सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले को बरकरार रखा. तदर्थ कर्मियों की याचिका को खारिज किया.
स्पीकर ऋतु ने कहा, वे न्याय के सिद्धांत पर चल रही थी.
पूर्व विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व प्रेमचन्द अग्रवाल के फैसले कठघरे में
विधानसभा बैकडोर भर्ती में 250 कर्मी हटाये गए थे। इनमें 22 उपनलकर्मी भी शामिल हैं
अविकल उत्तराखण्ड
नई दिल्ली। उत्तराखण्ड विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में हटाये गए तदर्थ कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली। गुरुवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में न्यायाधीश ने हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले को बरकरार रखते हुए तदर्थ कर्मियों की याचिका को खारिज कर दिया।
मिली जानकारी के मुताबिक तदर्थ कर्मियों की ओर से वकील विमल पटवालिया ने कोर्ट में पेश याचिका पेश की। न्यायाधीश संजीव खन्ना व सुंदरेश ने मात्र 2 मिनट में ही याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही वकील की ओर से 2016से पहले की गई नियुक्तियों का मसला उठाने पर न्यायाधीश ने बेहद कड़े शब्दों का प्रयोग किया।इस मामले में तदर्थ कर्मियों की ओर से मनु सिंघवी को भी पैरवी करनी थी। लेकिन वो कोर्ट पहुंच नहीं पाए।
विधानसभा सचिवालय की ओर से वकील अमित तिवारी ने पैरवी की। इस पूरे मामले में भारत सरकार में सालिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कई पहलुओं पर सटीक राय दी। सुप्रीम कोर्ट के आज के इस फैसले के बाद 228 तदर्थ कर्मियों को गहरा झटका लगा है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए स्पीकर ऋतु खंडूडी ने कहा कि उन्होंने तदर्थ कर्मियों के मामले में किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर निर्णय नहीं लिया था। वे सिर्फ न्याय के सिद्धांत पर चल रही थी। और कोटिया कमेटी ने एक एक पहलु पर विचार करके ही रिपोर्ट बनाई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्याय की जीत बताया।
गौरतलब है कि बीते 24 नवंबर को हाईकोर्ट ने स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी के 228 तदर्थ कर्मियों को हटाने सम्बन्धी फैसले को सही ठहराते हुए सिंगल बेंच द्वारा तदर्थ कर्मियों को दिए गए स्टे को खारिज कर दिया था।
इसके बाद तदर्थ कर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। गुरुवार को आये सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 228 तदर्थ कर्मियों को भारी झटका लगा। इन तदर्थ कर्मियों की नियुक्ति 2016 से 2021 के बीच हुई थी। पूर्व विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व प्रेम चंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई थी।
कुंजवाल ने अपने करीबी रिश्तेदारों की बैकडोर से भर्ती कर दी थी। भाजपा,कांग्रेस समेत अधिकारियों ने भी नियमों के विपरीत अपने रिश्तेदार व करीबी विधानसभा में नियुक्त करवा दिए थे।

इसी साल जुलाई में uksssc भर्ती घोटाले के साथ ही विधानसभा भर्ती घोटाला भी खूब चर्चाओं में रहा। इस घोटाले में भाई भतीजावाद व दलाली की खबरें भी खूब चर्चाओं में है।
गड़बड़ी उजागर होते ही सीएम धामी ने स्पीकर को पत्र लिख सभी नियुक्तियां रद्द करने को कहा था।
हटाये गए तदर्थ कर्मियों को आज सुप्रीम कोर्ट से झटका लगने के बाद अब कई ढकी छिपी कहानियां बाहर आने की पूरी पूरी संभावना जताई जा रही है।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश के अंदर पूर्व विधानसभाध्यक्ष कुंजवाल व मंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल की स्थिति भी विकट होने की उम्मीद है।

फ़्लैश बैक- 24 नवंबर 2022- डबल बैंच ने स्पीकर के फैसले ओर लगाई मुहर
विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने तदर्थ कर्मियों को मिले स्टे पर रोक लगा दी थी।
विधानसभा से तदर्थ कर्मचारियों को हटाने के आदेश पर हाईकोर्ट की सिंगल बैंच द्वारा रोक लगाने संबंधी आदेश को हाईकोर्ट की डबल बैंच ने बीते 24 नवंबर को निरस्त कर दिया था।
सितम्बर महीने में विधानसभा सचिवालय में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा की गई 150 और प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा की गई 78 तदर्थ नियुक्तियों को वर्तमान विधासनभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी की सिफारिश पर शासन ने रद कर दिया था, जिसके बाद इन कर्मचरियों को नौकरी से हटा दिया गया था।
इस फैसले के खिलाफ ये कर्मचारी हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट में न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से हटाए गए कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी थी। इस आदेश के खिलफ सरकार डबल बैंच में गई थी।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने तदर्थ कर्मियों को हटाए जाने को गलत बताते हुए स्टे दे दिया था। एकल बैंच के स्टे सम्बन्धी फैसले के विरोध में विधानसभा प्रशासन ने डबल बेंच में अपील की थी।
इस अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर ऋतु खंडूडी के फैसले को सही ठहराते हुए स्टे खारिज कर दिया। उल्लेखनीय है कि पूर्व आईएएस कोटिया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के बाद विस अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी ने सितम्बर माह में 2016 से 2021 तक विधानसभा में नियुक्त हुए 228 तदर्थ कर्मियों को हटा दिया था।
इस फैसले के विरोध में तदर्थ कर्मी हाईकोर्ट से स्टे ले आये थे। लेकिन उन्हें विधान सभा में जॉइन नहीं करवाया गया। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्टे पर रोक लगाते हुए तदर्थ कर्मियों को झटका दे दिया।
उत्तराखंड विधानसभा में हुईं भर्तियों की जांच के लिए बनी तीन सदस्यीय विशेषज्ञ जांच समिति की रिपोर्ट की सिफारिश के आधार पर 2016 में हुईं 150 तदर्थ नियुक्तियां, 2020 में हुईं छह तदर्थ नियुक्तियां, 2021 में हुईं 72 तदर्थ नियुक्तियां और उपनल के माध्यम से हुईं 22 नियुक्तियां रद्द की गई थी।
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तदर्थ कर्मियों को झटका-डबल बेंच ने सिंगल बेंच के स्टे पर लगाई रोक

