बोल चैतू -अविकल थपलियाल
धर्म के नाम पर जिस्मों का सौदा करते हैं,
ढोंगी बाबा यहाँ सच को झूठा करते हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के कन्नौज में सामने आए छांगुर बाबा प्रकरण ने एक बार फिर समाज को हिला कर रख दिया है। खुद को साधु-संत बताने वाले इस व्यक्ति ने वर्षों तक अपने ढोंग से लोगों को बहकाया, महिलाओं का शोषण किया और कानून की आँखों में धूल झोंकता रहा। पैसे की आड़ में धर्मान्तरण का यह कुचक्र बेनकाब हो चुका है।
यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई ऐसे ढोंगी बाबाओं का पर्दाफ़ाश हो चुका है, जिन्होंने धर्म और आस्था का इस्तेमाल केवल अपने स्वार्थ और अपराध के लिए किया।
इसी पृष्ठभूमि में उत्तराखंड सरकार द्वारा शुरू किया गया ऑपरेशन कालनेमि एक सराहनीय कदम है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि प्रदेश में साधु-संतों के भेष में घूम रहे ठगों, महिलाओं और लड़कियों को बहकाने वालों, और धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाकर अवैध गतिविधियाँ करने वालों पर सख़्त कार्रवाई की जाए। यह अभियान समाज के लिए एक चेतावनी है कि अब मूकदर्शक बने रहना ठीक नहीं।
उत्तराखंड में पिछले कुछ समय से ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ भोली-भाली महिलाओं और युवतियों को बहलाने-फुसलाने और भगाने के पीछे एक सुनियोजित मानसिकता दिखाई देती है। कई मामलों में यह भी देखने को मिला कि इसमें शामिल लोग एक ही विशेष समूह से जुड़े थे। ऐसे संवेदनशील मसलों में धर्मांतरण भी मुख्य वजह मानी जा रही है। यह एक चिंताजनक स्थिति है। मगर इसके समाधान का तरीका किसी पूरे समुदाय को कठघरे में खड़ा करना नहीं, बल्कि अपराधियों की पहचान करके उन्हें कानून के शिकंजे में कसना है।
समाज को भी अब सतर्क होना पड़ेगा। आस्था, भक्ति और करुणा हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी ताक़त हैं, लेकिन जब इनका दुरुपयोग किया जाता है, तो यही ताक़त कमजोरी बन जाती है। लोग अक्सर बिना सोचे-समझे बाबाओं और धर्मगुरुओं के पीछे चल पड़ते हैं, यह मानकर कि वे उन्हें सही राह दिखा रहे हैं। लेकिन असलियत में कई बार यही लोग अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं।
उत्तराखंड सरकार का यह कहना सही है कि पुलिस और प्रशासन अकेले सब कुछ नहीं कर सकते। जब तक लोग खुद जागरूक नहीं होंगे, और जब तक समाज खुद ऐसे लोगों को पहचानकर उनका बहिष्कार नहीं करेगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
यह भी ज़रूरी है कि अभियान किसी पूर्वाग्रह के साथ न चले। किसी भी अपराधी को उसके कर्मों के आधार पर दंडित किया जाना चाहिए, न कि उसके धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर। कानून का डंडा निष्पक्ष हो, तभी न्याय का भरोसा बना रह सकता है।

छांगुर बाबा जैसे लोग और उत्तराखंड में महिलाओं को बहकाने वाले गिरोह हमारी सामाजिक और कानूनी व्यवस्था की परीक्षा हैं। यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि हम धर्म की आड़ में पनप रहे इस अपराधी तंत्र को तोड़ें और उन लोगों का साथ दें जो सच में समाज की सेवा करना चाहते हैं।
आस्था को अंधभक्ति में बदलने से रोकना ही आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है। यह लड़ाई केवल सरकार की नहीं, बल्कि हम सबकी है।

