अड़तीस साल बाद लौटे शहीद के अंतिम दर्शन, पंचतत्व में विलीन

अविकल उत्तराखंड

…वो वीर 38 साल बाद घर लौटा लेकिन तिरंगे में लिपटकर। हल्द्वानी में आज का मंजर बदला-बदला दिखा। सभी की आंखें नम थी। भावुक कर देने वाली एक अकल्पनीय कहानी। 38 साल पहले बड़ा सदमा झेल चुकी पत्नी का पुराना जख्म फिर से हरा हो गया। दोनों बेटियों को भी पिता की इस तरह “,वापसी” ने आंसुओं में डुबो दिया।
बुधवार को जैसे ही शहीद चन्द्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर डहरिया स्थित उनके आवास पर पहुँचा, पूरा क्षेत्र देश भक्ति नारों से गुंजायमान हो गया।


पुष्प चक्र अर्पित करने के पश्चात शहीद चन्द्रशेखर का पार्थिव शरीर चित्रशिला घाट रानीबाग के लिए रवाना हुआ। जहां शहीद को पूरे राजकीय सम्मान व आर्मी बैण्ड की धुन के साथ भावभीनी विदाई देते हुए अंतिम संस्कार किया। इस अवसर पर सैकडों की संख्या में लोगों द्वारा नम आंखों से शहीद को श्रद्धांजलि दी गई।

इससे पूर्व, भारतीय सेना के शहीद चन्द्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद घर आया। पत्नी, बेटियों, परिजन व लोगों ने शहीद के इतने सालों बाद लौटने पर अंतिम दर्शन किये। अंतिम सलामी दी। देशभक्ति के नारे गूंजे। 38 साल के लंबे इंतजार के बाद पत्नी और बेटियों ने घर के मुखिया को भावभीनी अंतिम विदाई दी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व नेता विपक्ष यशपाल आर्य ने
 1984 में सियाचिन में आपरेशन मेघदूत के दौरान शहीद हुए लांसनायक चन्द्रशेखर हर्बोला के पार्थिव देह पर पुष्प चक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। शहीद चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 वर्ष के पश्चात बुधवार को उनके आवास पहुँचने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी एवं महिला सशक्तिकरण मंत्री श्रीमती रेखा आर्या ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि शहीद चन्द्रशेखर जी के बलिदान को हमेशा याद रखा जायेगा। उन्होेंने कहा देश के लिए बलिदान देने वाले उत्तराखण्ड के सैनिकों की स्मृति में सैन्यधाम की स्थापना की जा रही है। शहीद चन्द्रशेखर की स्मृतियों को भी सैन्यधाम में संजोया जायेगा।


सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि सरकार शहीद के परिवार के साथ कंधा से कंधा मिलाकर खड़ी है। सरकार द्वारा शोक संतृप्त परिवार की हर सम्भव सहायता की जाएगी।

उत्तराखंड का वीर सपूत चन्द्रशेखर हर्बोला सियाचिन में operation meghdoot के दौरान अपने अन्य साथियों के साथ ग्लेशियर में दब गए थे। उनके साथ कुमाऊं रेजीमेंट के अन्य साथी भी बर्फ में दबे। जिनका कुछ पता नहीं चला।

38 साल बाद लांसनायक (lansnayak) हर्बोला की पार्थिव देह बर्फ में मिली। देह को नुकसान नहीं हुआ था। बीते शनिवार को पेट्रोलिंग पार्टी ने उनके शव को बरामद किया। और indentification disc से उनकी पहचान की। लद्दाख में शहीद हर्बोला को सैनिक सम्मान के साथ श्रद्धांजलि दी गयी। और उसके बाद उनके पार्थिव शरीर को हल्द्वानी रवाना किया गया।

हर्बोला 1975 में सेना में भर्ती हुए थे। जिस वक्त वे धहीद हुए उस समय उनकी दो बेटियों की उम्र 4 व 2 साल थी।

दरअसल, 1984 में भारत (India) और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच सियाचिन का युद्ध लड़ा गया था। भारतीय सेना ने इस मिशन को ऑपेरशन मेघदूत नाम दिया था। इसी ऑपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) के तहत चंद्र शेखर की तैनाती सियाचिन ग्लेशियर में की गई थी।

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