कोश्यारी ने सीएम धामी को लिखे लम्बे पत्र में दी खास सलाह (देखें सम्पूर्ण पत्र)
कहा, हाईकोर्ट की शिफ्टिंग पर जनमत संग्रह से बचें
पूर्व सीएम ने पूर्व में तय गौलापार हाईकोर्ट (हल्द्वानी) का समर्थन किया
अविकल थपलियाल
देहरादून। इन दिनों मौसमी पारा भी खूब उछाल ले रहा है और राजनीतिक गलियारे भी भड़क रहे हैं।
उत्तराखण्ड की नैनीताल हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के रुख के बाद अब राजनीतिक गलियारों में भी बहस ने गर्मागर्म रूप ले लिया है।
इस गर्मागर्मी के पीछे पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी का सीएम धामी को लिखे तीन पेज के ताजे पत्र को अहम कारण माना जा रहा है। 13 मई को यह पत्र लिखा गया है।
पूर्व सीएम कोश्यारी ने 11 बिंदुओं को गिनाते हुए सीएम धामी को हाईकोर्ट की शिफ्टिंग के मुद्दे पर जनमत संग्रह से बचने की सलाह दी है।
तीन पेज के पत्र में कोश्यारी ने पूर्व में तय गौलापार,हल्द्वानी को ही हाईकोर्ट के लिए उपयुक्त जगह बताया है।
कोश्यारी ने अपने पत्र में कई बातों का जिक्र करते हुए कहा कि जनमत संग्रह से बचते हुए शासन की ओर से केन्द्र सरकार या सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से शीघ्रतिशीघ्र समस्या का समाधान निकाला जाय।
गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व नैनीताल हाईकोर्ट ने ऋषिकेश को उपयुक्त स्थान करार दिया था। ऋषिकेश की आईडीपीएल में हाईकोर्ट की स्थापना के लिए तर्क भी दिए गए।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नैनीताल से हाईकोर्ट की शिफ्टिंग के लिए गौलापार,हल्द्वानी में लगभग 25 बीघा जमीन का चयन कर लिया गया था। लेकिन पेड़ों के कटान को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नई जगह तलाशने की बात कही। इसी क्रम में नैनीताल हाईकोर्ट ने गौलापार के बजाय ऋषिकेश का नाम आगे किया। हालांकि,कोश्यारी ने अपने पत्र में गौलापार में खड़े पेड़ों की गोलाई 4 से 6 इंच ही बताई है।
हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न प्रतिक्रिया सामने आ रही है। वकीलों के धड़े भी आंदोलन पर आमादा दिखाई दे रहे हैं। लगभग हर दिन हो रही बैठकों में बाहें भी चढ़ रही है।
इधर, राज्य गठन के समय साल 2000 में भाजपा सरकार ने देहरादून को अस्थायी राजधानी और नैनीताल को हाईकोर्ट के लिए चुना था। इस बीच, हाईकोर्ट की वजह से नैनीताल में बढ़ रही भीड़ को देखते हुए पर्यावरण, पर्यटन व यातायात समेत कई अन्य समस्याएं सामने आने लगी थी।
इन्हीं सब कारणों को देखते हुए पूर्व में गौलापार हल्द्वानी पर हाईकोर्ट की स्थापना को लेकर फैसला हो गया था। लेकिन अब अदालती निर्देश के बाद हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर नये स्थानों की चर्चा भी तेजी से शुरू हो गयी है।
राजनीतिक गलियारे तपने लगे हैं..एक नये आंदोलन को लेकर मुठ्ठियाँ भी तनने लगी है..इधर, तपती गर्म हवा के बीच भगत दा की सीएम को लिखी पाती के बाद हाईकोर्ट पर जारी बहस में एक नया मोर्चा और खुलता दिख रहा है..भगत दा के पत्र के जवाब में कुछ अन्य राजनीतिक हस्तियां सामने आ कर हवाओं को कुछ और गर्म करने में विशेष भूमिका निभाएंगे…
पूर्व सीएम कोश्यारी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को
भेजी पाती
कृपया हाल में मा० उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा उच्च न्यायालय को नैनीताल से अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए नये स्थान ढूंढने के निर्देश दिये गये है, इस सम्बन्ध में मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया निम्न बिन्दुओं पर प्राथमिकता से विचार करने का कष्ट करें।
बिन्दु संख्या-01, उत्तराखण्ड (उत्तरांचल) राज्य बनाते समय विस्तृत विचार विमर्श के बाद देहरादून को तात्कालिक राजधानी एवं नैनीताल में उच्च न्यायालय बनाने का निर्णय लिया गया।
बिन्दु संख्या-02, नैनीताल में अंग्रेजों के समय से ही राजभवन, सचिवालय आदि बनाये गये हैं, यह उत्तर-प्रदेश की गर्मियों की राजधानी के रूप में प्रयुक्त होता रहा है, किन्तु नये राज्य में नैनीताल को राजधानी बनाने से मंत्रियो, विशिष्ट जनों की अधिकता से स्थानीय पर्यटन व जनजीवन को बाधा पहुंचने की सम्भावना को देखते हुए यहां क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखकर हाईकोर्ट की स्थापना की गई।
बिन्दु संख्या-03, मैं कानून का विद्यार्थी नही हूँ किन्तु लम्बे समय तक संसद व विधान मण्डल के सदस्य रहने के कारण मेरा कहना है कि न्यायालय का सम्मान रखते हुए भी राज्य की कौंन संस्था, विभाग कहां रहे इसका निर्णय संसद या विधान मण्डल ही करते आये है। मा० न्यायालय इस सम्बन्ध में निर्णय लेने लगेगें तो पी.आई.एल. कर्ता कल को किसी भी विभाग जिला, तहसील आदि की मांग को लेकर न्यायालय पहुँच जायेगे व इससें संविधान द्वारा केन्द्र या प्रदेश सरकारों को दिये गये अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की सम्भावना बढ़ जायेगी।
बिन्दु संख्या-04, जहां तक नैनीताल हाईकोर्ट के अन्यत्र स्थानांतरित करने का प्रश्न है,मेरी जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार इससे पहले से ही सहमत है।
बिन्दु संख्या-05, जैसा कि मा० उच्च न्यायालय ने अपने निर्देश में स्वयं कहा है कि (निर्देश संख्या 13 एवं 14 D) मा० उच्च न्यायालय की फुल बैंच ने गौलापार हल्द्वानी में कोर्ट को स्थापित करने की प्रकिया पर सहमति दी थी।
बिन्दु संख्या-06, शासन / प्रशासन द्वारा इस प्रक्रिया को आगे गढाते हुए गौलापर में लगभग 26 बीघा जमीन का चयन कर वन विभाग से अनापत्ति हेतु प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई है, तथा केन्द्रीय वन एव पर्यावरण विभाग से इस पर विचार कर 26 बीघे जमीन को अधिक बताते हुए इसे कुछ कम करने के लिए प्रदेश सरकार को निर्देशित किया गया है। इसमें क्षतिपूर्ति के लिए वन विभाग को अन्यत्र वन लगाने हेतु जमीन का भी चयन कर लिया गया है ऐसे में अब अन्यत्र वैकल्पिक स्थान ढूंढने हेतु दिये गये निर्देश से क्षेत्र में असन्तोष फैलने की सम्भावना से नकारा नही जा सकता है।
बिन्दु संख्या-07, वैसे भी उक्त प्रस्तावित स्थान रौखड़ के रूप में अभिलेखों में दर्शाया गया है।
बिन्दु संख्या-08, उक्त स्थान में स्थित अधिकांश पेड़ केवल 4 से 6 इंच मोटाई के ही हैं।
बिन्दु संख्या-09, मा० न्यायालय से अपने आदेश में स्वयं ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा है कि अधिवक्ताओं को virtuality (आभासी) या ऑनलाइन बहस करने का अभ्यास डालना चाहिए (आदेश कमांक-12) 1
बिन्दु संख्या-10, मा० न्यायालय ने नैनीताल में आसपास चिकित्सा आदि की उचित व्यवस्था नही होने का जिक किया गया है। गौलापार हाईकोर्ट बन जाने से हल्द्वानी में सभी प्रकार की सरकारी व नीजी अस्पतालों के माध्यम से चिकित्सा की उचित सुविधा उपलब्ध हो जायेगी। यहां से हवाई अड्डा भी NH बन जाने से 20 या 25 मिनट पंतनगर पहुंचा जा सकता है।
बिन्दु संख्या-11, मैं अत्यन्त विनम्रता व न्यायालय का पूर्ण सम्मान करते हुए आपसे अनुरोध करता हूँ कि कृपया उच्च न्यायालय के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रथा से बचा लाय। इससें भविष्य में इसका दुरूपयोग हो सकता है।
अन्त में आपसे अनुरोध है कि इस सम्बन्ध में शासन की ओर से केन्द्र सरकार या सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से शीघ्रतिशीघ्र समस्या का समाधान निकाला जाय।
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उत्तराखण्ड हाईकोर्ट शिफ्टिंग पर मांगी जनता की राय
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