गढ़वाल विश्वविद्यालय भर्ती मामले में हाई कोर्ट में हारा: भर्ती प्रक्रिया हुई दोष पूर्ण सिद्ध
अविकल उत्तराखण्ड
नैनीताल। उत्तराखंड के गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में पिछले तीन साल से चल रहे ऑनलाइन शिक्षक भर्ती में बड़ी गड़बड़ियों पर मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पूरी प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए (केस wpsb/542/2022 ) विश्विद्यालय को सख्त शब्दों में आरक्षण के नियमों का पालन ठीक से करने की हिदायत दी। 2 नवंबर को हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने गढ़वाल विवि प्रशासन के आरक्षण के नियमों का पालन नहीं करने की ओर विशेष जोर दिया। Garhwal university online teachers recruitment
गौरतलब है कि इस मामले में एक ओबीसी अभ्यर्थी सुमिता पंवार के पास राज्य का ओबीसी सर्टिफिकेट तो था किंतु केंद्र सरकार वाला उपयुक्त ओबीसी सर्टिफिकेट न होने के कारण उसे जनरल कैटेगरी में भी न मानने को लेकर याचिका दायर की गई थी।
केस की पहली सुनवाई में ही उच्च न्यायालय ने विश्विद्यालय को उच्चतम न्यायालय के आर के सभरवाल बनाम पंजाब सरकार , 1995,2SCC 745 मामले में दिए गए निर्णय को उद्धृत करते हुए कहा कि “सामान्य श्रेणी वाले अभ्यर्थी को रिजर्वेशन श्रेणी में नहीं लिया जा सकता । किंतु आरक्षण में आने वाले अभ्यर्थी सामान्य श्रेणी में भी कंपीट कर सकते हैं और नियुक्ति होने की दशा में उक्त पोस्ट की संख्या को आरक्षण के प्रतिशत में नही जोड़ा जा सकता”। और यह कह कर पूर्ण प्रक्रिया को दोषपूर्ण मानते हुए समस्त आगामी भर्ती प्रक्रिया, इंटरव्यू एवम निर्णयों पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट के रुख को देखते हुए विश्विद्यालय को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा और न्यायालय के सम्मुख पूर्ण प्रक्रिया को न्यायालय के अनुरूप वापस से करने की इच्छा जताई गई जिसपर कोर्ट ने विश्विद्यालय को उक्त कथन एफिडेविट के रूप में न्यायालय में प्रस्तुत करने को कहा था।
विश्विद्यालय ने इंटरव्यू एवम अब तक करवाए गए इंटरव्यूज के निर्णयों के लिफाफे खोलने पर लगी रोक को हटाने हेतु आवेदन भी किया किंतु इसे कोर्ट ने अपने अंतिम निर्णय में भी स्वीकार नहीं किया। अतः अब कोई भी नियुक्ति के लिफाफे नही खोले जा सकते हैं।
वैसे भी इस संबंध में प्रमोद कुमार बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय के केस WPSB/324/2022 में दिए गए अंतरिम आदेश में भी नियुक्तियों पर निर्णय /लिफाफे खोलने पर रोक अब भी प्रभावी है।
हालांकि, याचिका कर्ता के सामान्य मेरिट में भी अर्ह ना होने के कारण कोई आदेश उसके लिए नही दिए गया। किंतु 2 नवंबर को दिए गए अंतिम निर्णय ने न्यायालय के द्वारा भर्ती प्रक्रिया के अवलोकन एवम आदेश के अनुपालन में विश्विद्यालय ने जियोलॉजी विषय समेत समस्त अन्य पदों पर वापस भर्ती प्रक्रिया हेतु विज्ञापन जारी करने की इच्छा जाहिर की और सख्ती से विधि परक प्रक्रिया के पालन करने की बात कही।
विवि के इस स्टैंड का न्यायालय ने संज्ञान लिया। न्यायालय ने विश्विद्यालय को अपने दाखिल एफिडेविट के अंडरटेकिंग का अक्षरशः पालन करने की सख्त हिदायत दी। और साथ ही आरक्षण के संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा समय समय पर जारी नियमों का पालन करने को ताकीद किया। अंत में सभी समस्त पेंडिंग आवेदन रद्द कर दिए गए।
नतीजतन, यह एक ऐसा केस है जिसमे याचिकाकर्ता जीता तो नही किंतु विश्विद्यालय के लिए बड़ी हार मानी जा रही है। गढ़वाल विश्विद्यालय को स्वयं स्वीकार करना पड़ा कि विश्विद्यालय ने भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण नीति का गलत उपयोग किया है और यह प्रक्रिया का एक गंभीर दोष रहा।
हालांकि, न्यायालय ने उक्त केस मात्र को ही देखा और केस पर ही निर्णय दिया अन्यथा अगर देखा जाए तो इस निर्णय के चलते विश्विद्यालय के पिछले तीन साल से चल रही संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग गया है। जो की आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थियों के साथ अन्याय की पुष्टि तो करता ही है साथ में संपूर्ण विश्वविद्यालय प्रशासन के अक्षमता को सिद्ध करता है।
अब इस निर्णय के चलते यह देखना होगा कि गढ़वाल केंद्रीय विश्विद्यालय में 2020 से अब तक की सभी भर्तियों का भविष्य क्या होगा अगर इस संदर्भ में कोई भी याचिका या जन हित याचिका दायर हो जाय। और अगर संपूर्ण प्रक्रिया दोष पूर्ण पुनः सिद्ध होती हैं तो गढ़वाल विश्वविद्यालय की इस अक्षमता का जिम्मेदार कौन होगा, यह देखना होगा।
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