यूकोस्ट एवं ग्राफिक एरा के साझा शोध के नतीजे चौंकाने वाले
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून। उत्तराखंड के कई इलाकों में ऐसी हल्दी की भी खेती हो रही है, जो गुणवत्ता में देश के प्रमुख हल्दी उत्पादक क्षेत्रों को भी पीछे छोड़ देती है। लेकिन जानकारी के अभाव में किसान इसे सामान्य हल्दी की तरह बो और बेच रहे हैं।
सामान्यता जनसाधारण हल्दी लेते समय हल्दी की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देता बल्कि बाज़ार से कोई भी हल्दी को खरीद लेता है। लेकिन अधिक गुणवत्ता वाली हल्दी का सेवन से मानव शरीर पर ज्यादा अच्छे प्रभाव डालता है। लोगों की सेहत को अच्छा रखने और हल्दी की खेती को ज्यादा लाभदायक बनाने के लिए के यूकोस्ट और ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के संयुक्त तत्वावधान में संचालित एक शोध परियोजना से पता चला है कि उत्तराखंड में विश्व स्तरीय गुणवत्ता वाली हल्दी भी होती है।
यूकोस्ट की इस परियोजना के लिये ग्राफिक एरा का लाइफ साईंस डिपार्टमेंट ने उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों के साथ ही अन्य राज्यों की हल्दी का भी गहन विश्लेषण किया है।
बहुत विस्तृत क्षेत्र में किए गए इस अध्ययन में अन्य संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिकों को भी जोड़ा गया है। इस अध्ययन के दौरान सामने आया है कि उत्तराखंड के दूरस्थ इलाकों में परम्परागत रूप से बोई जाने वाली हल्दी में कुर्किमिन नामक तत्व की मात्रा काफी अधिक है। यही वह तत्व है जिसे हल्दी में विद्यमान औषधीय गुणों का पैमाना माना जाता है। अब तक के अध्ययन के आधार वैज्ञानिक मान रहे हैं कि इस हल्दी की खेती उत्तराखंड के गांवों से पलायन रोककर वहां समृद्धि लाने में बहुत मददगार साबित हो सकती है। इसके औषधीय गुणों के कारण दुनिया भर के बाजारों में इसकी बहुत मांग है।
यूकोस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल ने कहा कि हल्दी की बेहतरीन किस्म खोजने और उसे विकास से जोड़ने के महत्वपूर्ण उद्देश्य से यह परियोजना शुरू की गई है। ज्यादातर स्थानों पर लोग सामान्य किस्म की हल्दी की खेती कर रहे हैं जिसके ज्यादा दाम नहीं मिल पाते। हल्दी की विशेष किस्मों को विकसित करने के साथ ही इस परियोजना के जरिये किसानों को उसकी विशेषताओं की जानकारी देकर उस किस्म की हल्दी की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। ताकि उन्हें अपने गांव में रहकर ही अच्छी आमदमी के अवसर मिल सकें। इससे पहाड़ों से पलायन रोकने और वहां समृद्धि लाने में मदद मिलेगी।
हल्दी परियोजना के संचालक प्रो. आशीष थपलियाल ने बताया कि उत्तराखंड के 79 स्थानों के साथ ही हल्दी उत्पादन के लिए मशहूर देश के अन्य हिस्सों की हल्दी के नमूनों का ग्राफिक एरा और सीएसआईआर – आईएचबीटी पालमपुर की प्रयोगशालाओं में परीक्षण किया गया है। परीक्षण में मेघालय की लैकाडांग, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पाइस रिसर्च (आईसीएआर), कोजईकोडई, केरल की हल्दी की पांच प्रजातियों के विश्लेषण से पता चला है कि इनमें उत्तराखंड के कुछ क्षेत्रों में परम्परागत रूप से बोई जाने वाली हल्दी में कुर्किमिन की मात्रा इनके बराबर और कुछ में इसके बनिस्पत काफी अधिक है।
डॉ. थपलियाल ने बताया कि अभी खुद किसानों को भी पहाड़ की हल्दी की इस विशेषता की जानकारी नहीं है। वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित लैकाडांग और कुछ अन्य प्रजातियों की हल्दी बाजारों में सामान्य रूप से तीन से चार गुनी कीमत पर बिकती है। उत्तराखंड के पौड़ी, उत्तरकाशी और अल्मोड़ा के कई हिस्सों में ऐसी हल्दी पाई गई है जो अपने औषधीय गुणों के कारण इनके बराबर या इनसे अधिक महंगी बिक सकती है। हालांकि लोगों को इसके बारे में जानकारी नहीं है।
परियोजना में ग्राफ़िक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के के शोधकर्ताओं के साथ ही यूकोस्ट की वैज्ञानिक डा० अपर्णा सरीन, जी.पी.जी.सी. रायपुर, देहरादून की वैज्ञानिक डा० मधु थपलियाल, आई.एच.बी.टी. पालमपुर, हिमाचल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा० उपेन्द्र शर्मा भी सम्मिलित हैं। ग्राफिक एरा एजुकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष प्रो. कमल घनशाला ने कहा कि इस परियोजना के नतीजे नई उम्मीदें जगाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि खेती को अधिक लाभदायक बनाने के लिए प्रयोगशालाओं को खेतों से जोड़ना क्रांतिकारी बदलावों की वजह बन सकता है।
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