विस्मृत विभूतियों का नायाब संकलन है ‘उत्तराखण्ड की विभूतियां ‘

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। दून पुस्तकालय में आयोजित वरिष्ठ पत्रकार व इतिहासकार डॉ. योगेश धस्माना के संकलन ‘उत्तराखण्ड की विभूतियां ‘ का लोकार्पण किया गया।

इस अवसर पर प्रो. बी.के.जोशी, प्रो. अतुल सकलानी, प्रो.सुनील कुमार सक्सेना,जयपाल सिंह नेगी, गिरीश बहुगुणा मौजूद रहे। .

पुस्तक में उत्तराखण्ड के 53 संग्रामी व्यक्तित्त्व, 31 सामाजिक / सांस्कृतिक हस्तियों,9 महिला संग्रामी व्यक्तित्व,16 लोक विरासत से जुड़े संवाहक, 12 पत्रकारिता व 8 अन्य विविध क्षेत्रों से जुड़े . व्यक्तित्वों का जीवन वृत्त देने का प्रयास किया गया है।

दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के अध्यक्ष प्रो. बी. के. जोशी ने इतिहासकार डॉ योगेश धस्माना द्वारा लिखित व संकलित पुस्तक उत्तराखंड की विभूतियां पुस्तक का लोकार्पण करते हुए कहा कि, पहाड़ के विस्मृत और महत्वपूर्ण लोगों की प्रेरक जीवन यात्रा पर लिखित महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

बीके जोशी ने कहा कि उत्तराखंड एक विषम परिस्थितियों वाला प्रदेश है इसकी गिनती देश के कठिन क्षेत्रों में की जाती है लेकिन उत्तराखंड के निवासियों में इन्हीं कठिन परिसिथ्तियों का सामना करते हुए दुनिया के पैमाने पर एक अलग पहचान कायम की है। उन्होंने कहा कि भले ही भौगोलिक रूप से उत्तराखंड दुनिया के कोने में स्थित है लेकिन उत्तराखंड की विभूतियांे ने दुनिया में छाप छोड़ी है।

जोशी ने कहा कि उत्तराखंड ने हर कालखंड में दुनिया को विभूतियां दी हैं जिन्होंने अपनी अलग राह बनाई है।

समाजसेवी गिरीश बहुगुणा ने कहा कि ब्रिटिश काल में जैसे ही उत्तराखंड के पर्वतों में शिक्षा का प्रसार हुआ हमारे पूर्वजों ने दुनिया में अपनी चमक बिखेर दी। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम हो या देश को सैन्य योगदान सभी जगह उत्तराखंड की विभूतियांे ने अपना महति योगदान दिया है। उन्होंने याद कि भारत और विश्व के हर क्षेत्र में उत्तराखंड के पहाड़ों से निकले लोगों ने अपना लोहा मनवाया है।

गढ़वाल विश्वविद्यालय के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. अतुल सकलानी ने अपने संबोधन में कहा कि लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से जन सामान्य इतिहास को बहुत गंभीर अध्येता की तरह विश्लेषित किया है जो सामाजिक अध्येताओं के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।
प्रो. सकलानी ने कहा कि उत्तराखण्ड की विभूतियां पुस्तक हिस्ट्री फ्राॅम बिलो का सटीक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि इस किताब में स्वतंत्रता संग्रामियों, लेखकों, साहित्यकारों व समाज के अन्य क्षेत्रों से जुड़ी विभूतियों की बात की गई है। यह किताब युवाओं के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगी। इस अवसर पर उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंड के योगदान को भी रेखांकित किया।

डाॅ. गिरिधर पण्डित ने कहा कि यह एक मौलिक काम है। डाॅ. धस्माना ने शिव प्रसाद डबराल और डाॅ. भक्तदर्शन की परम्परा को आगे बढ़ाया है। प्रो. सुनील कुमार ने कहा कि योगेश धस्माना ने इस किताब में उत्तराखंड की विभूतियों को समाविष्ट किया है। यह किताब इतिहास और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए उपयोगी है। उन्होंने कहा कि किताब में अनुसूया प्रसाद बहुगुणा, महाबीर त्यागी, रास बिहारी बोस, मौलाराम तोमर, मुकुन्दी लाल, भजन सिंह ‘सिंह’ आदि महान विभूतियों को स्थान दिया है।

जीपीएस नेगी ने कहा कि इंटरनेट के युग में डाॅ. योगेश धस्माना ने इनर कनेक्ट करने वाली किताब लिखी है.उन्होनें कहा किसेवा निवृत्ति के बाद भी लेखक दून लाइब्रेरी के साथ जुड़ कर लेखन सृजन में लगे हैं।

इस अवसर पर केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल विश्वविद्यालय पौड़ी परिसर ,इतिहास विभागाध्यक्ष रहे प्रो. सुनील कुमार सक्सेना ने कहा कि वर्तमान पुस्तक भक्त दर्शन द्वारा लिखित गढ़वाल की दिवंगत विभूतियों के बाद यह उत्तराखंड पर केन्द्रित पहली पुस्तक आई है जिसमें कला साहित्य,इतिहास,पर्यावरण महिला संग्राम के व्यक्तित्वों,सामाजिक सरोकारों सहित दुर्लभ और महत्वपूर्ण पत्रकारों के बारे में भी उपयोगी जानकारी उनके चित्रों सहित उपलब्ध कराई गयी है।

इस अवसर पर गिरीश चंद्र बहुगुणा को शाल वस्त्र और पुस्तकों की प्रतियां भेंट कर सम्मानित भी किया गया।उन्होंने दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के प्रयासों से बौद्धिक विमर्श और पढ़ने लिखने की नई संस्कृति विकसित होने से आम जन बच्चों को उचित मार्ग दर्शन बल मिलेगा।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने अतिथियों का स्वागत किया और पुस्तक पर डॉ. योगेश धस्माना ने परिचय दिया। इस कार्यक्रम का संचालन सुपरिचित रंगकर्मी डॉ. वी. के. डोभाल ने किया।

इस अवसर पर डॉ. अतुल शर्मा, देवेन्द्र कांडपाल, के बी नैथानी, शैलेन्द्र नौटियाल, देवेन्द्र बुढ़ाकोटी, राधिका धस्माना, डॉ. एस.सी. खर्कवाल, उत्कर्ष, डॉ. ललित राणा, विजय भट्ट सहित सामाजिक इतिहास के अध्येता, साहित्यकार, लेखक, रंगकर्मी, प्रबुद्ध जन, युवा पाठक सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

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