19 वीं सदी के ब्रिटिश गजेटियरों में यह रास्ता ‘अंबाला टू मसूरी इंपीरियल रोड’ के नाम से दर्ज है। देहरादून से वाया राजपुर से मसूरी जाने वाले पूरे राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग 39 पानी की चरियां थी, जहां इन्सान, जानवर सब पानी पीते थे.
जयप्रकाश उत्तराखंडी,इतिहासकार
‘देहरादून वाया राजपुर बाजार टू मसूरी’ वाला पुराना रास्ता अंग्रेजों ने बनाया था.1820 के बाद अंग्रेजों ने राजपुर को मसूरी यात्रा का विश्राम स्थल बनाया और इतिहास का पहला पहाडी राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highway) इसी राजपुर से गुजरा, शिमला रोड से भी पहले यह 1825 में बना था,
19 वीं सदी के ब्रिटिश गजेटियरों में यह रास्ता ‘अंबाला टू मसूरी इंपीरियल रोड’ के नाम से दर्ज है. जिस पर पूरे लगभग सवा सौ साल एक पूरी सभ्यता ने सफर किया था.
क्या अमीर, क्या गरीब, क्या इंग्लैंड की विश्व साम्राज्ञी का परिवार, क्या बडे गोरे हुक्मरान, लार्ड, मेमे, रजवाडे,नबाब, क्या कुली, मजदूर, फाल्टू जैसी श्रम बिरादरी, क्या हिंदु, मुस्लिम,ईसाई, सिख्ख, पारसी, जापानी, यहूदी, चीनी-सबका पसीना कभी इसी रास्ते चलते चलते जमीं पर गिरा था.
इस पुराने रास्ते के ऐतिहासिक निशान जालिम वक्त ने मिटा दिए..एक पुरानी यादगार के रूप में बस यह पानी की चरी(टंकी) बची है, जो 97 साल पहले 1925 में राजपुर बाजार की चढाई वाले पुरानी मसूरी रोड पर बनायी गयी थी. अंग्रेजों ने मूक जानवरों की भी परवाह की. उनके जमाने में सडकों के किनारे हर एक मील पर जानवरों के लिए प्याऊ(पानी की चरी) बनाये जाते थे, पशु चिकित्सालय भी अंग्रेज ही लाये थे.
कभी देहरादून से वाया राजपुर से मसूरी जाने वाले पूरे राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग 39 पानी की चरियां थी, जहां इन्सान, जानवर सब पानी पीते थे.पानी की बडी चरी देहरादून परेड ग्राउंड के पास थी और दूसरी बडी वाली बारलोगंज(मसूरी) में. देहरादून राजपुर रोड पर राष्ट्रपति के अंगरक्षक हाऊस के बाहर एक पुरानी जर्जर सी पानी की चरी कुछ साल पहले तक बची हुई थी,अब वह नहीं है,पर जब वह बची थी, तब मैंने उसके स्वर्णिम दिनों पर एक लेख लिखा था….दुआ है कि स्वर्णिम इतिहास की धरोहर राजपुर बाजार की 97 साल पुरानी बची हुई यह पानी की चरी यूं ही सलामत रहे
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इस विभाग में अटैचमेंट खत्म कर मूल तैनाती स्थल भेजने के हुए आदेश
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