2007 से 2012 के बीव सीएम की दो बार अदला बदली हुई। 2017 में भी फिर भाजपा सरकार आने पर सीएम के दावेदारों में भगत सिंह कोश्यारी का भी प्रमुखता से नाम आया था । 2021 में त्रिवेंद्र रावत की विदायी काल में भी भगत सिंह कोश्यारी फिर चर्चा में आये। लेकिन भगत कोश्यारी को गोल करने का दूसरा चांस नहीं मिला।
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून। उत्त्तराखण्ड भाजपा में जब जब भूचाल आया। पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी का नाम भी सुर्खियों में बना रहा। ताजे भाजपा के घटनाक्रम को लेकर भी भगत दा का नाम चर्चाओं रहा। 6 मार्च के घटनाक्रम के बाद भगत की भी दिल्ली में खूब चर्चा रही। हालांकि, मौजूदा समय में वो महाराष्ट्र व गोवा के राज्यपाल की भूमिका में है। लेकिन उत्त्तराखण्ड के बाबत नये नेता के नाम की चर्चाओं में कोश्यारी का नाम भी खूब उछला।तीरथ रावत के नाम पर मुहर लगने के बाद भगत दा के इर्द गिर्द घूम रहा उत्त्तराखण्ड की राजनीति का पहिया फिलहाल थम सा गया है। लेकिन यह सवाल एक बार फिर सामने आया कि उत्त्तराखण्ड की कुर्सी पर भाजपा ने दोबारा कोश्यारी की ताजपोशी नहीं की।

दरअसल, 2001 में सीएम नित्यानंद स्वामी के हटने के बाद भगत सिंह कोश्यारी को सीएम की कुर्सी मिली थी। काम करने का समय भी लगभग चार महीने का मिला। उसके बाद 2002 के चुनाव में भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी।
इसके बाद 2007 का चुनाव कोश्यारी व खंडूड़ी के नेतृत्व में लड़ा गया। लेकिन जब सीएम का नंबर आया तो खंडूड़ी बाजी मार गए। 2007 में गोल करने का गोल्डन चांस था भगत दा के पास। 2009 में खंडूड़ी को हटाया गया तो नये सीएम निशंक बने। यहां भी फिर कोश्यारी चूक गए। जबकि पहले खंडूड़ी व बाद में निशंक को हटाने में भगत सिंह समर्थकों की रणनीति की विशेष भूमिका रही थी। 2009 में भगत के करीबी विधायक मुन्ना चौहान के इस्तीफे के बाद खण्डूड़ी को हटाने की मुहिम ने जोर पकड़ा था। यही नही, स्वंय भगत की राज्यसभा से इस्तीफे की धमकी से भी केंद्रीय नेतृत्व भारी दबाव में आया था। लेकिन सीएम की कुर्सी रमेश पोखरियाल के हिस्से में आयी।
इसके बाद 2017 में भाजपा की प्रचंड सत्ता के बाद भी सीएम के संभावित दावेदारों में हमेशा की तरह भगत सिंह कोश्यारी का नाम भी शुमार था। लेकिन हाईकमान ने उनके ही खास समर्थक रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भरोसा जताया। और थोड़े इंतजार के बाद भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र का राज्यपाल बना उत्त्तराखण्ड की राजनीति से दूर कर दिया।
हालांकि, भगत समर्थक लंबे समय से यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि केंद्रीय नेतृत्व एक बार कोश्यारी को आजमा सकता है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं….चैतू
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