कहां खो गया तदर्थ पदोन्नति प्राप्त शिक्षकों की वरिष्ठता निर्धारित करने सम्बन्धी शासनादेश !
मुख्यमंत्री से गुम शासनादेश की उच्चस्तरीय जाँच कराने की माँग
शासन व शिक्षा विभाग ने आरटीआई में भी नहीं दी शासनादेश संख्या 2158 की सूचना
वरिष्ठता निर्धारण में शिक्षा विभाग ने किया झोल-मोल
अविकल थपलियाल
देहरादून। माध्यमिक शिक्षा विभाग में एल टी से प्रवक्ता पद पर तदर्थ पदोन्नति प्राप्त शिक्षकों की वरिष्ठता निर्धारित करने वाला शासनादेश (संख्या 2158/मा सं वि /2001दिनांक 16जून 2001) पता नहीं कहां लापता हो गया।
सूचना के जनअधिकार में शासनादेश के बाबत सवाल किया तो जवाब मिला कि यह सूचना धारित नहीं है। मतलब साफ है कि शासनादेश शिक्षा विभाग व शासन दोनों से गुम हो चुका है ।
यहां यह भी गौरतलब है कि लगभग बीस साल पहले विभागीय तदर्थ पदोन्नति के आदेश में 2001 के इस शासनादेश का प्रमुखता से जिक्र किया गया है।
कार्यालय निदेशक विद्यालयी शिक्षा ने 29 अगस्त 2005को जो सहायक अध्यापक से प्रवक्ता पद पर तदर्थ पदोन्नति का आदेश जारी किया गया था उसमें 2001 का शासनादेश संख्या 2158 अंकित थी ।
कोटद्वार निवासी आर टी आई कार्यकर्त्ता अरुण गौड़ ने शासनादेश संख्या 2158 के सन्दर्भ में शिक्षा विभाग व शासन से सूचना के अधिकार के तहत इस शासनादेश की प्रति मांगी तो उन्हे विभाग व शासन द्वारा जबाब दिया गया है कि यह सूचना धारित नहीं है।
शिक्षा विभाग द्वारा गलत तरीके से वरिष्ठता देने का सबसे अधिक खामियाजा वर्ष 2005 व वर्ष 2006 में आयोग द्वारा सीधी भर्ती से चयनित प्रवक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है । पहले चयनित होने के बाद भी वरिष्ठता सूची में उनका स्थान 2010 में मौलिक नियुक्ति द्वारा पदोन्नति पाए शिक्षकों से नीचे है।
प्रवक्ता वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष मुकेश प्रसाद बहुगुणा ने बताया कि लोक सेवा आयोग हरिद्वार द्वारा 2003 की विज्ञप्ति के सापेक्ष 2005-06 में चयनित लोक सेवा आयोग के प्रवक्ताओं के साथ उस समय बड़ा धोखा हो गया जब 6 अगस्त 2010 को मौलिक रूप से पदोन्नत किए गये प्रवक्ताओं को संयुक्त प्रवक्ता वरिष्ठता सूची में पहले से ही कार्यरत आयोग प्रवक्ताओं (वर्ष 2005-06) से ऊपर की वरिष्ठता निर्धारित कर दी गयी।
बैक डेट वरिष्ठता देते समय कोई विशेष दिनांक का उल्लेख न करते हुए सीधे वर्ष का निर्धारण कर दिया गया। आज तक किसी भी नियमावली में पिछला वर्ष वरिष्ठता निर्धारण करने का कहीं उल्लेख नहीं है यही नहीं, एक शासनादेश जिसके तहत बैक डेट सीनियरिटी पाए एल टी से प्रवक्ता तदर्थ पदोन्नत आदेश में उल्लिखित शासनादेश संख्या- 2158/ मा सं वि. /2001 दिनांक 16-06-2001 विभाग व शासन दोनों जगह से गुम हो चुका है।
बैक डेट सीनियरिटी को सही ठहराने हेतु उक्त शासनादेश का न मिलना संदेह पैदा करता है। जिन कार्मिकों व अफसरों पर इस शासनादेश को संरक्षित व सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी थी उन पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी है।
आयोग चयनित प्रवक्ता अनिल मैंदौला ने बताया कि पदोन्नति प्राप्त शिक्षकों की वरिष्ठता विभाग द्वारा नियम 07 के तहत की गई है जबकि प्रवक्ता संवर्ग में भर्ती पदोन्नति व सीधी भर्ती दोनों प्रकार से होती है। इसलिए नियमावली के अनुसार इसमें वरिष्ठता का निर्धारण नियम 08 के तहत होना चाहिए था लेकिन विभाग द्वारा नियमों का गलत निर्धारण किया गया ।
चयनित प्रवक्ता दीपक गौड़ ने बताया कि इस मामले को लेकर सीधी भर्ती प्रवक्ता हाई कोर्ट की शरण में गए है वर्ष 2014 में इस विसंगतिपूर्ण वरिष्ठता सूची पर स्टे लगा दिया है। उन्होंने कहा कि वह अपने लिए विभागीय नियमों के विपरीत कोई भी मांग नहीं कर रहे है, वह केवल शासन की नियमावली के विपरीत जो कार्य हुए हैं को सही करने की मांग विभाग व शासन से कर रहें है ।
अब सवाल यह उठता है कि यह शासनादेश जारी हुआ भी कि नहीं, अगर जारी हुआ रहता तो शिक्षा विभाग से लेकर वित्त, कार्मिक, न्याय विभाग में इस शासनादेश की प्रति जरूर होती। आयोग चयनित प्रवक्ता युगजीत सेमवाल ने बताया कि वरिष्ठता के निर्धारण की ऐसी स्थिति राज्य के सिविल सेवा संवर्ग के प्रथम पी सी एस बैच के अधिकारियों व नायब तहसीलदार से पदोन्नति प्राप्त अधिकारियो की वरिष्ठता निर्धारण में आई थी जिसमें पदोन्नति प्राप्त अधिकारियों को सीधी भर्ती से आये अधिकारियों से वरिष्ठ बना दिया था। लेकिन सीधी भर्ती से आये अधिकारियों ने ज़ब इस वरिष्ठता विसंगति पर आपत्ति दर्ज की तो शासन द्वारा 2001 की जेष्ठता नियमावली के आधार पर इस विसंगति में सुधार कर सीधी भर्ती से आये अधिकारियों को नियमसंगत वरिष्ठता दे दी।
प्रवक्ता कल्याण समिति के सदस्यों का कहना है कि आयोग द्वारा सीधी भर्ती द्वारा चयनित प्रवक्ता का पद भी आयोग के दायरे में है इसलिए उनकी वरिष्ठता विसंगति को सुधारा जाये। अगर विभाग व शासन इसमें सुधार कर देता है तो वह 24 घंटे क्या 24 मिनट में कोर्ट केस वापिस ले लेंगे। सीधी भर्ती का यह शासनादेश एक अबूझ पहेली बना हुआ है । प्रवक्ता कल्याण समिति ने मुख्यमंत्री उत्तराखंड से इस शासनादेश की उच्चस्तरीय जाँच कराने की माँग की, शिक्षा विभाग का यह शासनादेश आजकल सुर्खियों में है और राज्य के शिक्षकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है
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