अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी ने शिक्षा, शोध, वैज्ञानिक एवं तकनीकी सहयोग के लिए इंडोनेशिया के साथ एम.ओ.यू. किया है। ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के चेयरमैन डॉ कमल घनशाला की मौजूदगी में सोमवार को गोवा में आयोजित क्यू एस समिट के दौरान यह महत्वपूर्ण एमओयू किया गया।
इंडोनेशिया की सरकारी यूनिवर्सिटी- यूनिवर्सिटास डिपोनिगोरो (यू.एन.डी.आई.पी.) के साथ ग्राफिक एरा ने यह एमओयू किया है। शिक्षा, अनुसंधान, सामुदायिक सेवाओं और वैज्ञानिक व तकनीकी प्रोग्राम डेवलप करने के उद्देश्य से यह करार किया गया है। इसमें वैज्ञानिक रिसर्च में आपसी सहयोग, शिक्षकों, छात्रों व स्कॉलर्स के लिए एक्सचेंज प्रोग्राम और स्नातक व शोध छात्र-छात्राओं के लिए ज्वाइंट सुपरविजन जैसी गतिविधियां भी शामिल होंगी।
ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के चेयरमैन डॉ कमल घनशाला ने विश्वास व्यक्त किया कि यह एमओयू शोध और छात्र-छात्राओं के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा। यह करार पांच वर्षों के लिए किया गया है। एमओयू पर ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के महानिदेशक डॉ संजय जसोला और यूनिवर्सिटास डिपोनिगोरो (यू.एन.डी.आई.पी.) इंडोनेशिया के वाइस रेक्टर प्रो. डॉ. आईआर अम्बारियांतो ने हस्ताक्षर किए।
ग्राफिक एरा अस्पताल में वर्कशॉप
जन्म के पहले मिनट से प्रभावित होता है पूरा जीवन
देहरादून, 20 फरवरी। ग्राफिक एरा अस्पताल में शिशु के जन्म के पहले 60 सेकेंड में बरती जाने वाली सावधानियों पर वर्कशॉप करके डॉक्टरों और नर्सों को इसके गुर सिखाये गये।
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और नेशनल न्यूनैटॉलॉजी फोरम के तत्वावधान में चकराता रोड स्थित ग्राफिक एरा अस्पताल में इस वर्कशॉप का आयोजन किया गया। फर्स्ट गोल्डन मिनट प्रोजेक्ट के तहत आयोजित इस वर्कशॉप के कोर्स कॉर्डिनेटर व ट्रेनर के रूप में ग्राफिक एरा अस्पताल के नवजात शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ शांतुन शुभम ने कहा कि किसी भी शिशु के जन्म के बाद के पहले 60 सेकेंड उसकी पूरी जिंदगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
यही वे क्षण होते हैं, जब शिशु अपनी मां पर निर्भरता छोड़कर अपने फेफड़ों का इस्तेमाल शुरू करता है। इस एक मिनट में उसकी जिंदगी में कई तरह के बदलाव आते हैं।
डॉ शांतुन शुभम ने बताया कि नवजात शिशु के जन्म के बाद के इस पहले मिनट में डॉक्टर और नर्स जो प्रयास करते हैं, उनका प्रभाव शिशु के मस्तिष्क और ह्रदय के साथ पूरे जीवन पर पड़ता है। इसीलिए इसे फर्स्ट गोल्डन मिनट कहा जाता है। डॉ शुभम ने इस पहले मिनट में किए जाने वाले कार्यों के बारे में प्रयोगात्मक जानकारी विस्तार से दी।
कार्यशाला में दून मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ विशाल कौशिक ने भी प्रतिभागियों को नियोनेटल रिससिटेशन की ट्रेनिंग दी। उन्होंने कहा कि जन्म के बाद के पहले घंटे में शिशु को मां का दूध पिलाना बहुत महत्वपूर्ण होता है। वर्कशॉप के बाद 21 प्रतिभागियों को एन.आर.पी. सर्टिफाइड होने के प्रमाण पत्र दिये गये।
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