सीएम धामी ने मुख्यमंत्री प्राकृतिक कृषि योजना के लिये मुख्यमंत्री ने 10 करोड़ की धनराशि दी.प्राकृतिक कृषि बोर्ड का गठन किया
Namami Gange Natural Agriculture Corridor Scheme launched in Uttarakhand today
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। उत्तराखण्ड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह(से नि), गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मौजूदगी में मुख्यमंत्री प्राकृतिक कृषि योजना, नमामि गंगे प्राकृतिक कृषि कॉरीडोर योजना का शुभारंभ किया।
इस मौके पर प्राकृतिक कृषि बोर्ड का गठन भी किया गया। और राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि विषय पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया।
गुरुवार को सर्वे ऑफ इंडिया स्टेडियम हाथीबड़कला में कृषि विभाग द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय प्राकृतिक खेती कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह(से नि) ने कहा कि प्राकृतिक कृषि पद्धति में अनेक समस्याओं का समाधान है। आचार्य देवव्रत ने भारत की एक प्राचीन कृषि पद्धति को नया आयाम दिया है। हम सबको प्रकृति की ओर लौटने की एक राह दिखाई है ।
राज्यपाल ने कहा कि प्राकृतिक कृषि कोई नया रूप नहीं है बल्कि हमारे प्राचीन वैदिक चिंतन के युग के अनुरूप एक नई पहचान है। यह समय की मांग है और हमें प्राकृतिक कृषि की ओर लौटना होगा। उत्तराखण्ड में प्राकृतिक कृषि एक ब्रांड बनें हमें इस विजन को धरातल पर उतारना होगा। उन्होंने कहा कि हमें प्राकृतिक कृषि और गौ सेवा को एक साथ आगे बढ़ाना होगा। गाय का गोबर और गौ मूत्र प्राकृतिक खेती के लिए खाद बनाने में बहुत लाभकारी है।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी सभ्यता, संस्कृति को प्राचीनतम इतिहास के साथ आधुनिक तकनीकों को जोड़ते हुए आगे बढ़ना होगा। प्राचीन पद्धति को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़ना होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन टेक्नोलॉजी, रोपवे यही भारत का आने वाला भविष्य है इस दिशा में कुछ लक्ष्य तय करने होंगे।
राज्यपाल ने कहा कि हमें एग्रीकल्चर को अपनाकर एग्रीकल्चर को अपना कल्चर बनाना होगा और कोऑपरेटिव को कॉर्पोरेट तक ले जाना होगा।
कार्यशाला में उपस्थित गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने अपने संबोधन में कहा कि उत्तराखण्ड की धरती प्राकृतिक सौंदर्य और संपदा से समृद्ध है जो प्राकृतिक खेती के लिए वरदान साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक कृषि उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है। इसके लिए किसानों को रासायनिक खेती और जैविक खेती का त्याग करना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारे किसान अपने खेतों में रसायनों व उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग कर रहे हैं जिस कारण भूमि की उपजाऊ क्षमता खत्म हो रही है। रासायनिक खादों के दुष्परिणाम आ रहे हैं जिससे कई तरह की बीमारियां भी हो रही हैं। खेतों में कार्बन और माइक्रो पोषक तत्व कम हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इन सब समस्याओं के समाधान के लिए हमें प्राकृतिक कृषि की ओर लौटना होगा। उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा स्वयं 200 एकड़ में प्राकृतिक खेती की जा रही है जिसमें रसायन खादों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया जाता। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में 2 लाख किसानों और गुजरात में लगभग 3 लाख किसानों द्वारा प्राकृतिक खेती की जा रही है।
राज्यपाल ने कृषि वैज्ञानिकों से कहा कि प्राकृतिक खेती पर अधिक से अधिक रिसर्च की जाए और अधिक किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाए। प्राकृतिक खेती से जहां पर्यावरण संरक्षण हो सकेगा वहीं किसानों की आमदनी दोगुनी और वह सशक्त और खुशहाल बनेंगे। राज्यपाल देवव्रत ने अपने अनुभवों के आधार पर उपस्थित कृषकों को प्राकृतिक खेती की महत्व एवं इसके फायदे गिनाये।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य स्तरीय प्राकृतिक खेती कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए घोषणा की कि राज्य में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने के लिये प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड का गठन किया जायेगा। मुख्यमंत्री प्राकृतिक कृषि योजना के लिये मुख्यमंत्री ने 10 करोड़ की धनराशि प्रदान की। उन्होंने कहा कि नमामि गंगे कृषि कोरिडोर योजना से गंगा स्वच्छता को भी मदद मिलेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में कृषि क्षेत्र में की जा रही बेस्ट प्रैक्टिस को पूरे देश में पहचान मिलेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत की संस्कृति और धरती माता के संरक्षण के अभिनव कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में जो कार्य राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने प्रारम्भ किए हैं, वह अभूतपूर्व हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस मंथन से एक ऐसा अमृत प्राप्त होगा जो प्राकृतिक कृषि के क्षेत्र में संभावनाओं के नए द्वार खोलने में सहायक सिद्ध होगा।
उन्होने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा मिल रहा है। इस बार के बजट में कृषि को हाइटेक बनाने के साथ-साथ प्राकृतिक कृषि पर भी अभूतपूर्व फोकस किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड प्राकृतिक दृष्टि से भी परम्परागत कृषि के लिए एक उपयुक्त राज्य है। जलवायु विविधता के कारण हमारे यहां कई प्रकार की स्थानीय फसलें, फल, जड़ी-बूटी और सुगन्धित पौध आदि की खेती की जाती है।
बीते कुछ वर्षों के दौरान रसायनों के इस्तेमाल से हमारी उत्पादन क्षमता तो बढ़ी है लेकिन हमारे खेतों और हमारी मिट्टी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा है। धरती को माँ मानने की परम्परा भारतीय संस्कृति में ही है। आज स्थिति यह है कि रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अंधाधुंध और असंतुलित प्रयोग का दुष्प्रभाव मिट्टी और पर्यावरण पर ही नहीं बल्कि हमारे पशुओं की सेहत पर भी स्पष्ट रूप से दिखने लगा है।
इस अवसर पर कृषि मंत्री गणेश जोशी, विधायक खजान दास, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट, सचिव कृषि डॉ. बी.वी.आर.सी पुरुषोत्तम, निदेशक कृषि गौरी शंकर सहित कृषि वैज्ञानिक और प्रदेश के सभी जनपदों के कृषक उपस्थित रहे।
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