नागरिक समाज ने दिखाई एकजुटता, सहयोग का दिया भरोसा
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। पिथौरागढ़ के दूरस्थ इलाकों में निवास करने वाले राजी समुदाय ने पहली बार राजधानी पहुंचकर संगठित रूप से अपनी आवाज नागरिक समाज के सामने रखी। समावेशी विकास की मांग को लेकर बुधवार को दून लाइब्रेरी में आयोजित सेमिनार में राजी जनजाति के युवक-युवतियों ने अपने इतिहास, संघर्ष, अधिकारों और भविष्य की जरूरतों को बेबाकी से सामने रखा। इस दौरान देहरादून के नागरिक समाज, सामाजिक संगठनों और विशेषज्ञों ने राजी समुदाय के साथ एकजुटता दिखाते हुए शिक्षा, आजीविका, तकनीकी प्रशिक्षण और बच्चों के अधिकारों के क्षेत्र में सहयोग का भरोसा दिलाया।
विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) में शामिल राजी समुदाय के प्रतिनिधि तीन दिवसीय यात्रा पर पहली बार देहरादून पहुंचे हैं। इस यात्रा का उद्देश्य अपने संवैधानिक अधिकारों, वन अधिकार, आजीविका, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को नीति आयोगों, संस्थानों और नागरिक समाज के सामने रखना है। इसी क्रम में दून लाइब्रेरी में आयोजित सेमिनार राजी समुदाय और शहरी नागरिक समाज के बीच संवाद का महत्वपूर्ण मंच बना, जहां उनकी पीड़ा के साथ-साथ संभावनाओं पर भी गंभीर चर्चा हुई। कार्यक्रम के समापन पर अर्पण संस्था की संस्थापक रेणु ठाकुर ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में राजी समुदाय के 10 प्रतिनिधियों के अलावा आरएलएस दिल्ली से विनोद कोष्टी, शोधकर्ता दीपिका अधिकारी, अर्पण संस्था के सदस्य, छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे। अंतिम सत्र में सवाल-जवाब के माध्यम से संवाद को और गहराया गया।

‘हमारी कहानी, हमारी जुबानी’
कार्यक्रम की शुरुआत राजी युवक-युवतियों के जनगीत से हुई। इसके बाद पहले सत्र ‘हमारी कहानी हमारी जुबानीÓ में राजी युवा ललित सिंह रजवार ने समुदाय के इतिहास और वर्तमान हालात पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि राजी समाज ने गुफाओं से निकलकर गांव और घर तक का सफर तो तय किया, लेकिन आज भी वन अधिकार के तहत जमीन के राजस्व पट्टे और सामुदायिक वन अधिकार का इंतजार कर रहा है।
जड़ी-बूटियों को लेकर राजी समुदाय के पारंपरिक ज्ञान की दी जानकारी
कविता देवी ने जड़ी-बूटियों को लेकर राजी समुदाय के पारंपरिक ज्ञान की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आज भी सिरदर्द, पेट दर्द और मामूली चोटों के इलाज में जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है, लेकिन जंगलों में इन औषधियों का मिलना कठिन होता जा रहा है। इसके संरक्षण के लिए सामुदायिक वन अधिकार बेहद जरूरी हैं। हंसा देवी, पुष्पा देवी और कमल सिंह रजवार ने महिलाओं के संघर्ष, आजीविका की सीमित संभावनाएं, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसे मुद्दों को उठाया। वक्ताओं ने कहा कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाली पीढिय़ां और अधिक हाशिये पर चली जाएंगी।
तीन दिनों की राजधानी यात्रा
राजी समुदाय के प्रतिनिधि इस तीन दिवसीय यात्रा के पहले चरण में एफआरआई, बैंबू बोर्ड और महिला आयोग पहुंचे। दूसरे दिन उन्होंने प्रेस कॉन्फें्रस के साथ मानवाधिकार आयोग में अपनी बात रखी। तीसरे दिन नागरिक समाज के साथ संवाद कर उन्होंने अपने संघर्ष और उम्मीदों को साझा किया।
सहयोग का बढ़ा हाथ
- डॉ. बृजमोहन शर्मा ने राजी युवाओं को नि:शुल्क तकनीकी प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोडऩे की बात कही।
- मुकाम संस्था की सोमा ने पारंपरिक औषधियों के संरक्षण में राजी महिलाओं के संगठन को सहयोग का आश्वासन दिया।
- पर्वतीय बाल मंच की आदिती कौर ने बच्चों की रचनात्मक अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने और बाल संरक्षण समिति गठन पर जोर दिया।
- पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के पूरन वर्तवाल ने इंटर पास राजी युवाओं को नि:शुल्क एक वर्षीय डेवलपमेंट कोर्स कराने की घोषणा की।

