2001 में कुर्सी से हटने के बार स्वामी ने इंटरव्यू में पार्टी नेताओं पर लगाये थे गंभीर आरोप
स्पीकर प्रकाश पंत को आधे घण्टे तक सदन की कार्यवाही करनी पड़ी थी स्थगित
अविकल थपलियाल
देहरादून। बात 2001 की है। भाजपा की अंतरिम सरकार। नित्यानन्द स्वामी मुख्यमंत्री। विधानसभा में भाजपा का बोलबाला। विपक्ष में कांग्रेस से डॉ इंदिरा ,के सी बाबा , सपा से मुन्ना सिंह चौहान, अम्बरीष कुमार के अलावा शायराना अंदाज वाले काजी मोइनुद्दीन। तेज तर्रार इंदिरा ह्रदयेश की लीडरशिप में विपक्ष के वाकपटु विधायक पहले डॉ नित्यानंद स्वामी और फिर बाद में कोश्यारी सरकार को घेरने से नहीं चूकते थे। कई मौकों पर इंदिरा ह्रदयेश के संसदीय ज्ञान व मुद्दों पर मंत्रियों को बगलें झांकने पर मजबूर होना पड़ता था।
संसदीय नियमों व परम्पराओं की जानकार व बोल्ड इंदिरा ह्रदयेश अपनी बेबाकी, जिंदादिली, हंसी-ठट्टा, अपनत्व,वाकपटुता व विशिष्ट कार्यशैली के बल पर उंगलियों में गिने जाने वाले विपक्षी विधायकों को जोड़े रखती थी।
मुद्दों को लपकने की कला में बहुत माहिर थी। अक्टूबर 2001 में सीएम नित्यानन्द स्वामी की विदाई हो चुकी थी। लखनऊ से ट्रांस्फर होकर मैं हिंदुस्तान अखबार के लिए देहरादून में काम कर रहा था। दीवाली के आस पास मैंने स्वामी जी को फोन किया। इंटरव्यू करने की इच्छा जताई। सीएम की कुर्सी से हटने के बाद अनमने चल रहे स्वामी जी बहुत मनुहार के बाद इंटरव्यू के लिए तैयार हो गए।
हवा में हल्की ठंडक घुलने लगी थी। मैं पार्क रोड स्थित उनके आवास पर पहुंचा। स्वामी जी से काफी सवाल-जवाब हुए। आहत स्वामी जी ने स्वंय को कुर्सी से हटाए जाने के कारण गिनाए। अपनी असमय विदायी के लिए कुछ पार्टी नेताओं को भी जिम्मेदार ठहराया। जो मैं नोट कर रहा था। उसे स्वामी जी ने भी चेक किया। मुझे हैडलाइन मिल चुकी थी। वापस लौटा और ” माफिया ने मुझे कुर्सी से हटवाया” इस शीर्षक के साथ इंटरव्यू छाप दिया।
राष्ट्रीय दैनिक “हिंदुस्तान” में इंटरव्यू छपते ही राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मच गया। नया नया राज्य बना था। स्वामी के इस इंटरव्यू की भनक लगते ही इंदिरा जी ने मुझसे तत्काल बात की। इंटरव्यू के फोटोस्टेट करवाये। साथी विपक्षी विधायकों को इंटरव्यू की कापी दी। इसी समय विधानसभा सत्र भी शुरू हुआ। और स्वामी जी कहे शराब माफिया सम्वन्धी बयान के राजनीतिक महत्व को बूझते हुए इंदिरा ह्रदयेश ने सदन की कार्यवाही शुरू होते ही मामला उठा दिया। सत्तारूढ़ भाजपा नेता इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार नही थे। सदन में इंदिरा की अगुवाई में विपक्ष के चारों विधायकों ने जमकर हंगामा खड़ा कर दिया। नारेबाजी करते हुए स्वामी के आरोपों पर सरकार से जवाब मांगने लगे। सरकार से कहा कि पूर्व सीएम स्वामी के आरोपों की जांच की जाय।
स्पीकर प्रकाश पंत पहली बार आयी इस विकट समस्या के निदान की राह ढूंढने लगे। चूंकि, मामला अपनी ही पार्टी के पूर्व सीएम के विस्फोटक बयान से जुड़ा था। और सरकार पूरी तरह घिर चुकी घी। नारेबाजी, वेल में धरना कर इंदिरा ह्रदयेश ने सत्ता पक्ष पर भारी दबाव बना दिया।
नतीजतन, स्पीकर पंत को पहली बार उत्त्तराखण्ड विधानसभा के सदन की कार्यवाही आधे घण्टे के लिए स्थगित करनी पड़ी। बाद में स्पीकर प्रकाश पंत ने कहा था कि वो लम्हा मेरे लिए बेहद कठिन था। एक तरफ इंदिरा जी अपने स्टैंड पर मजबूती से डटी थी। तो दूसरी तरफ पूर्व सीएम के बयान से सदन के अंदर गंभीर हालात पैदा हो गए थे। विपक्ष यह भी आरोप लगा रहा था कि भाजपा नेताओं ने शराब माफिया का सहारा लेकर स्वामी को कुर्सी से हटवाया। जल्द निर्णय भी लेना था।
खास बात यह थी कि हंगामे के दौरान पूर्व सीएम नित्यानन्द स्वामी सदन में मौजूद नहीं थे। सदन की कार्यवाही स्थगित करने के बाद स्वामी जी को विधानसभा बुलवाया गया। चुनावी साल में सरकार को किरकिरी से बचाने के लिए पूर्व सीएम से गहन मंत्रणा की गई। बन्द कमरे में मंत्रणा हुई। सीएम कोश्यारी पूरे मामले को लेकर काफी असहज भी रहे। और इस संकट से निकलने के लिए सदन के अंदर की कार्ययोजना बना ली गयी।
फिर से सदन की कार्यवाही शुरू होते ही स्वामी जी ने एक लिखित वक्तव्य पढा। जिसका कुल लब्बोलुआब यह था कि मैंने इंटरव्यू में ऐसा कुछ नही कहा । शराब माफिया वाली बात नहीं की। सरकार की ओर से वक्तव्य आ चुका था। ऊपरी तौर पर इस वक्तव्य के बाद स्वामी का सम्मान करते हुए इंदिरा ह्रदयेश ने सदन की शेष कार्यवाही में हिस्सा लिया।
बेशक स्वामी जी अपने पूर्व में दिए गए बयान से पलट गए। लेकिन इंदिरा ह्रदयेश के तेवरों से पूरे प्रदेश में भाजपा और शराब माफिया के गठजोड़ का संदेश तो जा ही चुका था। मुद्दों को पकड़ने और उनका राजनीतिक लाभ लेने की कला में माहिर थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि पार्टी के दबाव में बेशक स्वामी जी अपनी बात से मुकर गए। लेकिन जनता सच जानती है। कुछ महीने बाद होने वाले चुनाव में स्वामी जी की असमय विदाई के साथ शराब माफिया की सक्रियता एक बड़ा मुद्दा बनेगा।इससे कांग्रेस को बहुत चुनावी लाभ होगा। और हुआ भी ऐसा ही।
इस शराब माफिया वाले प्रकरण से पीछा छुड़ाने के लिए भाजपा की अंतरिम सरकार 2002 के चुनाव तक भी जूझती रही। 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी। और प्रशासनिक व राजनीतिक मुद्दे उठाने में दक्ष इंदिरा ह्रदयेश पूरे 20 साल सदन के अंदर और बाहर हमेशा से केंद्र में बनी रही।
इंदिरा ह्रदयेश के सदन में छोड़े गए तीर से भाजपा लहूलुहान हो चुकी थी। पार्टी के कुछ नेताओं और शराब माफिया के रिश्तों को लेकर शुरू हुई वो कहानी आज 21 साल बाद भी सत्ता के गलियारों में खूब सुनी जा सकती है।
(20 साल पहले उत्त्तराखण्ड के सदन में हुई इस घटना के तीनों महत्वपूर्ण किरदार डॉ नित्यानंद स्वामी, प्रकाश पंत व डॉ इंदिरा ह्रदयेश अब हमारे बीच नहीं हैं। अंतिम प्रणाम। ॐ शांति।)
Pls clik
इंदिरा पंचतत्व में विलीन,कोरोना की बंदिशें तोड़ सड़क पर उतरा जनसैलाब
उत्त्तराखण्ड में 22 जून के बाद होगा अनलॉक, SOP जारी
स्वास्थ्य महकमे में तबादले- डॉ मनोज उप्रेती देहरादून के नये सीएमओ
देहरादून पुलिस में कई ट्रांसफर,देखें सूची
Total Hits/users- 30,52,000
TOTAL PAGEVIEWS- 79,15,245