उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद गढ़वाल विवि ने खोल दिए नियुक्ति लिफाफे

अविकल उत्तराखण्ड

ऑनलाइन शिक्षक भर्ती गड़बड़ी- गढ़वाल विश्वविद्यालय ने की उच्च न्यायलय के आदेश की अवमानना.

एक हफ्ते पहले बुलाई गई एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में खोल दिए गए 50 से अधिक नियुक्ति लिफाफे

नैनीताल। भर्ती मामले में सुमिता पंवार बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय के केस में हाई कोर्ट में हार के साथ गढ़वाल विश्विद्यालय की संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया दोष पूर्ण सिद्ध होने के बाद भी गढ़वाल विश्वविद्यालय को अक्ल नहीं आई। पता चला है कि उच्च न्यायालय की रोक के बावजूद एक हफ्ते पहले दर्जनों नियुक्तियों (लगभग 50 से अधिक) के लिफाफे आपाधापी में बुलाई एक्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में खोल दिए गए हैं जिनमें से कुछ अभ्यर्थी जॉइन भी कर चुके हैं ।

सूत्रों के अनुसार गढ़वाल विश्वविद्यालय ने एक्जीक्यूटिव काउंसिल ने समस्त सदस्यों को अंधेरे में रखा और नियुक्ति करने पर किसी भी रोक के ना होने की बात कहकर लिफाफे खुलवा दिए।


विदित हो कि उत्तराखंड के गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में पिछले तीन साल से चल रहे ऑनलाइन शिक्षक भर्ती में बहुत से मुकदमे हो रखे हैं जिनमे उत्तराखंड हाई कोर्ट में बहुत से मुकदमो के माध्यम से हुई गड़बड़ियों को चुनौती दी गई हैं।

गौरतलब है कि विश्विद्यालय प्रशासन की शिक्षक भर्ती में हील हवाली और मनमानी को मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पूरी प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए केस WPSB/542/2022 में विगत 2 नवंबर को विश्विद्यालय के खिलाफ फैसला सुनाते हुए विश्विद्यालय को सख्त शब्दों में आरक्षण के नियमों का पालन ठीक से करने की हिदायत दी थी। साथ ही पूर्ण प्रक्रिया को दोषपूर्ण मानते हुए पहली सुनवाई में ही समस्त आगामी भर्ती प्रक्रिया, इंटरव्यू एवम निर्णयों पर रोक लगा दी थी। जिसपर विश्विद्यालय को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा था।

विश्विद्यालय ने इंटरव्यू एवम अब तक करवाए गए इंटरव्यूज के निर्णयों के लिफाफे खोलने पर लगी रोक को हटाने हेतु आवेदन भी किया था। किंतु इसे कोर्ट ने अपने अंतिम निर्णय में भी स्वीकार नहीं किया था। सनद रहे की उच्च न्यायालय ने अपने इस निर्णय में अंत में सभी समस्त पेंडिंग आवेदन रद्द कर दिए थे।अतः कोई भी नियुक्ति के लिफाफे खोले ही नहीं जा सकते थे।


वहीं दूसरी ओर, इस संबंध में प्रमोद कुमार बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय के केस WPSB/324/2022 में दिए गए अंतरिम आदेश में भी नियुक्तियों पर निर्णय /लिफाफे खोलने पर रोक अब भी प्रभावी है। इस हालत में जब कि विश्विद्यालय ने अपनी गड़बड़ी स्वीकार की, विश्विद्यालय ने भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण नीति का गलत उपयोग कर प्रक्रिया को दूषित किया और यह उच्च न्यायालय में साबित भी हुआ।

विश्विद्यालय ने इस पर आत्म मंथन करने के बजाय दोषपूर्ण साबित नियुक्ति प्रक्रिया को दुस्साहस दिखाते हुए दर्जनों नियुक्ति के लिफाफे खोल कर उच्च न्यायालय की घोर अवमानना की है।

जहां एक ओर निर्णय के चलते विश्विद्यालय के पिछले तीन साल से चल रही संपूर्ण भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लगने की संभावना थी वहां विश्विद्यालय ने अपना मनमाना और अवैधानिक रुख अपनाते हुए न केवल संविधान और न्यायालय का मजाक उड़ाया है वरन आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ भी घोर अन्याय किया है।


अब देखना होगा कि उच्च न्यायालय, यूजीसी और सामाजिक न्याय मंत्रालय इस बारे में गढ़वाल विश्वविद्यालय प्रशासन को किस तरह कार्यवाही करता है।

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