विवि पर ठोका 50 हजार का जुर्माना, अन्य भर्तियां भी कोर्ट में विचाराधीन
शिक्षक भर्ती घोटाले पर छात्र संघ मुखर, देखें हाईकोर्ट का आदेश
एकेडमिक काउंसिल को दिया कोर्ट में प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर निर्णय देने का निर्देश
अविकल उत्तराखण्ड
नैनीताल/श्रीनगर। हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विवि में पिछले चार साल से चल रहे ऑनलाइन शिक्षक भर्ती में हुई गड़बड़ियों के जो मसले उत्तराखंड हाई कोर्ट पहुंचे हैं उनमें से एक मामले घनश्याम पाल बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय (WPSB/204/2021) में मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने विश्वद्यालय को बड़ा झटका दिया है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में प्रतिवादी आरुषि उनियाल की नियुक्ति को रद्द कर दिया है। अपने फैसले में न्यायालय ने नियुक्ति प्रक्रिया को दोषपूर्ण मानते विवि पर पचास हजार का जुर्माना भी ठोका है।
कोर्ट के फैसले के बाद विवि छात्र संघ नेता कुलपति का पुतला फूंक शिक्षक भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच की मांग कर मामले को गर्मा चुके हैं।
गौरतलब है कि बीते साल विवि में शिक्षक भर्ती घोटाले को लेकर ‘अविकल उत्तराखण्ड” ने हाईकोर्ट में जारी सुनवाई को लेकर प्रमुखता से खबरें की थी (देखें नीचे news link) ।
बहरहाल,नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने 4 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता की शिकायत ठीक है कि विचाराधीन पद के लिए प्रतिवादी नंबर 2 (आरुषि उनियाल) की उम्मीदवारी पर ठीक से विचार नहीं किया गया है। यह मामला यह निर्धारित करने के लिए अकादमिक परिषद के समक्ष रखा जाना चाहिए था कि क्या उनकी योग्यता को “अंग्रेजी” के विषय से संबंधित / प्रासंगिक / संबद्ध माना जा सकता है, इससे पहले कि उसे शॉर्ट-लिस्ट किया जाए, और चयन समिति के समक्ष उसका मामला रखा जाए।
यह प्रक्रिया प्रतिवादी विश्वविद्यालय द्वारा नहीं अपनाई गई है। इन परिस्थितियों में, हम सहायक प्रोफेसर (अंग्रेजी) के पद पर प्रतिवादी नंबर 2 की नियुक्ति को रद्द करते हैं।
हम उत्तरदाता विश्वविद्यालय को इस मुद्दे को रखने का निर्देश देते हैं – क्या भाषाविज्ञान में प्रतिवादी नंबर 2 की योग्यता को 2023: यूएचसी: 7753-डीबी 37 के लिए “संबंधित / प्रासंगिक / संबद्ध” माना जा सकता है। हम अकादमिक परिषद को निर्देश देते हैं कि वह भाषाविज्ञान का अध्ययन करते समय प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा किए गए पाठ्यक्रमों की पाठ्यक्रम सामग्री सहित सभी प्रासंगिक सामग्रियों की जांच करके और “अंग्रेजी” विषय की पाठ्यक्रम सामग्री के साथ तुलना करके उक्त पहलू पर अपना विचार करे।
अकादमिक परिषद अगले एक महीने के भीतर एक तर्कसंगत और मौखिक आदेश द्वारा उपरोक्त मुद्दे पर फैसला करेगी। यदि अकादमिक परिषद इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि प्रतिवादी संख्या 2 को “अंग्रेजी” के विषय से संबंधित / प्रासंगिक / संबद्ध योग्यता के रूप में माना जा सकता है, तो उसकी सेवाओं को सेवा में ब्रेक के बिना जारी रखा जा सकता है।
हालांकि, यदि अकादमिक परिषद इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि प्रतिवादी नंबर 2 के पास “भाषाविज्ञान” में योग्यता को “अंग्रेजी” के विषय से संबंधित/ प्रासंगिक / संबद्ध नहीं माना जा सकता है, तो प्रतिवादी विश्वविद्यालय याचिकाकर्ता को सहायक प्रोफेसर (अंग्रेजी) के पद पर नियुक्त करने के लिए आगे बढ़ेगा, क्योंकि उसे चयन पैनल में नंबर 2 पर रखा गया था।
याचिकाकर्ता (घनश्याम पाल) को प्रतिवादी संख्या 2 (आरुषि उनियाल) की नियुक्ति की प्रारंभिक तिथि से नियुक्ति प्रदान की जाएगी, और उसे उस तारीख से वरिष्ठता दी जाएगी। उसका वेतन उसी आधार पर निर्धारित किया जाएगा। हालांकि, वह एरियर का हकदार नहीं होगा।
उल्लेखनीय है कि इस संदर्भ में
यूजीसी को 02/11/22 को अंतिम अवसर के रूप में दस दिनों के भीतर दिनांक 27/09/22 को पारित आदेश के अनुपालन में शपथ पत्र प्रस्तुत करने को आदेशित किया गया था और आदेश के अनुपालन न होने की दशा में चेयरमैन यूजीसी पर न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही प्रारंभ करने हेतु उन्हे भौतिक रूप से अगली सुनवाई की तारीख में प्रस्तुत होने का आदेश दिया गया था।
बीते 18/5/23 को हुई अंतिम सुनवाई में यूजीसी द्वारा उक्त के विषय पूछे जाने पर दोनो विषयों के अलग-अलग होने की स्वीकरोक्ति यूजीसी के वकील द्वारा की गई जिसे न्यायालय ने संज्ञान में लेते हुए इस तथ्य को शपथ पत्र के रूप में प्रस्तुत करने के निर्देश के साथ फैसला सुरक्षित रखा था।
इस प्रकार गढ़वाल विश्वविद्यालय की गलत नीतियों एवम गड़बड़ियों का खामियाजा अब तक न केवल यूजीसी को बल्कि याचिकाकर्ता उम्मीदवार को भी झेलना पड़ा।
विदित हो कि इस मामले में असंबद्ध विषय वाले अभ्यर्थी को शॉर्ट लिस्ट करना, विभागाध्यक्ष एवम संकायाध्यक्ष की असहमति को दरकिनार किये जाने के साथ ही उनके द्वारा दिए गए इंटरव्यू के अंकों को आधे करने, वीसी एवम अन्य कुछ सदस्यों द्वारा अंक न दिए जाने आदि अनियमितताओं को माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से पुनः रेखांकित करते हुए विश्वद्यालय के समस्त तर्कों और उनके समाधान में लगाए गए सभी न्यायालय निर्णय को असंगत करार देते हुए उक्त निर्णय को दिया है ।
इस निर्णय के बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन एवं कुलपति कार्यालय में छात्रों द्वारा पुरजोर प्रदर्शन कर “फर्जी नियुक्तियां बंद करो, कुलपति हाय हाय” के नारे लगाए गए। अब देखना है कि क्या अब भी विश्वविद्यालय कोई न्यायोचित कदम उठाता है ।
वैसे,उम्मीद कम ही है कि एकेडमिक काउंसिल में इसको बचाया जा सकेगा क्योंकि अव्वल तो न्यायालय ने प्रस्तुत तथ्यों को देखते हुए निर्णय लेने को कहा है और दूसरे अभी विभिन्न प्रोफेसर जो एकेडमिक काउंसिल के सदस्य हैं मान्यता वाले मामले में सीबीआई द्वारा की गई किरकिरी और सख्त पूछताछ को भूले नहीं होंगे।
विवि में हुई अन्य नियुक्तियों पर भी विवाद जारी
इस वर्ष भी नियुक्ति और नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े कई नए मुकदमे गढ़वाल विश्वविद्यालय के खिलाफ दायर किए गए हैं जिनमें हार्टिकल्चर विभाग के प्रोफेसर पद के लिए रिट WPSB/256/2023, माइक्रोबायोलॉजी एसोसिएट प्रोफेसर पद हेतु WPSB/336/2023, माइक्रोबायोलॉजी असिस्टेंट प्रोफेसर हेतु WPSB/250/2023 और एक अन्य केस असिस्टेंट प्रोफेसर वनस्पति विज्ञान आदि प्रमुख हैं।
इन सभी में या तो नियुक्ति के निर्णय पर रोक है और या नियुक्ति को कोर्ट के आदेश पर निर्भर करने के अंतरिम आदेश भी जारी किए गए हैं। पुराने केस जो चल रहे हैं वो अलग हैं। मिशन मोड में चल रही नियुक्तियां किस मिशन पर हैं वह या तो वक्त ही बताएगा क्योंकि इस गड़बड़ झाले की विभिन्न हलकों द्वारा सीबीआई जांच पड़ताल की मांग पुरजोर उठाई जा रही है। छात्र संगठनों ने कुलपति का पुतला फूंकते हुए सीबीआई जांच की मांग को उठाते हुए फर्जी नियुक्तियां बंद करने का नारा बुलंद कर गढ़वाल विवि पर आरोपों की बौछार कर दी है।
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