भू कानून- जमीनों के सौदागर खबरदार, बज चुकी है खतरे की घंटी

उत्तराखंड की जमीनों को एटीएम बनाने वालों के दिन अब नहीं लौटेंगे

सीएम की सख्ती से अवैध जमीन होगी जब्त

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शास्त्री की कलम से

उत्तराखंड में भू कानून को लेकर जनता सड़क पर है। कारण राज्य स्थापना के बाद देशभर के धनपतियों के उत्तराखंड पसंदीदा गंतव्य बना तो जमीनों की खरीद फरोख्त का दौर शुरू हुआ। जिन “भीटा पाखों” कोई नहीं जाता था, वे भी बिक गए तो हलचल हुई।


मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार हरकत में आई तो इस दिशा में कसरत शुरू हुई। भू कानून के लिए कमेटी बनी और अब सरकार उसे कानूनी जामा पहनाने के तैयारी में है।
पूरे 24 साल बाद पहली बार प्रदेश में जमीनों की खरीद फरोख्त को नियंत्रित करने के लिए सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है। धामी सरकार के इस फैसले से भू माफिया जगत में हलचल भी दिख रही है। 


यह सख्त कदम पहले भी उठाया जा सकता था, किंतु सत्ता के मजबूत कदम उठे ही नहीं। यही नहीं,   2018 में तत्कालीन भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार ने निवेशकों को आमंत्रित करते हुए नियम शिथिल कर दिये। 2018 अक्टूबर में दून में हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में हजारों करोड़ की निवेश को मुख्य आधार बनाया गया।


लेकिन छह साल बाद भाजपा की धामी सरकार की समीक्षा में यह तथ्य उभर कर आये कि 2018 संशोधित भू कानून के सकारात्मक परिणाम नजर नहीं आये। नतीजतन, उन जख्मों पर मरहम लगाने के लिए दो दिन पहले सीएम धामी प्रेस से रूबरू हुए।

इधर, उत्तराखंड की जमीन को मिट्टी के भाव खरीद कर सोने के भाव बेचने का सिलसिला कोई नया नहीं है। बाहरी लोगों ने जो जमीनें खरीदी हैं, वे देवभूमि में धर्म – कर्म के लिए यह काम नहीं कर रहे थे, बल्कि वे इसे एटीएम बनाने की नीयत से निवेश कर रहे थे। अब ऐसे लोगों को जमीन सरेंडर करनी होगी। इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां एक निश्चित सीमा तक ही जमीन खरीदी जा सकती थी, वहां बाहरी लोगों ने परिवार के कई लोगों के नाम खरीद फरोख्त की। अब यह मामला सरकार के संज्ञान में आया तो कार्यवाही की तैयारी हो गई है। चंद दिनों की बात है, जब बेतहाशा खरीदी गई जमीन वापस सरकार के पास आएगी।

इससे पहले तिवारी,खंडूडी काल में जमीन की खरीद फरोख्त को लेकर कायदे कानून बने। लेकिन बाहरी ‘दबाव’ में कई नियम शिथिल कर दिए गए। इससे स्थिति बिगड़ी। जनाक्रोश बढ़ा। और बीते दिसम्बर माह से सशक्त भू कानून और मूल निवास पर जनता सड़कों पर नजर आने लगी।

रविवार की ऋषिकेश में हुई मूल निवास भू कानून रैली में भी यह बात उठाई गई किंतु उससे दो दिन पहले शुक्रवार को सीएम पुष्कर सिंह धामी इस मामले में अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं। धामी प्रदेश के लोगों को भरोसा दिला चुके हैं कि नगर निकाय क्षेत्र से बाहर ढाई सौ वर्ग मीटर भूमि से अधिक एक ही परिवार के लोगों ने अलग-अलग नामों से क्रय करके उक्त प्राविधानों का उल्लंघन किया है, इसकी जल्द जांच होगी और जिन लोगों ने ऐसा किया है उनकी भूमि राज्य सरकार में निहित की जाएगी।

आम तौर पर ऐसे लोगों ने पर्यटन, उद्योग आदि व्यवसायिक गतिविधियों के लिए अनुमति लेकर भूमि क्रय की है, परंतु उस भूमि का उपयोग इस प्रयोजन हेतु नहीं किया। ऐसे लोगों ने स्थानीय लोगों की आंखों में धूल तो झोंकी ही, सरकार को भी अंधेरे में रखा है। बकौल धामी ऐसे लोगों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जायेगी और उनकी जमीनें राज्य सरकार में निहित की जाएगी।

सरकार भी मानती है कि वर्ष 2017 में भूमि क्रय के मामले में जो बदलाव किए गए थे, उनका परिणाम सकारात्मक नहीं रहा है। सरकार अब ऐसे प्राविधानों की समीक्षा करेगी और इन प्राविधानों को समाप्त भी कर सकती है। उत्तराखंड के मूल स्वरूप को बचाने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम एक आशा की किरण जगा रहे हैं। सरकार का दायित्व भी है कि वह लोगों की चिंताओं का समाधान करे। ऋषिकेश रैली में लोगों ने इस चिंता को मुखर होकर उठाया है तो सरकार उसका समाधान करती हुई भी दिख रही है।


पड़ोस में हिमाचल में सशक्त भू कानून लागू है किंतु वह प्रावधान उत्तराखंड में लागू होना व्यवहारिक कतई नहीं हैं। उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से पृथक होकर बना है। उत्तराखंड में एक नहीं कई कई भू कानून हैं। जनजातीय क्षेत्रों की अलग व्यवस्था है लेकिन जमीन के सौदागरों ने वहां भी व्यवस्था में छेद करके चोर रास्ते बना दिए।
नतीजा यह हुआ कि थारू, बोक्सा जनजाति के लोगों की जमीनें कब बिकीं, पता ही नहीं चला और आज वे जनजातियां भूमिहीन हो गई।

पहाड़ों में कुमाऊं गढ़वाल कूजा एक्ट का प्रावधान है लेकिन जब माणा और आदि कैलाश में बाहरी लोग निवेश के नाम पर बेरोकटोक जमीन खरीदने में सफल रहे तो सरकार 24 साल बाद ही हरकत में आई है तो इससे एक उम्मीद तो जग गई है कि अब शायद पहाड़ के अस्तित्व और अस्मिता की रक्षा हो सकेगी।

सीएम धामी स्पष्ट कर चुके हैं कि सरकार भू कानून एवं मूल निवास के मुद्दे को लेकर संवदेनशील है और अगले बजट सत्र में उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप एक वृहद भू कानून लाया जाएगा तो स्वाभाविक रूप से उसका इंतजार किया जाना चाहिए।
यह नहीं भूल सकते कि पहली बार किसी सरकार ने भू कानून को लेकर संजीदगी दिखाई है। इससे पहले तो लोग बाहरी लोगों के सामने नतमस्तक ही दिखे हैं। ऐसे में बजट सत्र का इंतजार सबको रहेगा।

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