वनराजी महिला के लिए सीमांत गांव की आरक्षित सीट दूसरी बार खाली

ग्राम पंचायत में प्रधान के लिए नहीं मिला एक भी योग्य उम्मीदवार

शिक्षा व बच्चे नीति बने बाधा

अविकल उत्तराखंड

पिथौरागढ़। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे नींव मानी जाने वाली ग्राम पंचायतें आज भी कुछ समुदायों के लिए पहुंच से बाहर हैं। इसका ताजा उदाहरण डीडीहाट विकासखंड की ग्राम पंचायत खेतार कन्याल है, जहां वनराजी समुदाय के लिए आरक्षित प्रधान पद के लिए अब तक एक भी पात्र उम्मीदवार नहीं मिल सका।

पात्रता मानकों और सामाजिक पिछड़ेपन के बीच यह समुदाय दोहरी मार झेल रहा है। हाल यह है कि पंचायत चुनाव में नामांकन की अंतिम तिथि बीत जाने के बाद भी प्रधान की सीट खाली है और उपचुनाव में भी स्थिति जस की तस रही।
खेतार कन्याल ग्राम पंचायत में वनराजी समुदाय के कुल 49 परिवार रहते हैं। इस बार ग्राम प्रधान की सीट अनुसूचित जनजाति महिला के लिए आरक्षित हुई। लेकिन, 113 वनराजी मतदाताओं में केवल दो 8वीं पास महिला मिली और जब लंबी खोजबीन के बाद एक महिला पुष्पा की शिक्षा योग्यता मिली तो उनके पांच बच्चों ने पात्रता छीन ली।

वहीं दूसरी महिला हेमा जिसके भी दो बच्चों से ज्यादा बच्चे हैं। चुनाव नियमों के अनुसार 2019 के बाद दो से अधिक बच्चे होने पर प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ सकता। वनराजी समुदाय हिमालय के सीमांत क्षेत्र की वह जनजाति है, जिसे भारत की सबसे लुप्तप्राय मानव समूहों में गिना जाता है। यह समुदाय आज भी मुख्यधारा से जुडऩे की जद्दोजहद में है, लेकिन शिक्षा, दस्तावेज, परिवहन और जागरूकता की कमी इनके लिए बड़ा अवरोध बनी हुई है।
अर्पण संस्था की रेनू ठाकुर का कहना है वनराजी लुप्त होती जनजाति है, जिसके लिए शिक्षा पर कभी भी जोर नहीं दिया गया। यहीं कारण है इस समुदाय में कम पढ़े लिखे लोग हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार गंभीर है तो मुख्य धारा में लाने के लिए नियमों में बदलाव करने चाहिए।

दो कानून—एक जनजाति की दुविधा

वनराजी समुदाय के सामने विडंबना यह है कि सरकारी योजनाएं उन्हें सामाजिक रूप से उन्नत बनाने के लिए बनाई गई हैं, पर पात्रता नियम उल्टे बाधा बन रहे हैं। दूसरी तरफ जनसंख्या नियंत्रण नीति के तहत दो बच्चों की शर्त लागू है, जबकि इस समुदाय की आबादी पहले से ही बेहद कम है। परिणाम—न प्रतिनिधित्व और न जनसंख्या संरक्षण।

गौरतलब है कि 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में वनराजी /वन रावत समुदाय के गगन रजवार ने धारचूला सीट से निर्दलीय जीत हासिल कर सभी को चौंका दिया था।

वनराजी कौन हैं?

  • भारत की सबसे कम आबादी वाली जनजातियों में शामिल
  • पहले जंगलों की गुफाओं (उढ्यार) में रहते थे
  • आज भी कई परिवारों के पास सरकारी कागजात नहीं
  • पिथौरागढ़, चंपावत और ऊधमसिंह नगर में लगभग 300 परिवार
  • शिक्षा बेहद कम, उच्च शिक्षा लगभग न के बराबर
  • आरक्षण होने के बावजूद योग्य अभ्यर्थी न मिल पाने की समस्या

विशेषज्ञों की राय
समाजशास्त्रियों का मानना है कि पंचायत चुनावों में लागू शिक्षा और दो बच्चों की अनिवार्यता नियम जनजातीय समुदायों पर समान रूप से लागू होना व्यवहारिक नहीं है। वनराजी जैसे छोटे समुदायों के लिए अलग प्रतिनिधित्व नीति और शैक्षिक प्रोत्साहन आवश्यक हैं।

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