मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सरकार व विधानसभा से 1मई 2023 तक जबाव मांगा
अभिनव थापर की याचिका में मुख्यमंत्रियों और विधानसभा अध्यक्षों की भूमिका पर भी उठाए गए सवाल
2016 व 2021 से पूर्व विधान सभा में तदर्थ भर्तियों की पत्रावली न तो सरकार के पास गई और न शासन में
अविकल उत्तराखण्ड
नैनीताल । उत्तराखण्ड की विधानसभा में 2002 से हुई सभी तदर्थ भर्तियों का मामला एक बार फिर हाईकोर्ट पहुंच गया है। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने आज एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 1 मई 2023 को सरकार और विधानसभा से जबाव मांगा है।
उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने विधान सभा सचिववालय में सन 2000 से हुई तदर्थ नियुक्तियों व भर्ती करने वालों के खिलाफ कार्यवाही किए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की । मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खण्डपीठ ने विधान सभा सचिवालय व सरकार को नोटिस जारी कर 1 मई तक जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 1 मई 2023 को होगी।
देहरादून निवासी अभिनव थापर ने प्रदेश की विधानसभा में पिछले 22 साल में हुई तदर्थ भर्तियों की न्यायिक जांच के बाबत एक जनहित याचिका दाखिल की थी।
जनहित याचिका में कहा है कि विधानसभा सचिवालय में सन 2000 से अब तक बैकडोर नियुक्तियाँ करने के साथ साथ भ्रष्टाचार व अनियमितता भी की गई है। इस पर सरकार ने एक जाँच समिति बनाकर 2016 से अब तक की भर्तियों को निरस्त कर दिया, लेकिन यह बैकडोर भर्ती घोटाला सन 2000 से अब तक चल रहा है। सन 2000 से 2015 तक हुई नियुक्तियों पर कोई कार्यवाही नही हुई।
अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश युक्त पीठ ने इस याचिका के विधानसभा बैकडोर नियुक्तियों में हुई अनियमितता व भ्रष्टाचार का संज्ञान ले लिया है और सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि सरकार ने 2003 के शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान के अनुच्छेद 14, 16 व 187 का उल्लंघन जिसमें हर नागरिक को सरकारी नौकरियों में समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है, उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 व उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमवलयों का उल्लंघन किया गया है ।
After the formation of the state, the case of ad-hoc recruitment of the assembly also reached the High Court
थापर का कहना है कि राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जाँच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय। सरकार ने पक्षपातपूर्ण कार्य करते हुए अपने करीबियों की बैकडोर भर्ती नियमों को ताक में रखकर की है। जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया है।
इस जनहित याचिका की सुनवाई उसी खंडपीठ में हो रही है जिसने हाल ही में स्टे ऑर्डर खारिज कर 250 तदर्थ कर्मचारियों की नौकरी समाप्त कर दी। इसी मामले में नई याचिका में लोकसेवकों की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं और सुनवाई के बाद कोर्ट ने जिस तरह सरकार और विधानसभा से जवाब मांगा है , उससे जांच का दायरा बढ़ा होने की संभावना जताई जा रही है।
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