अंग्रेजी विभाग के शिक्षक भर्ती मामले पर उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के सख्त आदेश के बाद यूजीसी रखेगा आज अपना पक्ष
जवाब ना देने पर चेयरमैन यूजीसी पर अवमानना के केस के थे आदेश
अविकल उत्तराखण्ड
श्रीनगर/देहरादून। उत्तराखंड के गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में गड़बड़झाले से परिपूर्ण ऑनलाइन शिक्षक भर्ती की पूरी प्रक्रिया दोषपूर्ण सिद्ध होने के बाद गड़बड़ियों के अंबार पर से धूल की एक और मोटी परत आज उत्तराखंड हाई कोर्ट में हटने की संभावना है। विदित हो कि बीते 2 नवंबर को सुमिता पंवार बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय वाले मामले में गढ़वाल विश्वविद्यालय को मुंह की खानी पड़ी और न्यायालय द्वारा भर्ती प्रक्रिया को दोषपूर्ण करार दिए जाने के बाद विश्विद्यालय को समस्त पदों को पुनः विज्ञापित कर विधिसम्यक रूप से कार्यवाही करने का शपथ पत्र दाखिल करना पड़ा था।
वहीं 2 नवंबर को ही अंग्रेजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती मामले घनश्याम पाल बनाम गढ़वाल विश्वविद्यालय (WPSB/204/2021) में माननीय मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यूजीसी को उसकी चुप्पी पर आड़े हाथों लेते हुए यूजीसी को अंतिम अवसर के रूप में दस दिनों के भीतर दिनांक 27 सितम्बर 2022 को पारित आदेश के अनुपालन में शपथ पत्र प्रस्तुत करने को आदेशित किया गया था।
आदेश के अनुपालन न होने की दशा में चेयरमैन यूजीसी पर न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही प्रारंभ करने हेतु उन्हे भौतिक रूप से 23 नवम्बर को होने वाली सुनवाई की तारीख में प्रस्तुत होने का आदेश दिया गया था। आज केस की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश के खंडपीठ में होनी है।
देखना होगा कि क्या यूजीसी दिनांक 27 सितम्बर 22 के आदेश में कोर्ट द्वारा इंगित गढ़वाल विश्वविद्यालय की कारगुजारियो पर कड़ा रुख अपनाता है कि नही! विदित हो कि इस मामले में असंबद्ध विषय वाले अभ्यर्थी को शॉर्ट लिस्ट करना, विभागाध्यक्ष एवम संकायाद्यक्ष द्वारा दिए गए इंटरव्यू के अंकों को आधे करने, वीसी एवम अन्य कुछ सदस्यों द्वारा अंक न दिए जाने आदि अनियमितताओं को माननीय उच्च न्यायालय ने 27 सितम्बर 2022 में जिक्र किया था और यूजीसी को इन्ही सब मामलों में शपथ पत्र प्रस्तुत करने को कहा था।
हलकों में खबर है कि यूजीसी का रुख इस केस का ही नही वरन संपूर्ण विश्वविद्यालय प्रशासन का भी भविष्य तय कर सकता है। हाल ही में गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा कोर्ट की रोक के बावजूद नियुक्ति के लिफाफे खोल कर दो दर्जन नियुक्ति कर न्यायालय द्वारा पारित आदेश एवम निर्णय की अवमानना की गई ।
अवमानना का न्यायालय क्या और कैसे संज्ञान लेता है वह देखना दिलचस्प होगा। यह अवमानना के संज्ञान का मामला इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है कि अगर विश्वविद्यालय प्रशासन न्यायालय के आदेश का पालन करना जरूरी ही नही समझता तो किसी मुकदमे को लड़ने का क्या औचित्य है?
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