विवि में 2004 व 2007 में फार्मेसी विभाग में नियुक्त शिक्षकों को सेवालाभ दिए जाने सम्बन्धी प्रकरण
गढ़वाल विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के शिक्षकों के पक्ष में सुप्रीम फैसले के बावजूद विश्विद्यालय कर रहा अवमानना, अवमानना के मामले में कुलपति और कुलसचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के सुप्रीम आदेश
गढ़वाल क्रेन्द्रीय विवि के एक अवमानना के केस में 11 अप्रैल को कुलपति और कुलसचिव को सुप्रीम कोर्ट में पेश होना है। विवि के फार्मेसी विभाग के शिक्षक कई साल से लड़ रहे कानूनी जंग
अविकल उत्त्तराखण्ड
नई दिल्ली/श्रीनगर। गढ़वाल विवि के फार्मेसी विभाग के शिक्षकों को सेवालाभ दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कुलपति व कुलसचिव को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए हैं। अवमानना के मामले में विवि के कुलपति व रजिस्ट्रार 11 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में पेश होंगे।
गढ़वाल विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के शिक्षकों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला 3 सितंबर 2021 को आया था।
इस मामले में उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत प्रदत्त चयन प्रक्रिया के जरिये 2004 एवम् 2007 में नियुक्त किये गये फार्मेसी विभाग के शिक्षकों ने इस अधिनियम के सांविधिक योजना के उलट तीन साल के कांट्रैक्ट पर की गयी नियुक्ति की मनमानी शर्तों को चुनौती दी थी। कोर्ट ने शिक्षकों की नियुक्ति को वैधानिक एवम् नियम संगत माना और विश्वविद्यालय द्वारा नियुक्ति पत्र में विधिवत नियुक्ति के बजाय कॉन्ट्रैक्ट नियुक्ति देने को अवैधानिक माना।
और अपीलकर्ताओं को सभी सेवा लाभ देने का आदेश दिया है। यह फैसला एक ऐतिहासिक फैसला है क्यूंकि कोर्ट ने फैसले एक एक महत्वपूर्ण तथ्य को ज्यूडिशियल नोटिस के तौर पर रखा है कि कर्मचारी को उस स्तर पर रोजगार के नियमों और शर्तों पर सवाल उठाने से नहीं रोका जा सकता है जहां वह खुद को पीड़ित पाता है। न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा, “यदि रोजगार की शर्तें संबंधित कानून के तहत वैधानिक आवश्यकता के अनुरूप नहीं है तो कर्मचारी उसे चुनौती देने के लिए स्वतंत्र है और उसे उस स्तर पर पूछताछ करने से नहीं रोका जा सकता है, जहां वह खुद को पीड़ित पाता है।”
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, विश्वविद्यालय की दलील थी कि चूंकि इन शिक्षकों ने नियुक्ति पत्र में निहित नियमों और शर्तों को स्वीकार कर लिया है, इसलिए वे अब इसे चुनौती नहीं दे सकते। इस तर्क को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि सरकारी नौकरियों में नियुक्त व्यक्ति जिस विभाग में नौकरी करने के लिए रखा गया है उससे इतर नियमों और शर्तों को चुनने के लिए आजाद नहीं है। कोर्ट ने कहा, “यह बिना कहे चलता है कि नियोक्ता हमेशा एक प्रमुख स्थिति में होता है और नियोक्ता कर्मचारी के लिए रोजगार की शर्तों को निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है। हमेशा हाशिये पर रहने वाले कर्मचारी शायद ही रोजगार के नियमों और शर्तों में मनमानी की शिकायत करते हैं।
यह न्यायालय इस तथ्य का न्यायिक नोटिस ले सकता है कि यदि कोई कर्मचारी रोजगार के नियमों और शर्तों पर सवाल उठाने की पहल करता है, तो उसकी नौकरी ही चली जायेगी। सौदेबाजी की शक्ति नियोक्ता के पास ही निहित है और संबंधित प्राधिकार द्वारा निर्धारित शर्तों को स्वीकार करने के लिए कर्मचारी के पास कोई विकल्प नहीं बचता है। यदि यह कारण है, तो कर्मचारी शर्तों को चुनौती देने के लिए स्वतंत्र है, यदि वे शर्त कानून के तहत वैधानिक आवश्यकता के अनुरूप नहीं हैं और उसे उस स्तर पर पूछताछ करने से नहीं रोका जा सकता है जहां वह खुद को व्यथित पाता है।”
गौरतलब है कि फार्मेसी विभाग के एक एसोसिएट प्रोफेसर और सात अस्सिटेंट प्रोफेसर्स द्वारा हाईकोर्ट में 2011 में अपील दायर की गई थी जिसपर हाईकोर्ट ने 2013 में गढ़वाल विश्वविदयालय के हक़ में में फैसला दिया । इस फैसले को शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी । सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिक्षकों के हक़ में आया जिससे अपीलकर्ता शिक्षक पुराने सभी सेवालाभ के हकदार हो गए।
विश्विद्यालय के द्वारा कोर्ट के फैसले का पालन ना करने पर न्यायालय ने 11 फरवरी को अवमानना का नोटिस जारी कर कुलपति प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल और कुलसचिव डॉ अजय खंडूरी को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर फैसले के पालन ना किए जाने का स्पष्टीकरण मांगा।इस फैसले के बाद भी कोरोना काल में कई महीने का वेतन भुगतान तक शिक्षकों को नहीं हुआ है।
विश्विद्यालय का उपेक्षापूर्ण एवम् पूर्वाग्रह से ग्रस्त रवैए से विश्विद्यालय के ही शिक्षकों को दी जा रही मानसिक एवम् आर्थिक क्षति का कारण सु प्रीम कोर्ट ने अवमानना याचिका को सुनने के बाद अधिकारियों से पूछा है। अब अवमानना के केस में 11 अप्रैल को कुलपति और कुलसचिव को सुप्रीम कोर्ट में पेश होना है।
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