला प्रशासन ने उनकी भूमि को भी छीन लिया गया है । जिन लोगों को वन विभाग द्वारा जबाब देने के लिए नोटिस दिए गए हैं, उनको भी हटाया जा रहा है।

ग्राम स्तरीय वन अधिकार समिति की अध्यक्ष धना तिवारी व सदस्य सीमा तिवारी ने वन प्रशासन को जब बताया कि उन्हें कोर्ट से स्टे मिला हुआ है तो उन्हें तथा उनके परिवार को मारा पीटा गया तथा उन्हें हिरासत में ले लिया गया है। वे अब कहां है, इसकी कोई जानकारी नहीं है।

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