दून की तपती गर्मी में हरदा की काफल पाको चैता
काफल पार्टी को आपरेशन सिंदूर की सफलता व सैनिकों के सम्मान से जोड़ा
अविकल थपलियाल
देहरादून। पूर्व सीएम हरीश रावत राजनीति की पिच पर दावतों की गुगली फेंकते रहे हैं राज्य गठन के बाद हरीश रावत ने कभी आम तो कभी ककड़ी रायता कभी भुट्टा ,जामुन,माल्टा,इफ्तार आदि दावतों का न्योता देते रहे हैं। पहाड़ी पारंपरिक भोज्य पदार्थों की दावतों की चिलमन में हरदा कई निशाने भी एक साथ साधते नजर आते हैं।
एक ओर, इन दावतों की ओट में प्रदेश की राजनीतिक फिल्म में जारी गलाकाट जंग के बीच अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं, वहीं पहाड़ के कोदा, झंगोरा और फलों की मजबूत ब्रांडिंग भी कर जाते हैं।

उनकी इन दावतों में बेशक कांग्रेस के महारथी शामिल होने से कतराते रहे हों लेकिन विपक्ष के कई नाम उनके नमक का स्वाद लेने जरूर पहुंचते रहे हैं।
अपने काल में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत हरदा की इन रसभरी दावतों की शोभा बढ़ाते रहे हैं।
बहरहाल, इस बार पूर्व सीएम हरीश रावत ने रविवार को दून में काफल पार्टी का आयोजन किया है। मौके की नजाकत और अहमियत को देखते हुए कांग्रेस नेता हरीश रावत ने काफल पार्टी को आपरेशन सिंदूर की सफलता और सैनिकों के सम्मान के साथ जोड़ते हुए एक तीर से कई निशाने साध दिए।
काफल पहाड़ का एक पारंपरिक फल है। छोटे दाने का यह फल गर्मियों के सीजन में मात्र एक।महीने के लिए नजर आता है। अमूमन समुद्र तल से पांच हजार या अधिक की ऊंचाई पर यह फल लगता है।
काफल से जुड़ी एक मार्मिक कथा भी घर घर सुनाई जाती है। सीमित मात्रा में उगने वाले काफल बाजार में बहुत कम ही दिखाई देता है। अक्सर पहाड़ी इलाके में स्थानीय लोग इसे बेचते हैं। राज्य के मैदानी इलाकों में काफल 500 रुपए तक बिक रहा है।
बहरहाल, दून की तपती गर्मी में पूर्व सीएम हरीश रावत ने रविवार 18 मई को हरिद्वार बाईपास के नीरजा ग्रीव्स में काफल खिलाने के लिए बुलाया है।
यह भी उम्मीद जताई है रही है कि
काफल की मिठास के जरिये हरदा पार्टी के अंदर और बाहर नये सिरे से कोई नईं इबारत अवश्य लिख जाएंगे …
देखें,काफल से जुड़ी मार्मिक कहानी
इन दिनों जब घाम थोड़ा सा गुनगुना हो जाता है. बर्फ पहाड़ों से उतर कर गधेरों में भर जाती है. पहाड़ों की ठंडी नम जमीनें नन्हे-नन्हे कोंपलों से हरिया जाती है. चमकीली हरी मुलायम पत्तियों के बीच में प्योंली की पिंगलाई ओने- कोनों में फैल जाती है. पूरे जंगल में बुरांश टहोकने लगते है. गांव की सारी लड़कियां फुलियारी बनी गेहूं के खेतों में खिली सरसों के फूलों, खेतों की मेड़ों में खिले बनफसा फूलों से अपनी बांस से बनी टोकरियों को भरने के लिए कुलांचे भरती हैं. इन्हीं फूलों से सुबह मुंह अंधेरे में वो सबकी देहरियों को पूर देती है.
ठीक इन्हीं दिनों छतनार टहनियों से ढके पेड़ की पत्तियों के पीछे से एक चिड़िया कातर स्वर में आवाज देती है:
काफल पाक्यो, मील नी चाख्यो
(काफल पाक गए,मैंने नहीं चखे)
दूसरी चिड़िया बोलती है:
उत्तगी छन, उत्तगी छन
(उतने ही है)
दादी कहतीं – “द बाबा बोलने लगी ये बेचारी अब.”
“जरूर इस बेचारी चखुली की कोई कहानी होगी, है न दादी!”
दादी हाँ में सिर हिलातीं और सिर के साथ दादी के कानों में पहनी सोने की मुर्किली भी हिल-हिल हिलती. फिर कहानी शुरू होती.
दूर पहाड़ों के पार एक गांव के एक परिवार में बस दो जन, मां और बेटी, रहती थी. उस बरस जंगल में खूब बड़े-बड़े, काले-काले, रसीले काफल (खट्टा-मीठा जंगली फल) फले. मां जंगल से घर आते एक टोकरी भर के काफल तोड़ लाई. घर में मां ने माणे (सेर) से काफल नाप कर टोकरी ढक के रख दी. मां बेटी से बोली – “तू अकेले-अकेले मत खाना ये काफल. मैं काम निबटा के आती हूँ दोनों मिल के खाएंगे.” मां गयी थी लकड़ी काटने दूर बण, घर आने में रुमुक पड़ गयी.

आते ही माँ ने देखा टोकरी के काफल कम हो गए हैं. मां को बहुत गुस्सा आया. थक के आई थी. बेटी के कहना न मानने से चिंघा गयी, पास पड़ा डंडा उठा के दे मारा बेटी पे. बोली “निहत्ती सबर नहीं था तुझे, साथ खाएंगे बोलने के बाद भी आधे खा गयी.” बेटी कुछ बोलती उससे पहले ही डंडा उसके सर पर लगा और वो मर गयी.
अब मां रो-रो कर बेहाल हो गयी. अरे बाबा जरा से काफल के मारे मैंने अपनी बेटी को मारा ही क्यों. रोते-रोते दिन ढल गया. काफल की कौन पूछ करता. बाहर गुठ्यार में थे. वहीं खुले में छूट गए. सुबह मां ने देखा काफल की टोकरी तो वैसे ही भरी रखी है.
मां काफल की टोकरी देख कर जोर से चीत्कारी और उसके भी प्राण निकल गए. हुआ ये कि दिन भर धूप से काफल सूख गए थे इसलिए कम दिखाई दिए. जैसे ही उन्हें ओस की नमी मिली काफल फूल गए और टोकरी पहले की तरह भर गयी.
तब से बेटी और माँ दोनों चखुली बन-बन-बन डोलती हैं. काफल का मौसम आते ही बेटी कारुणा करती है – “काफल पाक्यो,मिल नी चाख्यो.” मां पुकारती कहती है – “उत्तगी छन,उत्तगी छन.”
दादी कहती – “हे राम बाबा यही तो है पहाड़ों का सत्त. यहाँ पर रहने वाले जो इंसान पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, गाड़, गधेरे होते हैं और यहाँ का जो सारा चर-अचर इंसान होता है वो एक दूसरे में जन्म लेते हैं. (काफल ट्री)

