अलविदा इमरोज-आज मैंने अपने घर का नम्बर मिटाया है…

इमरोज-1926-2023

वह हरसिंगार का  पेड़ जो अमृता और इमरोज़ ने मिल कर वहां लगाया था

स्मृति शेष…ऐसा जोड़ा मैंने बहुत कम देखा है कि एक दूसरे पर इतनी निर्भरता है लेकिन कोई दावा नहीं


विवेक शुक्ला NBT


साउथ दिल्ली के पॉश के- 25 हौज ख़ास वाले घर के ड्राइंग रूम में  कुछ पंक्तियों को दीवार पर चित्रकार इमरोज ने सुंदर तरीके से लिखा हुआ था। जैसे ही उस ड्राइंग रूम में कोई इंसान दाखिल होता था तो उसे पढ़ने को मिलता था

‘आज मैंने अपने घर का नम्बर मिटाया है और गली के माथे पर लगा गली का नाम हटाया है

और हर सड़क की दिशा का नाम पोंछ दिया है।’

पंजाबी के चोटी की लेखिका अमृता प्रीतम के मित्र इमरोज का शुक्रवार को मुंबई में 95 साल की उम्र में निधन हो गया।


पंजाब के नामवर आईसीएस अफसऱ एम.एस.रंधावा साहब ने हौज खास में पंजाबी के बहुत से लेखकों को प्लाट दिलवाए थे। यह 1950 के दशक के अंत की बातें हैं। अमृता प्रीतम को भी प्लाट मिला और फिर उसे खड़ा किया उन्होंने इमरोज के साथ। इसे दोनों ने  सजाया-संवारा था। यह घर इमरोज़ की पेंटिंग और अमृता की लिखी नज्मों का गवाह था। यह घर कला का एक ख्वाबगाह था। हौज खास शिफ्ट होने से पहले  अमृता प्रीतम ईस्ट पटेल नगर में और इमरोज साउज पटेल नगर में रहा करते थे।


के- 25 हौज ख़ास में मोहब्बत हवाओं में थी । वह हरसिंगार का  पेड़ जो अमृता और इमरोज़ ने मिल कर वहां लगाया था वह अब नहीं रहा,वह बोगनविला  की  बेल जो नीचे से आती हुई ऊपर अमृता की रसोई के सामने आ कर खिड़की पर मुस्कारती । कुछ समय पहलेके- 25 हौज ख़ास आकर एक बात खल गई कि  इलाके का कोई भी शख्स नहीं  बता पाया कि क्यों यह घर खास है। अमृता जी के निधन के बाद घर बिक गया था। Amrita-Imroj

उमा त्रिलोक इमरोज़ और अमृता दोनों की नज़दीकी दोस्त रही हैं और उन पर उन्होंने एक किताब भी लिखी है- ‘अमृता एंड इमरोज़- ए लव स्टोरी।’

उमा कहती हैं कि अमृता और इमरोज़ की लव-रिलेशनशिप तो रही है लेकिन इसमें आज़ादी बहुत है। बहुत कम लोगों को पता है कि वो अलग-अलग कमरों में रहते थे एक ही घर में और जब इसका ज़िक्र होता था तो इमरोज़ कहा करते थे कि एक-दूसरे की ख़ुशबू तो आती है। ऐसा जोड़ा मैंने बहुत कम देखा है कि एक दूसरे पर इतनी निर्भरता है लेकिन कोई दावा नहीं है ।

कौन नहीं चाहता था उनसे किताबों के कवर बनवाना

अमृता प्रीतम के साथ इमरोज का नाम तो सब लेते हैं लेकिन उनके बारे में लोग कितना जानते हैं? जिस समय हिंदी में लोकप्रिय उपन्यासों की लोकप्रियता अपने चरम पर थी उस समय इमरोज उन किताबों के कवर बनाया करते थे। उस ज़माने में कवर का महत्व भी किताबों की तरह ही होता था और इमरोज इस फ़न के सबसे माहिर कलाकारों में थे।

कहते हैं कि उनको हर टाइटल के लिए उतना ही भुगतान होता था जितना कि लेखक को। यह बहुत बड़ी बात थी। अमृता प्रीतम के किताबों के भी कवर उन्होंने बनाए थे। वे स्टार टाइटल मेकर या आज की शब्दावली में कहें तो कवर डिज़ाइनर थे। वरिष्ठ लेखक ड़ॉ. प्रभात रंजन कहते हैं कि कभी उस ज़माने की किताबों को उनके कवर से याद किया जाएगा तो इमरोज को भी याद किया जाएगा। उनकी उस पहचान को जो अमृता से अलग होगी। 

मशहूर उपन्यासकारसुरेंद्र मोहन पाठक कहते हैं कि इमरोज  को गुरुदत्त ने बतौर आर्ट डायरेक्टर साइन भी कर लिया था, पर वे अमृता प्रीतम के लिए बम्बई छोड़ दिल्ली आ गए थे।सिर्फ़ एक फ़िल्म, जो धर्मेन्द्र, मीना कुमारी की आख़िरी फ़िल्म थी- बहारों की मंज़िल, थ्रिलर थी, उसके आर्ट डारेक्टर  थे इमरोज।

Amrita-Imroj

रंग गोरा गुलाब लै बैठा…

के- 25 हौज ख़ास में अमृता प्रीतम से मिलने के लिए आने वालों की कायदे से मेजबानी इमरोज ही करते। उस घर में पंजाबी के कवि शिव कुमार बटालवी और पाकिस्तान से शायर फैज़ अहमद फैज़ आते तो दोस्तों की महफिल घर की टेरेस पर ही सजती। अमृता प्रीतम के साथ इमरोज भी शिव बटालवी अपनी कालजयी रचना गाकर सुनाते थे। आप भी इसे पढ़कर आनंद लें। ‘मैंनू तेरा शबाब लै बैठा,

रंग गोरा गुलाब लै बैठा।

किन्नी पीती ते किन्नी बाकी ए

मैंनू एहो हिसाब लै बैठा

चंगा हुंदा सवाल ना करदा,

मैंनू तेरा जवाब लै बैठा

दिल दा डर सी किते न लै बैठे

लै ही बैठा जनाब लै बैठा।

एक बार काव्य की धारा बहने लगती तो फिर वे अलसुबह तक जारी रहती।

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