पीएम मोदी की दुआ से उत्तराखंड भाजपा में सब ठीक ठाक
बतौर सीएम 365 दिन पूरे। 2024 के लोकसभा चुनाव में सीएम धामी की परफार्मेन्स पर अपनों व परायों की रहेगी पैनी नजर
अविकल थपलियाल
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति की फितरत ही कुछ अजीब है। गद्दी पर बैठते ही सीएम का “पोस्टमार्टम” शुरू हो जाता है। साल 2000 में प्रदेश के पहले सीएम नित्यानंद स्वामी के शपथ लेने से पहले और बाद में भाजपा की अंदरूनी राजनीति ने कितनी बार करवट ली। यह किसी से छुपा नहीं है। लिहाजा, 2002 के विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले स्वामी को हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को कुर्सी सौंप दी गयी।
नये उत्तराखंड राज्य में 22 साल पहले शुरू हुआ मुख्यमंत्री बदल का यह खेल थमा नहीं। अब तक 12 सीएम (बीसी खंडूड़ी व पुष्कर सिंह धामी दो बार) शपथ ले चुके हैं। 2002 में कांग्रेस के सीएम नारायण दत्त तिवारी तमाम अंदरूनी विरोध के बाद पूरे पांच साल सरकार चला गए। राजनीतिक अस्थिरता के दौर में तिवारी का कार्यकाल ही अपवाद माना जाता है। लेकिन 2007 से 2021 तक बीसी खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत,त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ रावत तक कुर्सियां पलटने का गेम चलता रहा। 2016 में कांग्रेस विधायकों के एक बड़े गुट ने तो हरीश रावत सरकार को गिरा ही दिया। भाजपा की ओर से दलीय तोड़फोड़ और खरीद फरोख्त के इस राजनीतिक घटनाक्रम की तपिश आज तक महसूस की जाती है।
इधर, इस बीच प्रदेश की राजनीति में एक भारी उलटफेर भी हुआ। 2022 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद पीएम मोदी ने जिस तरह विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद युवा पुष्कर सिंह धामी पर विश्वास जताया। वह भी प्रदेश के अंदर और बाहर बहस का मुद्दा बना हुआ है। यूँ तो जुलाई 2021 में तीरथ सिंह रावत के सीएम कुर्सी के हटने के बाद भाजपा नेतृत्व ने सभी मजबूत दावेदारों को किनारे करते हुए युवा पुष्कर सिंह धामी के हाथ में उत्तराखंड की कमान सौंप दी।
भाजपा नेतृत्व का यह फैसला कई बड़े दावेदारों के पेट में दर्द कर गया। लेकिन मोदी के निर्णय के आगे ये सभी फिलहाल मौन साधे हुए हैं। विधानसभा चुनाव में सीएम धामी के खटीमा से चुनाव हारने के बाद भाजपा के कई दावेदारों का दिल बल्लियों उछलने लगा था। लेकिन हाईकमान के निर्णय ने इन दावेदारों के ख्वाब को बुरी तरह चकनाचूर कर दिया।
इधर, चम्पावत उपचुनाव जीतने के बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी का जिस तरह पार्टी हाईकमान ने स्वागत किया वो भी प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सीएम की कुर्सी के सदाबहार दावेदारों के लिए पीएम मोदी और सीएम धामी के अपनत्व से भरी फोटो किसी सदमे से कम नहीं देखी जा रही।
विश्लेषकों का भी कहना है कि पीएम मोदी ने बहुत कम मौकों पर ही पार्टी के किसी नेता के साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध झलकाती ऐसी फोटो खिंचवाई हो। दरअसल, जब भी पीएम मोदी उत्तराखंड आये तो एक निश्चित दूरी से नेतओं का अभिवादन स्वीकार करते नजर आए। लेकिन दिल्ली में सीएम धामी के साथ इतनी आत्मीय फोटो वॉयरल करना भी भविष्य के कई राजनीतिक संकेतों को जन्म दे रहा है।
सत्ता व नौकरशाही के गलियारों में यह साफ संदेश तो चला ही गया है कि पीएम मोदी का सीएम धामी पर खुला वरदहस्त है। भाजपा के अंदर भी पीएम व सीएम धामी की केमिस्ट्री को लेकर भी हलचल देखी जा रही है। सत्ता की कुर्सी उलटने पलटने के खेल में माहिर तीरंदाज भी समय की नजाकत देख ‘अंदरूनी विरोध’ की रणनीति पर अर्द्धविराम लगाए हुए हैं।
चूंकि, सीएम पुष्कर सिंह धामी अभी युवा है। और उनके सामने 25 साल का खुला राजनीतिक भविष्य है। ऐसे में कुर्सी के तलबगार धामी सरकार की संभावित गलतियों पर नजरें गड़ाए हुए है। इसके अलावा आने वाले निकाय व लोकसभा चुनाव में पार्टी की परफार्मेन्स भी नए राजनीतिक समीकरणों पर खासा असर डालेंगे।
पूर्व की भाजपाई अंदरूनी राजनीतिक हलचल पर नजर डालें तो 2007 में बीसी खंडूड़ी के सीएम बनने के बाद भाजपा के नाराज क्षत्रपों (निशंक-कोश्यारी) ने हाथ मिला लिया था। एक पार्टी क्षत्रप तो प्रदेश के दौरे पर निकल जनरल खंडूड़ी के कार्यो पर खास ‘नजर’ रख रहे थे। यही नहीँ राज्यसभा सीट छोड़ने की धमकी दे कर खण्डूड़ी का तख्ता पलट की बुनियाद रख दी थी। विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने तो विधायकी से ही इस्तीफा दे दिया था। इसके अलावा 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का पांचों लोकसभा सीट हार जाना खंडूड़ी की विदाई का प्रमुख कारण बन गया था। भाजपा की इस हार में ‘भाजपा’ का ही बड़ा हाथ था।
2009 में खंडूड़ी हटे निशंक आये। फिर अक्टूबर 2011 में निशंक हटे। निशंक की असमय विदायी के पीछे भी प्रदेश भाजपा के दो क्षत्रप (खंडूड़ी-कोश्यारी) साथ साथ खिचड़ी खा रहे थे। इसके बाद 2017 में सीएम बने त्रिवेंद्र सिंह रावत मार्च 2021 में रातोंरात हटा दिए गए। यह भी सत्य है कि जून 2018 में शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा को सार्वजनिक तौर पर झिड़कने व गिरफ्तार करने के आदेश के बाद तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ कई पार्टी नेता अंदरखाने सक्रिय हो गए थे। इसके बाद तो अमित शाह के करीबी रहे त्रिवेंद्र रावत को पार्टी के अंदर खुली मुखालफत भी झेलनी पड़ी। मार्च 2021 में तीरथ सीएम बने और बिना विधानसभा चुनाव लड़वा जुलाई 2021 में चलता कर दिया।
अब जुलाई 2021 से प्रदेश में पुष्कर सिंह धामी बिना बहुत ज्यादा शोरगुल किये धीमे धीमे रफ्तार पकड़ रहे हैं। बेचैन पार्टी गुट पहले तो निकाय/पंचायत चुनाव में चुनाव परिणाम को प्रभावित कर बाजी पलटने की कोशिश में जुटेगा। अगर निकाय/पंचायत चुनाव में सफलता नहीं मिली तो विघ्न संतोषी गुट 2024 के लोकसभा चुनाव में खण्डूड़ी काल के 2009 लोकसभा चुनाव परिणाम की तस्वीर दोहराना चाहेगा। 2009 में भाजपा प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट हार गई थी। इसी हार के बाद तत्कालीन सीएम बीसी खण्डूड़ी की विदाई की पटकथा लिख दी गयी थी।
अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन 2019 की तरह नहीं रहा तो सीएम धामी के खिलाफ मोर्चेबन्दी तेज होने की सम्भावना बनी रहेगी। ऐसे में सीएम धामी के सामने लोकसभा चुनाव में शत प्रतिशत परिणाम देना ही सबसे प्रमुख चुनौती देखी जा रही है।
हालांकि, कांग्रेस व भाजपा के जितने भी सीएम अब तक हुए हैं। उनका पहले दिन से ही किसी न किसी रूप में अंदरूनी व मुखर विरोध सामने देखने को मिलता रहा। सीएम धामी सरकार को 100 दिन पूरे हो गए। और 4 जुलाई 2021 में पहली बार सीएम बने पूरे एक साल भी हो गये। लेकिन अभी तक पार्टी के अंदर किसी भी मंत्री, विधायक, सांसद व अन्य नेताओं की कोई प्रतिकूल टिप्पणी सामने नहीं आयी। राजनीति के अंतःपुर में जरूर खिचड़ी पक रही होगी लेकिन इसकी खुशबू अभी मौसम में नहीं घुली। इसके पीछे पीएम मोदी का डर भी काम कर रहा है।
फिलहाल, पीएम मोदी के खुले आशीर्वाद की वजह से विनम्र सीएम धामी का रास्ता निष्कंटक बना हुआ है। खटीमा चुनाव में सीएम धामी की हार के पीछे कुछ ‘खास’ लोगों की भूमिका को लेकर भी उच्च स्तर पर मंथन चल रहा है। जबकि चम्पावत उपचुनाव जीतने व दिल्ली में बड़े नेताओं से मुलाकात के बाद टीम धामी भविष्य में विघ्न संतोषियों के हथकंडों को फेल करने के अलावा विकास के रथ को कितनी तेजी से दौड़ाती है, यह भी परफार्मेन्स के विश्लेषण का एक मजबूत आधार बनेगा। इस समय तो पीएम मोदी के सीएम धामी को मिले खुले आशीर्वाद के बाद से उत्तराखंड भाजपा में फिलहाल सब कुछ ठीकठाक ही नजर आ रहा है…
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