कोर्ट के कड़े रुख के बाद करोड़ों के एनएच-74 घोटाले में नया मोड़

पढ़ें, कोर्ट ने घोटाले के मुख्य आरोपी डीपी सिंह की क्लीन चिट को किया खारिज,चलेगा मुकदमा

डीपी को जून में मिली थी क्लीन चिट. डीएम पर कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

मनी लांड्रिंग के केस में ईडी दाखिल कर चुकी है आरोप पत्र

अविकल थपलियाल

हल्द्वानी/देहरादून। अदालत ने पांच सौ करोड़ के बहुचर्चित एनएच-74 जमीन घोटाले पर तीखी टिप्पणी करते हुए आरोपी पीसीएस दिनेश प्रताप सिंह को शासन की ओर से मिली क्लीन चिट को खारिज कर दिया।
न्यायाधीश नीलम रात्रा ने घोटाले से जुड़े कई बिंदुओं पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि  आरोपी दिनेश प्रताप सिंह व अन्य पर मुकदमा चलेगा।

हल्द्वानी की भ्रष्टाचार निरोधक विशेष अधिनियम के तहत गठित अदालत के विशेष न्यायाधीश द्वितीय अपर सेशन जज नीलम रात्रा ने साथ ही अपने आदेश में कहा है कि आरोपी को क्लीन चिट देना शासन से उनकी मिलीभगत को उजागर करता है।

कोर्ट के आदेश के बाद शासन से जुड़े वे अधिकारी भी कठघरे में खड़े दिखाई दे रहे हैं जिन्होंने जमीन के मुआवजे से जुड़े करोड़ों के घोटाले के आरोपी डीपी सिंह को क्लीन चिट देने में मुख्य भूमिका निभाई। इस घोटाले में पीसीएस अधिकारी डीपी सिंह ने लगभग डेढ़ साल जेल भी भुगती।

गौरतलब है कि जून 2024 में शासन की जांच रिपोर्ट में दिनेश प्रताप सिंह को क्लीन चिट दी गयी थी।
हरिद्वार से सितारगंज तक 252 किमी एनएच-74 के चौड़ीकरण के लिए वर्ष 2012-13 में प्रक्रिया शुरू की गई थी। कुछ किसानों ने आरोप लगाया था कि अफसरों, कर्मचारियों व दलालों से मिलीभगत कर बैकडेट में कृषि भूमि को अकृषि दर्शाकर करोड़ों रुपये मुआवजा हड़प लिया गया।

कोर्ट ने 23 सितम्बर के अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि- ऐसे में यहाँ पर यह न्यायालय जिला मजिस्ट्रेट, ऊधमसिंह नगर द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र कागज संख्या 272ख, जिस पर अभियोजन द्वारा बल दिया गया, में कोई बल नहीं पाती है तथा इस स्तर पर विभागीय अनुशासनिक कार्यवाही में बरी होने के आधार पर अभियुक्त को इस आपराधिक मामले में बरी नहीं किया जा सकता है तथा न्यायालय इस सम्बन्ध में विस्तृत मत प्रकट कर चुकी है कि शासन के पास इस स्तर पर अभियोजन स्वीकृति वापस लेने का कोई अधिकार मौजूद नहीं था। अतः उपरोक्त विवेचन के आधार पर जिला मजिस्ट्रेट, उधमसिंह नगर द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र 272ख, जिसे अभियोजन द्वारा बल दिया गया, हर लिहाज में खारिज किये जाने योग्य है।

इधर, न्यायाधीश ने उधमसिंहनगर के जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि लगता है कि वे आरोपी डीपी सिंह की पैरवी में उतर आए हैं। कई पेज के आदेश में जज ने सिस्टम को जमकर लताड़ा।अदालत ने साफ कहा है कि डीपी सिंह पर मामला चलेगा।

डीपी को जून 2024 में मिली थी क्लीन चिट

शासन ने  जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर मुख्य आरोपी पीसीएस अफसर दिनेश प्रताप सिंह को सभी आरोपों पर क्लीन चिट दे दी थी। यही नहीं उनके खिलाफ चल रही अनुशासनिक कार्यवाही को बिना किसी दंड अधिरोपण के खत्म कर दिया गया है। साथ ही न्यायालय में उनके खिलाफ अभियोजन चलाने की पूर्व में दी गई अनुमति को भी निरस्त कर दिया गया था।

इधर, 2017 में सामने आए इस सनसनीखेज घोटाले में सितम्बर 2018 में दो आईएएस पंकज पांडे और चंद्रेश यादव निलंबित किये गए थे। दोनों यूएसनगर के डीएम रहे हैं। हालांकि, बाद में दोनों को क्लीन चिट मिल गयी थी। जमीन के मुआवजे में लगभग 500 करोड़ का भुगतान कर सरकारी खजाने को जबरदस्त चोट पहुंचाई गई थी।

गौरतलब है कि 2017 में सामने आए एनएच 74 घोटाले में स्पेशल कोर्ट (मनी लांड्रिंग) ने 2022 के एक आरोप पत्र पर संज्ञान लिया था। प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में साल 2022 में चार्जशीट दाखिल की थी।

इस मामले में ईडी 7 आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है। वहीं, कोर्ट ने सातवें आरोप पत्र का भी संज्ञान लिया था। साथ ही सात लोगों को समन भेजा है। इसमें पीसीएस अधिकारी डीपी सिंह, तत्कालीन एसडीएम काशीपुर दिनेश भगत, पूर्व तहसीलदार मदन मोहन समेत कुछ निजी कंपनी के लोग शामिल थे। इस मामले की सुनवाई दो दिसंबर को तय की गई ।

New twist in NH-74 scam worth crores after court’s tough stance


एनएच-74 का यह मामला साल 2017 का है। उस दौरान राज्य में त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे। मामला सामने आने के बाद त्रिवेंद्र रावत के निर्देश पर इस मामले में कई अधिकारियों को निलंबित किया गया था। इसमें आरोप था कि राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण में मुआवजा राशि आवंटन के दौरान गड़बड़ी की गई। सरकार ने एसआईटी को जांच सौंपी थी।
2017 में कुमाऊं कमिश्नर की जांच पर पीसीएस अधिकारी डीपी सिंह को आरोप पत्र दिया गया था। इसके अलावा पुलिस की एसआईटी रिपोर्ट के आधार पर भी डीपी सिंह को शासन ने आरोप पत्र दिया था, जिसका पीसीएस अधिकारी ने प्रति उत्तर देकर आरोपों को गलत बताया था। इस मामले में शासन ने जांच अधिकारी से इस पूरे मामले की जांच कराते हुए प्रति उत्तर के आधार पर आरोपों का परीक्षण करवाया था। शासन स्तर पर की गई जांच में दावा किया गया था कि पीसीएस अधिकारी डीपी सिंह पर लगे आरोप गलत साबित हुए थे । और जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन ने पीसीएस अधिकारी डीपी सिंह को क्लीन चिट दे दी थी। इस आधार पर डीपी सिंह ने अदालत से अपने खिलाफ अभियोजन रद्द करने की अपील की थी।

पढ़ें, विशेष न्यायाधीश (भ्र.नि.अधि.) /
द्वितीय अपर सेशन न्यायाधीश,
हल्द्वानी की कड़ी टिप्पणी

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इसके अतिरिक्त इस मामले में जिला मजिस्ट्रेट उधमसिंह नगर द्वारा इस न्यायालय को भेजे गये प्रार्थना पत्र कागज संख्या 272ख के अवलोकन से प्रदर्शित होता है कि अभियुक्त से ज्यादा जिला मजिस्ट्रेट उधमसिंह नगर इस मामले में अभियुक्त की ओर से पैरवी करते नजर आ रहे हैं और उनके द्वारा अभियुक्त को इस आपराधिक मामले में दोषमुक्त करने की प्रार्थना की गयी है। जबकि स्वयं अभियुक्त द्वारा इस न्यायालय के समक्ष ऐसा कोई प्रार्थना पत्र प्रस्तुत ही नहीं किया गया है और न ही उसके द्वारा ऐसा कोई कथन किया गया कि उसे इस मामले में अभियोजन स्वीकृति निरस्त होने के कारण दोषमुक्त किया जावे। इसके अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट उधमसिंह नगर द्वारा दिये गये इस प्रार्थना पत्र व अभियोजन स्वीकृति निरस्तीकरण के आदेश पर अभियुक्त दिनेश प्रताप सिंह की ओर से कोई बल नहीं दिया गया।
यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि बहस के दौरान यह तथ्य भी प्रकाश में आया है कि दैनिक समाचार पत्रों में अभियुक्त दिनेश प्रताप सिंह के विरूद्ध मनी लॉड्रिग के आरोप के सम्बन्ध में प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी) द्वारा सम्बन्धित अधिकारिता वाले न्यायालय के समक्ष आरोप पत्र दाखिल किया गया है, बाबत् समाचार प्रकाशित हो रही है, जिस सम्बन्ध में विद्वान अभियोजन अधिकारी द्वारा सहमति व्यक्त की गयी।
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ऐसे में यहाँ पर यह न्यायालय जिला मजिस्ट्रेट, ऊधमसिंह नगर द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र कागज संख्या 272ख, जिस पर अभियोजन द्वारा बल दिया गया, में कोई बल नहीं पाती है तथा इस स्तर पर विभागीय अनुशासनिक कार्यवाही में बरी होने के आधार पर अभियुक्त को इस आपराधिक मामले में बरी नहीं किया जा सकता है तथा न्यायालय इस सम्बन्ध में विस्तृत मत प्रकट कर चुकी है कि शासन के पास इस स्तर पर अभियोजन स्वीकृति वापस लेने का कोई अधिकार मौजूद नहीं था। अतः उपरोक्त विवेचन के आधार पर जिला मजिस्ट्रेट, उधमसिंह नगर द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र 272ख, जिसे अभियोजन द्वारा बल दिया गया, हर लिहाज में खारिज किये जाने योग्य है।
SST No. 02/2018
विशेष न्यायाधीश (भ्र.नि.अधि.) /
द्वितीय अपर सेशन न्यायाधीश, हल्द्वानी, जिला नैनीताल।

NH 74 घोटाले का सच

हरिद्वार से सितारगंज तक 252 किमी एनएच-74 के चौड़ीकरण के लिए वर्ष 2012-13 में प्रक्रिया शुरू की गई। कुछ किसानों ने आरोप लगाया था कि अफसरों, कर्मचारियों व दलालों से मिलीभगत कर बैकडेट में कृषि भूमि को अकृषि दर्शाकर करोड़ों रुपये मुआवजा लिया। इससे सरकार को करोड़ों रुपये की क्षति हुई। इस मामले की कई बार शिकायत की गई तो एनएच-74 निर्माण कार्यों में प्रथमदृष्ट्या धांधली की आशंका जताई गई।

मार्च 2017 में एनएच 74 घोटाला सामने आया। तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शपथग्रहण समारोह के बाद पत्रकार वार्ता में घोटाले की एसआईटी जांच के आदेश किए थे।

कई अधिकारियों व कर्मियों पर मामला दर्ज

तत्कालीन एडीएम प्रताप शाह ने ऊधमसिंहनगर की सिडकुल चौकी में एनएचएआई के अधिकारी, कर्मचारियों के साथ ही सात तहसीलों के तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार और कर्मचारियों के खिलाफ केस दर्ज कराया था।  इस घोटाले में दो आईएएस और पांच पीसीएस अफसर निलंबित किए गए। 30 से अधिक अधिकारी, कर्मचारी, दलाल और किसानों को जेल जाना पड़ा था। घोटाले के आरोप में तत्कालीन एसएलओ और पीसीएस अफसर दिनेश प्रताप सिंह को मुख्य आरोपी बनाया था।

जांच के दौरान ही आर्बिट्रेशन वादों पर सवाल खड़े हो रहे थे। एक मामले में सरकारी भूमि पर भी किसी निजी किसान को मुआवज़ा दे दिया गया था। ऊधम सिंह नगर जिले की चार तहसीलों जसपुर, काशीपुर, बाजपुर और सितारगंज में 2011 से 2016 तक किसानों ने राजस्व कर्मचारियों की मिलीभगत से कृषि भूमि को बैक डेट में 143 कराकर अकृषि करा लिया था और मोटा मुआवज़ा वसूल कर इस घोटाले को अंजाम दिया था।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राज मार्ग के चौड़ीकरण में मुआवजा राशि आवंटन में तकरीबन 250 करोड़ के घोटाले की आशंका जताई गई। आरोप है कि मिलीभगत से अपात्र व्यक्तियों को मुआवजा राशि वितरित की गई थी।

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