नित्यानन्द स्वामी को बाहरी बताने वाले भाजपा नेता भड़ाना के उत्तराखण्ड “आगमन” पर बरसा रहे फूल
मंगलौर विधानसभा उपचुनाव-भाजपा नेतृत्व ने भड़ाना के जरिये पार्टी क्षत्रपों को दिया सन्देश
स्वामी से भड़ाना तक बदलती भाजपा. अब मोदी-शाह युग …
अविकल थपलियाल
देहरादून। साल 2000 नये राज्य उत्तराखण्ड के गठन की तैयारी। दिल्ली से लड़कर लखनऊ तक सत्ता के गलियारों में राजधानी, हाईकोर्ट को लेकर गहन मंथन जारी। हरिद्वार व उधमसिंहनगर को उत्तराखण्ड में मिलाने की जद्दोजहद। आंदोलन शुरू।
अटल सरकार ने ममता बनर्जी, जॉर्ज फर्नाडीस और प्रकाश सिंह बादल की कमेटी बनाकर उधमसिंहनगर भेजा। इस जिले के सिख और बंगालियों को साधना जरूरी था। ममता बनर्जी, बादल व फर्नाडीज की कमेटी अटल-आडवाणी की कसौटी पर खरा उतरी।
अब बारी आई नये राज्य का पहला सीएम कौन बने। चूंकि, उंस दौर में मैं हिंदुस्तान के लखनऊ संस्करण से जुड़ा था। लिहाजा हर दिन बदलती राजनीतिक व प्रशासनिक गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी।
राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। लखनऊ में मौजूद उत्तराखण्ड के नेता नित्यानन्द स्वामी, केदार सिंह फोनिया, भगत सिंह कोश्यारी, निशंक, मातबर सिंह कण्डारी, गांववासी, भारत सिंह रावत, बंशीधर भगत ,नारायण रामदास, अजय भट्ट, समेत अन्य नेता राज्य गठन से जुड़े प्रशासनिक व राजनीतिक बिंदुओं पर लगातार मंथन की प्रक्रियामें थे।
बहरहाल, लखनऊ-दिल्ली तक जारी हलचल के बीच विधानपरिषद के सभापति डॉ नित्यानन्द स्वामी को नये राज्य का पहला मुख्यमंत्री बन दिया गया। शांत व सज्जन प्रकृति के स्वामी का अटल-आडवाणी से लंबा व गहरा जुड़ाव रहा।
मुख्यमंत्री पद के बाकी उम्मीदवार कोश्यारी,निशंक व फोनिया रेस में पीछे छूट गए। अटल-आडवाणी की इस उदार भाजपा में पार्टी नेताओं की मुखरता देखते ही बनती थी।
नौ नवंबर 2000 को दून परेड ग्राउंड में शपथ ग्रहण समारोह हुआ। हंगामा भी खूब हुआ। भाजपा के दो नेताओं निशंक और कोश्यारी का मंत्री पद की शपथ लेने से इनकार। द्रोण होटल में अधिकतर भाजपा नेताओं और समर्थक स्वामी के सीएम बनने पर हाईकमान तक अपना विरोध प्रदर्शन जता रहे थे।
कई पीढ़ियों से पूरी जिंदगी देहरादून में बसर करने वाले नित्यानन्द स्वामी को हरियाणा का बताकर बाहरी करार दे दिया गया। जनता के दिलों में यह बीज भी बो दिया गया कि अपने उत्तराखण्ड राज्य में पहाड़ी को सीएम नहीं बनाया।
जबकि, देहरादून स्वामी की सामाजिक व राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा। डीएवी छात्र संघ के अध्यक्ष से लेकर यूपी विधानपरिषद के सभापति बनने का सफर भी यहीं से शुरू हुआ।
लेकिन नये राज्य उत्तराखण्ड में एक ‘हरियाणवी’ व बाहरी व्यक्ति को सीएम बनाने की आग सुलगती रही। सरकार चलाने में कई बार अड़चनें आयी। अंततः भाजपा नेता कोश्यारी और निशंक की जुगलबंदी व विरोध के बाद अक्टूबर 2001 में अटल-आडवाणी के करीबी ‘बाहरी’ सीएम नित्यानन्द स्वामी को कुर्सी से हटाना पड़ा। और अलग राज्य बनाकर आंदोलनकारी जनता की पुरानी मांग पूरी करने वाली भाजपा को पहले 2002 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। स्वामी, निशंक,फोनिया समेत कई मंत्री चुनाव हार गए। अंदरूनी कलह व राजनीतिक अस्थिरता को भाजपा की हार का प्रमुख कारण माना गया। राज्य बनाने वाली भाजपा को जनता ने दरकिनार कर दिया। जबकि राज्य बनाने का श्रेय लेने वाली भाजपा पहला चुनाव तो आसानी से जीत सकती थी।
उंस समय भाजपा के अंदर विरोध-प्रदर्शन व शिकायतों को कहने की खुली छूट थी। अंदरूनी और बाहरी लोकतंत्र जिंदा रहने के कारण भाजपा नेता अपनी मन की करवा लेते रहे।
स्वामी, खंडूडी, निशंक के सीएम पद से हटने में नेताओं की जुगलबंदी, खुलेआम तलवारें खिंचना और क्षत्रपों की दिल्ली दौड़ की अहम भूमिका रही। 2012 तक भाजपा के इस खुले लोकतंत्र के कारण हाईकमान भी भारी दबाव में रहा।
2014 से मोदी-अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद प्रदेश भाजपा के क्षत्रप धीरे धीरे चुप्पी साधने लगे। एक समय छोटी छोटी बात पर मुखर रहने वाले भाजपा को ‘अनुशासन’ की डोर में बंधना सीख गए।
2017 में त्रिवेंद्र सिंह के सीएम बनने पर कहीं कोई सार्वजनिक विरोध की ख़बरें नहीँ आईं। 2021 में त्रिवेंद्र को हाईकमान ने रातों रात हटाया। लेकिन इससे पहले भाजपा क्षत्रप खुलेआम त्रिवेंद्र के बहुत विरोध में नहीं दिखे। अलबत्ता, अंदरूनी खुरपेंच अवश्य जारी रही।
मोदी-शाह ने 2021 में अप्रत्याशित तौर पर तीरथ सिंह रावत और पुष्कर धामी को सीएम बनाया। कहीं कोई चूं चपड़ नहीं हुई। यही नहीं, 2022 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी पुष्कर सिंह धामी की सीएम कुर्सी बरकरार रखी। लेकिन बड़े बड़े भाजपा नेताओं के मुंह से एक बोल भी नहीं फूटा। मोदी-शाह के डंडे के डर से राज्य गठन के समय जमीन-आसमान एक करने वाले भाजपा नेताओं ने पूरी तरह होंठ सिल लिए हैं। पुराना दौर होता तो ये नेता हारे नेता को सीएम बनाने पर हाईकमान का जीना हराम कर देते।
अटल-आडवाणी से मोदी-शाह के सफर को लगभग 25 साल होने जा रहे हैं। मोदी-शाह युग की बदलती भाजपा में प्रदेश के नेताओं ने पार्टी हाईकमान का एक अप्रत्यशित और गले नहीं उतरने वाला फैसला भी देखा। लेकिन कहीं कोई हरकत नहीं। लंबा मौन..अपनी बात रखने की हिम्मत नहीं। सभी को जैसे काठ मार गया हो। तेजतर्रार नेता कहीं नजर नहीं आ रहे।
भाजपा हाईकमान ने उत्तराखण्ड की मंगलौर सीट के उपचुनाव में 10 जुलाई को होने वाले मतदान में हरियाणा के करतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतार दिया। 24 साल पहले नित्यानन्द स्वामी की ताजपोशी पर हो हल्ला करने वाले भाजपा नेता मौन साधे हुए हैं।
भाजपा हाईकमान ने बाहरी व्यक्ति को विधानसभा उप चुनाव में उतार कर अपने होने का अहसास कराने के साथ साथ पहाड़ी राज्य की बात करने वालों को भी सीधा सन्देश भी दे दिया है। हरिद्वार जिले की मंगलौर सीट पर स्थानीय प्रत्याशी के बजाय आयातित करतार सिंह भड़ाना का चयन कर यह भो बता दिया है कि यह अटल-आडवाणी का नहीं अब मोदी-शाह का युग है। और इस युग में न खाता न बही…जो ऊपर वाले कहे वही सही…
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