बोल चैतू/अविकल थपलियाल
ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के गैरसैंण में तत्काल जमीन खरीदने से रिवर्स पलायन की बहस व मुहिम ने तेजी पकड़ ली है।गैरसैंण की नयी नवेली जमीन पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र आशियाना तब बनाएंगे जब उनकी जेब में पैसा होगा। ऐसा कुछ उनका बयान आया है मीडिया में।
रिवर्स पलायन की दिशा में बताए जा रहे इस कदम से कुछ सवाल भी उभर रहे है। चूंकि, मुख्यमंत्री ने जनप्रतिनिधियों से भी गांव लौटने की अपील की है। लिहाजा, कुछ सवाल पूछने लाजिमी हो जाते हैं
पहला सवाल यह कि क्या मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने पैतृक गांव खैरसैंण , सतपुली में नही बसेंगे। जबकि उनके अपने मूल गांव में बसने से रिवर्स पलायन की मुहिम को ज्यादा बल मिलता।
नेताओं के अपनों की तैनाती पहाड़ में हो
दूसरा सवाल यह कि मुख्यमंत्री समेत अन्य कई जनप्रतिनिधि, नेता व अधिकारियों की पत्नियां व अन्य सगे सम्बन्धी पहाड़ों के बजाय सुगम स्थलों में बरसों बरस से नौकरी कर रहे हैं। इनके लिए कोई नियम, कायदे कानून नहीं है। मौज के सुगम तैनाती स्थलों में नौकरी कर रहे इन सभी को दुर्गम इलाकों में तैनात किया जाय। रिवर्स पलायन की दिशा में यह एक ठोस क्रांतिकारी कदम माना जाएगा। मुख्यमंत्री स्वंय अपने घर से यह पहल शुरू करें तो देश में रिवर्स पलायन का सार्थक संदेश जाएगा।
नेता अपनी मूल पर्वतीय सीट से चुनाव लड़ें
राज्य बनने के बाद कई नेताओं ने अपनी परम्परागत पर्वतीय विधानसभा सीट बदल ली। चुनाव लड़ने के बजाय मैदानी इलाकों में आ गए हैं। इस सूची में कई नाम है। मुख्य तौर पर पूर्व सीएम विजय बहुगुणा, रमेश पोखरियाल निशंक, हरीश रावत, किशोर उपाध्याय समेत कई अन्य बड़े नेता भी शामिल हैं। भाजपा-कांग्रेस हाईकमान अपने नेताओं को उनकी मूल पहाड़ी सीट से ही टिकट दे तो रिवर्स पलायन की मुहिम मुकाम पर पहुंचेगी। 2022 और 2024 के चुनावों में आकाओं को इस सुझाव पर तेजी से अमल करना चाहिए।
मैदान में बनायी अचल संपत्ति पहाड़ ले जायँ
एक मुख्य बात यह कि राजधानी बनने के बाद कई बड़े-छोटे नेताओं ने सुदूर पर्वतीय जिलों को त्यागते हुए देहरादून, हल्द्वानी, हरिद्वार आदि सुगम स्थलों में शानदार कोठी-बंगले बना लिए हैं। फ्लैट खरीदे हुए हैं।इनकी एक लंबी सूची है। जांच की जाय तो पत्नी, पुत्र;पुत्री व रिश्तेदारों के नाम अचल संपत्ति के पुख्ता प्रमाण मिल जाएंगे। ये लोग मैदान में खड़ी की गई कोठियों के
नेता मैदान से पहाड़ ले जायँ संस्थानक
रिवर्स पलायन के लिए सबसे जरूरी यह है कि पर्वतीय इलाकों में कई प्रोफेशनल शैक्षिक संस्थान खुलें। उत्तराखण्ड के कुछ नेताओं ने अपने सगे संबंधियों के नाम से मैदानी इलाकों में बड़े-बड़े संस्थान खोल लिए हैं। इन सभी नेताओं और उनके रिश्तेदारों की सूची सरकार के पास जरूर होगी। यह जांच में भी सामने आ जायेगा। इन सभी बड़े लोगों से कहा जाय कि अपने संस्थान की एक यूनिट पर्वतीय इलाकों में भी खोलें। इससे पर्वतीय इलाके की प्रतिभाओं को बेहतर प्रोफेशनल कोर्सेस के लिए शहरों की ओर नही भागना पड़ेगा।
अगर सभी लीडर उपरोक्त बिन्दुओं पर अमल करते हुए इस मार्ग पर चलें तो रिवर्स पलायन अपने आप हो जाएगा। मैदान में उतरे हुए उत्तराखंड के नेता अगर वापस अपने ठौर की ओर निकल पड़ें तो आधी समस्या अपने आप सुलझ जाएगी। पहाड़ से मैदान की ओर पलायन की शुरुआत भी नेताओं ने ही की।
अंत में बहस यह भी कि अब गैरसैंण पर भी भू माफिया, नेता व अधिकारियों का खेल चलेगा और कोई रोक भी न पायेगा। यह मुद्दा अब धीरे धीरे जोर पकड़ेगा। चूंकि, सीएम त्रिवेंद्र जमीन खरीदने का ऐलान कर चुके है। लिहाजा रिवर्स पलायन के लिए समूचे पर्वतीय इलाके में नए सिरे से सख्त भू कानून की भी जरूरत महसूस की जा रही है।
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