बदरीनाथ-मंगलौर की हार व तीरथ की बरसाती फुहार से भाजपा नेतृत्व को मिला नया ज्ञान

..तो अब भाजपा अपनी प्रजाति के चावलों का बनाएगी पुलाव

जनता को नहीं भायी बिना खुशबू के आयातित चावलों की खिचड़ी

निकाय व विधानसभा चुनाव में भाजपा बाहरी नेताओं पर नहीं लेगी रिस्क

अविकल थपलियाल की खास रिपोर्ट

देहरादून। दल-बदल व बाहरी प्रत्याशी थोप कर बदरीनाथ व मंगलौर में मुंह की खा चुकी भाजपा अब अपने ही चावलों का पुलाव बनाएगी। बाहर से मंगाए गए चावलों के स्वादहीन व गंधहीन निकलने के बाद भाजपा हाईकमान अब घर के चावलों को हथेली में उलट पलट कर देखने लगी है।

हालिया उपचुनाव में जनता के बाहरी चावलों पर नाक भौं सिकोड़ने के बाद भाजपा के बड़े रणनीतिकार गहरे सदमे में हैं। लोकसभा चुनाव में 400 पार का नारा देने के बाद थोक के भाव में कांग्रेसी व अन्य दलों से नेता-कार्यकर्ता भाजपा में शामिल करवाये गए थे।

इनमें बदरीनाथ सीट पर कांग्रेस छोड़ कर आये विधायक राजेन्द्र सिंह भण्डारी की करारी हार सभी देख चुके हैं। भंडारी को कांग्रेस के टिकट पहली बार लड़े अनुभवहीन लखपत बुटोला ने जमीन दिखा दी।

चूंकि, कांग्रेस में रहते हुए राजेन्द्र भंडारी ने मोदी-शाह समेत भाजपा को समय समय पर कई बार गरियाया। लिहाजा, भंडारी की हार से सबसे अधिक खुश भाजपा के निष्ठावान नेता-कार्यकर्ता ही दिख रहे हैं ।

हालांकि,मंगलौर सीट भाजपा कभी जीती ही नहीं थी। लेकिन इस बार भाजपा नेतृत्व ने बाहरी प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना को उपचुनाव में उतार कर सभी को चौंका दिया। भाजपा प्रत्याशी भड़ाना ने पानी की तरह पैसा बहाया। पुलिस-प्रशासन के सहयोग का गम्भीर आरोप भी लगा। बावजूद इसके कांग्रेस प्रत्याशी काजी निजामुददीन ने थोपे गए प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना को बाहर का रास्ता दिखा दिया।

हालिया, बदरीनाथ व मंगलौर उपचुनाव के बाहरी (भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए भी) व थोपे प्रत्याशियों की वजह से सत्तारूढ़ भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाई। जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को बदरीनाथ सीट पर 8 हजार की लीड मिली थी। इससे लग रहा था कि कांग्रेस से भाजपा में आये भंडारी आसानी से उपचुनाव जीत जाएंगे।लेकिन एक महीने बाद हुए उपचुनाव में जनता ने 2022 में जीते भंडारी पर 2024 में पूर्व विधायक का टैग लगा दिया।

इन दोनों उपचुनाव के परिणाम से उन बड़े-छोटे नेताओं की भी कलई खुल गयी। और उनके जनाधार का भी खुलासा हो गया। ताजी हार के बाद भाजपा में बाहरी व थोपे नेता-कार्यकर्ताओं के विरोध में उठी आवाज से पार्टी में भूकंप की स्थिति है।

पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत ने हालिया भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में बाहरी व थोपे प्रत्याशियों को लेकर पार्टी नेतृत्व को दो टूक सुना दी। तीरथ की इस बेबाकी पर भाजपा का एक बड़ा हिस्सा प्रसन्न मुद्रा में दिख रहा है। और उन नेताओं को कठघरे में खड़ा करने से नहीं चूक रहा जिन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए भाजपा को ‘कांग्रेस मय’ बना दिया।

कई वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं के उठ रहे ज्वार व चुनावी हार के बाद भाजपा नेतृत्व आने वाले केदारनाथ उपचुनाव, निकाय व 2027 के विधानसभा चुनाव में बाहर से आये राजनीतिक व्यक्तित्वों पर दांव खेलने से पहले सौ बार सोचेगी।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस व अन्य दलों से रातों रात भाजपा भगवे में रंगे नेता भी सन्निपात की स्थिति में हैं। इन नेताओं के कहीं भी एडजस्टमेंट पर भाजपा के नेता भारी बवाल मचाएंगे।

लिहाजा, अभी तक अपने हिसाब से प्रत्याशी व नेता थोप रहा भाजपा नेतृत्व बदरीनाथ-मंगलौर झटके के बाद बचाव की मुद्रा में खड़ा है। पार्टी के अंदर थोपे गए लोगों के खिलाफ उठ रही आवाज दिनों दिन तेज होती जा रहा है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व आगामी उपचुनाव, निकाय व 2027 के विधानसभा चुनावों में संकर प्रजाति (कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल)के बजाय मूल भाजपा प्रजाति के चावलों की हांडी चढ़ जाय तो कोई अचरज नहीं होना चाहिए।

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