उत्तराखंड समाज की 5वीं अनुसूची व जनजाति दर्जा आंदोलन को मिला समर्थन

जंतर मंतर के बाद अब 21 सितंबर को हल्द्वानी में होगी जनसभा

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में चल रहे मूलनिवासी आंदोलन को लगातार जनसमर्थन मिल रहा है। आंदोलनकारी उत्तराखंड के लिए संविधान की 5वीं अनुसूची लागू करने और पर्वतीय क्षेत्र को जनजाति दर्जा दिलाने की मांग कर रहे हैं।

आंदोलनकारियों का कहना है कि उत्तराखंड में रिवर्स माइग्रेशन, जल-जंगल-जमीन पर अधिकार, स्थानीय युवाओं को रोजगार में आरक्षण, हिमालय बचाओ, भाषा-संस्कृति का संरक्षण, पर्वतीय क्षेत्रों की विधानसभा सीटों में कटौती रोकना तथा बेटियों की सुरक्षा जैसे मुद्दों का समाधान केवल 5वीं अनुसूची और जनजाति दर्जा लागू करने से ही संभव है।

पलायन को आंदोलन की जड़ बताते हुए कहा गया कि पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका के साधनों की कमी और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण गांव खाली हो रहे हैं। इसका सीधा असर विधानसभा परिसीमन में सीटों की संख्या पर पड़ा है और भविष्य में प्रतिनिधित्व और भी घटने की आशंका है। आंदोलनकारियों ने चेतावनी दी कि सीमावर्ती इलाकों का जनविहीन होना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।

उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली को जनजातीय विशेषताओं से जोड़ते हुए कहा गया कि फूलदेई, हरेला, खतड़ुआ, इगास, बग्वाल, हलिया दशहरा, रम्माण, हिलजात्रा जैसे पर्व-त्योहार, ऐपण कला, लोक-जागर, भूमियाल की परंपरा, प्रकृति पूजा तथा वनों पर आधारित जीवनशैली यहां के समाज को जनजातीय श्रेणी का स्वाभाविक पात्र बनाते हैं।

उत्तराखंड समाज ने बीते साल 22 दिसंबर को जंतर मंतर पर हुई जनसभा में भी यह मुद्दा उठाया था, जिसमें इतिहासकार डॉ. अजय रावत और लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) जी.एस. नेगी सहित कई प्रमुख लोगों ने आंदोलन का समर्थन किया था।


उत्तराखण्ड एकता मंच के सदस्य अनूप बिष्ट ने बताया कि अब 21 सितंबर को दोपहर 12 बजे हल्द्वानी के एम.बी. इंटर कॉलेज ग्राउंड में उत्तराखंड समाज की विशाल जनसभा आयोजित की जा रही है।


इस अवसर पर रिटायर्ड आई.जी. दीप नारायण बिष्ट और हल्द्वानी के महापौर गजराज बिष्ट ने भी आंदोलन का समर्थन जताया है।

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