शिक्षकों की बीएलओ ड्यूटी लगाना छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ -शिक्षक नेता
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। बेशक उत्तराखंड में नई शिक्षा नीति के शुभारंभ के अवसर पर 12 जुलाई को शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने ऐलानिया अंदाज में कहा था कि शिक्षकों से अब गैर शैक्षणिक कार्य नहीं लिया जाएगा। प्रदेश के 72 हजार शिक्षक अब सिर्फ बच्चों को पढ़ाएंगे। शिक्षक संगठनों के साथ शिक्षा विभाग ने भी इस घोषणा को हाथों-हाथ लेकर खुशी जताई थी।
बावजूद विभागीय मंत्री की घोषणा के, शिक्षकों की बीएलओ ड्यूटी लगा दी गई है। बीएलओ ड्यूटी पर तैनात शिक्षक एक अगस्त से स्कूलों में नहीं हैं। परीक्षाएं चल रही हैं । एक स्कूल से तो 3 से 4 शिक्षकों की ड्यूटी लगा दी गयी है। नतीजतन एक प्रधानाचार्य को डीएम से गुहार लगानी पड़ी। BLO duty
आलम यह है कि कोर्ट ने भी साफ आदेश दिए हैं कि शिक्षकों को बीएलओ ड्यूटी में नहीं लगाया जाएगा। लेकिन सहायक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की ओर से जारी पत्र में 24 अक्टूबर तक बीएलओ कार्य करने को कहा गया है। यही नहीं, उपस्थित न होने पर संबंधित के खिलाफ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 32 के तहत कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई है। government teachers upset
गौरतलब है कि विभिन्न सर्वे रिर्पोटों और अध्ययनों में शिक्षकों पर गैर अकादमिक कार्यो के बढते बोझ को शिक्षा की गुणवत्ता सुधार में सबसे बड़ी बाधा बताया गया है। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिट्रेशन (नीपा) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्कूलों के शिक्षकों का काफी समय गैर अकादमिक कार्यो में लग जाता है, जो कि शैक्षिक गुणवत्ता में बड़ी बाधा है। निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 27 के अनुसार शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगाने पर रोक है।
प्रख्यात शिक्षाविद प्रो. यशपाल ने भी इस संदर्भ में कहा है, ‘‘शिक्षकों पर काफी सारी जिम्मेदारी डाल दी गई है। यह मान कर चला जा रहा है कि उन्हें कहीं भी लगा दो, यह ठीक नहीं है। अकादमिक कार्यो पर ध्यान देना जरूरी है।’’
देखें आदेश
यह विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है यह सब समझते हैं, बावजूद इसके शिक्षकों को बीएलओ की ड्यूटी में झोंकना तमाम अध्ययनो, रिर्पोटों और गुणवत्ता सुधार संबंधी विभिन्न अनुसंशाओं की धज्जियों उड़ाना है। यह आरटीई एक्ट का स्पष्ट उल्लंघन भी है।
छात्रों के भविष्य के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है उसकी किसी को कोई चिंता नहीं है। जुलाई से लेकर अक्टूबर-नवम्बर का समय विद्यालयों में गहन पढ़ाई, मासिक परीक्षाएं तथा विभिन्न शैक्षिक और पाठ्य सहगामी गतिविधियों-क्रियाकलापों के संचालन-सम्पादन का समय होता है। इसके बाद तुरन्त अर्धवार्षिक परीक्षाएं हो जाती हैं। बीएलओ ड्यूटी में संलग्न शिक्षकों का कोर्स पूरा नहीं हो पाता है जिससे बच्चों के परीक्षाफल पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
एक शिक्षक जो कि उच्चस्तरीय शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त होता है तथा लेवल-8 एवं 9 स्तर का कर्मी होता है। उसकी विशेषज्ञता शिक्षण में होती है। उनसे बीएलओ स्तर का कार्य लेना न सिर्फ शिक्षक की क्षमताओं, मानवसंसाधन और आर्थिक संसाधनो का दुरूपयोग है साथ ही शिक्षकों के लिए अपमानजनक, तनावपूर्ण और उलझन भरा भी है।
यह भी जरूरी है कि शिक्षकों से लिए जाने वाले इस तरह के गैरशैक्षणिक कार्यों को आउटसोर्सिंग से कराया जाय। शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक अग्रिम पंक्ति पर लड़ने वाला योद्धा है।
विद्यालयी शिक्षा विभाग ने विद्यालयों में पठन-पाठन और इन गतिविधियों के संचालन हेतु दो कैलेण्डर जारी किये गए हैं। ‘शैक्षिक पंचांग’ के नाम से एक पंचाग निदेशक माध्यमिक शिक्षा उत्तराखण्ड के द्वारा अप्रैल माह में जारी किया गया और दूसरा ‘शैक्षिक गुणवत्ता संवर्धन वार्षिक कैलेण्डर’ के नाम से निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण, उत्तराखण्ड के द्वारा सितम्बर माह में जारी हुआ है। दोनो कैलेन्डरों को एक ही बनाया जा सकता था।
सितम्बर-अक्टूबर ही पढ़ाई का महत्वपूर्ण समय होता है। जबरन बीएलओ ड्यूटी लगाने से सबसे पहले वो काम प्रभावित होता है जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, जिसके लिए विद्यार्थी स्कूल आते है। महत्वपूर्ण कार्य है पठन-पाठन। उसके बाद पाठ्यसहगामी क्रियाकलाप भी प्रभावित होने लगते हैं- डॉ० अंकित जोशी, अध्यक्ष, रा०शि०सं एससीईआरटी शाखा
पहले से ही कई कार्य है शिक्षकों के पास
शिक्षकों के पास पहले से ही पठन-पाठन के साथ कई पाठ्यसहगामी, पाठ्येत्तर और गैरशैक्षणिक कार्यों की जिम्मेदारियां हैं। यथा- मध्याहन भोजन हेतु राशन-पाणी, तेलमासाले का इंतजाम, स्कूल में निर्माण कार्यों, बिजली, पानी, शौचालय, भवन रखरखाव के सम्पादन की जिम्मेवारी, कक्षाअध्यापक की बड़ी जिम्मेदारी का कार्य, विद्यार्थियों का प्रवेश, वजीफा, बैंकखाता खुलवाना, आधार कार्ड बनवाना, समग्र शिक्षा की विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन, उनकी सूचनाएं तैयार करना, बिलबाउचर इकट्ठे करना, कैशबुक, लेजर, स्टाक पंजिका तैयार करना, आडिट कराना, जनगणना, आर्थिक गणना, बाल गणना, पशुगणना, मतदाता सूची, मतदाता पहचान पत्र, बीआरसी-सीआरसी से पुस्तक उठान, पाठ्यपुस्तक वितरण, वाचनालय, लाइब्रेरी, स्काउटिंग-गाइडिंग, रेडक्रास, खेल गतिविधियां, स्वास्थ्य संबंधी कार्य यथा- पल्स पोलियो अभियान, कोविड टीकारण, कृमिनाशक गोलियां खिलाना, विद्यालयों में विभिन्न राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय दिवसों को मनाना, वृक्षारोपण, स्वच्छता पखवाड़ा, प्रवेशोत्सव, स्वगतोत्सव, आनन्दम कार्यक्रम, प्रतिभादिवस, शंकासमाधान दिवस, इंगलिश स्पीकिंग डे, परख कार्यक्रम, मासिक परीक्षाएं, एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम, विज्ञान महोत्सव, इंस्पायर एवार्ड, गणित क्विज, कैरियर काउंसिलिंग, जिज्ञासा, बाल चैपाल/शोध मेला, कौशलम् कार्यक्रम, सतत व्यावसायिक दक्षता विकास, राष्ट्रीय जनसंख्या शिक्षा कार्यक्रम, राष्ट्रीय कला उत्सव, मातृभाषा उत्सव आदि-आदि। इसके साथ विद्यार्थियों के पठन-पाठन और पाठ्यक्रम पूरा करने की जो सर्वप्रमुख जिम्मेदारी शिक्षकों पर होती है वो तो है ही।
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