उत्तराखण्ड की राजनीति में हलचल
अब पूर्व सीएम कोश्यारी मुंबई से करेंगे गृह राज्य उत्तराखण्ड का रुख
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर हलचल है। महाराष्ट्र के राजयपाल भगत सिंह कोश्यारी का इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है। उनके इस्तीफे की पेशकश और फिर मंजूरी मिलने के बाद हुए इस बड़े धमाके की गूंज उत्तराखण्ड में साफ साफ सुनाई दे रही है।
सितम्बर 2019 में महाराष्ट्र के राज्यपाल बने उत्तराखण्ड के पूर्व सीएम कोश्यारी की संवैधानिक पारी पर 12 फरवरी को पूर्ण विराम लग गया।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पीएम मोदी को कह दिया था कि उन्हें राज्यपाल के कार्यभार से मुक्त कर दिया जाय। अब वो बाकी समय उत्तराखण्ड में अध्ययन-मनन करके बिताना चाहते हैं। इस बाबत 23 जनवरी को भी ट्वीट किया था।
हालांकि, अस्सी वर्षीय भगत सिंह कोश्यारी ने राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने के पीछे अध्ययन मनन व अन्य गतिविधियों में समय बिताने को मुख्य आधार बनाया। लेकिन उनके इस्तीफे की मंशा के पीछे असल कारण कुछ और ही रहे ।
दरअसल, राज्यपाल कोश्यारी के फड़नवीस को सुबह सुबह सीएम पद की शपथ दिलाने के अलावा छत्रपति शिवाजी,नितिन गडकरी समेत अन्य विभूतियों पर की गई टिप्पणी के बाद से ही महाराष्ट्र के राजनीतिक व सामाजिक गलियारे में तूफान मच गया था। विपक्षी दलों के प्रहार से नागपुर व दिल्ली में भी विशेष हलचल देखी गयी थी। इस बयान से होने वाले राजनीतिक नुकसान को देखते हुए भाजपा हाईकमान ने भी जरूरी ‘हस्तक्षेप ‘ किया था। और फिर उनकी विदाई का मन बना लिया था।
भगत दा के उत्तराखण्ड आने के मायने
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहे भगत सिंह कोश्यारी के अपने मूल राज्य में शेष वर्ष बिताने की इच्छा मात्र से राजनीति का पारा एकदम से चढ़ गया था। यूं तो भगत दा 80 साल के हो गए हैं। ऐसे में उन्हें कौई बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी दी जाय, फिलहाल मुमकिन नहीं लगता। लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाय, ये भी कोई नहीं जानता। राजनीति अनिश्चितता व संभावनाओं का खेल जो है।
दरअसल, भगत सिंह कोश्यारी चुपचाप बैठने वाले नेताओं में नहीं है। जिस तरह कांग्रेस में हरीश रावत उम्र के हिसाब से बहुत सक्रिय हैं। ठीक ऐसी ही फितरत कोश्यारी की भी है। अति सक्रियता और कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद बनाये रखना भगत दा को पार्टी के अन्य नेताओं सेअलग करता है।
बतौर, महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते हुए भी भगत दा के उत्तराखण्ड में दौरे लगते रहे। और हर दौरे में वे कुछ न कुछ ‘सन्देश’ देकर गए। शुरुआती दौर में जब सीएम पुष्कर सिंह धामी का दिल्ली दौरा होता था तो भगत दा भी ठीक उन्हीं दिनों दिल्ली में होते थे। चूंकि,राज्य गठन के समय कोश्यारी ऊर्जा मंत्री बनाये गए थे तो युवा पुष्कर सिंह धामी उनके काफी निकट के ओएसडी होते थे।
लिहाजा, राज्यपाल कोश्यारी के बारे में ये माना गया कि वे अपने निकटस्थ पुष्कर सिंह धामी की मदद के लिए ही मुंबई से दिल्ली आए हैं। प्रदेश की नौकरशाही के एक बड़े हिस्से को भी भगत दा इस तरह का विशेष संदेश देने में सफल रहे। धामी के पहले कार्यकाल में राज्यपाल कोश्यारी का अक्सर दिल्ली प्रवास भी राज्य में खूब चर्चा का विषय बना।
हालांकि, पुष्कर सिंह धामी के मार्च 2022 के बाद के मौजूदा कार्यकाल में राज्यपाल कोश्यारी का दिल्ली दौरा पहले की तरह तो नहीं हुआ। अलबत्ता, उत्तराखण्ड में उनके दौरे जारी रहे। इस बीच, सीएम पुष्कर सिंह धामी भी लम्बी लकीर खींचने की।कोशिश में जुटे हुए हैं। इस तथ्य की तसदीक पूर्व सीएम व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के कई ट्वीट से भी हो जाती है।
अपने ट्वीट में हरीश रावत सीएम धामी की खुलकर तारीफ करते नजर आते हैं। हरीश रावत सीएम धामी से जुड़े प्रसंगों की तारीफ कर अपनी पार्टी कांग्रेस के नेताओं को चेतावनी भी देते नजर आ रहे है । पुष्ट सूत्रों का कहना है कि
पूर्व सीएम हरीश रावत का आफ द रिकॉर्ड यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि अगर पुष्कर सिंह धामी को पूरे पांच साल सरकार चलाने का मौका मिल गया तो कई बड़े नेताओं की छुट्टी हो जाएगी।
बहरहाल, इस समय मुख्य मुद्दा भगत सिंह कोश्यारी के उत्तराखण्ड वापसी को लेकर जारी राजनीतिक हलचल को लेकर है।
भगत सिंह कोश्यारी में आने से कांग्रेस को कोई विशेष असर पड़े या नहीं। लेकिन भाजपा के अंदर विभिन्न गुटों में जबरदस्त हलचल व बेचैनी है। अब अपने मूल राज्य में आने के बाद कोश्यारी कितना पर्दे के पीछे और कितना पर्दे जे आगे एक्टिव रहते हैं, यह तो समय ही बताएगा।
लेकिन , उखाड़-पछाड़ में माहिर कोश्यारी की मौजूदगी भर से ही भाजपा के अंदर राजनीतिक भूकंप आने का डर हमेशा ही बना रहेगा। कोश्यारी को इस बात का भी मलाल होगा कि पार्टी नेतृत्व ने नित्यानन्द स्वामी को हटाकर उन्हें 2001 में सिर्फ एक बार सीएम बनाया। उसके बाद 2007, 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद पार्टी हाईकमान ने उन्हें सीएम नहीं बनाया।
यही नहीं, भाजपा सरकार में मुख्यमन्त्री बीसी खंडूडी, रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र रावत, तीरथ रावत को बदले जाने व पुष्कर धामी को आजमाते वक्त पार्टी नेतृत्व ने कोश्यारी को दूसरी बार मौका नहीं दिया गया। 2017 में भगत सिंह कोश्यारी समर्थकों ने पूरा जोर लगाया था लेकिन मोदी-शाह ने त्रिवेंद्र रावत पर भरोसा जताया।
उत्तराखण्ड में भाजपा सीएम बदले जाने में कोश्यारी की अहम भूमिका रही
दरअसल राज्य गठन के समय से ही उत्तराखण्ड भाजपा के सत्ता संग्राम में कोश्यारी एक बड़े योद्धा बन कर उभरे। अविभाजित उत्तर प्रदेश में विधान परिषद सदस्य बने कोश्यारी बहुत लो प्रोफाइल में थे । यूपी भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, केदार सिंह फोनिया, मातबर सिंह कण्डारी, बंशीधर भगत, मोहन सिंह रावत गांववासी ज्यादा सुर्खियों में रहते थे।
साल 2000 में राज्य बनने के बाद नित्यानंद स्वामी पहले सीएम बनने के बाद बागी तेवर दिखा भगत सिंह कोश्यारी चर्चाओं में आये थे। भगत दा को निशंक का भी खूब साथ मिला। कोश्यारी के विरोधी तेवर जारी रहे। और 2001 अक्टूबर में भाजपा हाईकमान ने स्वामी को हटा भगत सिंह कोश्यारी को सीएम बना दिया। स्वामी के तख्ता पलट में भगत सिंह कोश्यारी की अहम भूमिका मानी गयी। कोश्यारी को लगभग चार महीने बतौर सीएम मिले। और 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित हार झेलनी पड़ी।
हार के प्रमुख कारणों में भाजपा की अंदरूनी जंग को नम्बर वन पर माना गया। 2007 में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। पार्टी नेतृत्व ने जनरल बीसी खंडूड़ी के नाम पर मुहर लगाई। कोश्यारी को राज्यसभा भेज कर राहत देने की कोशिश की गई। लेकिन कोश्यारी की नाराजगी कम नहीं हुई।
इस बीच,फिर स्वामी वाली कहानी दोहराई गयी। पार्टी के अंदर हुए झगड़ों की वजह से खंडूडी को हटा निशंक को सीएम बनाया गया।
2009 की गर्मियों में यह फेरबदल किया गया। खंडूडी को हटाने की मुहिम में कोश्यारी के करीबी विधायक मुन्ना सिंह चौहान इस्तीफे ने बदलाव की पूरी पटकथा लिख दी। इसी बीच, कोश्यारी ने भी राज्यसभा से इस्तीफा का शोर बुलंद कर भाजपा हाईकमान को ‘करवट’ में लिया। नतीजतन, 2009 की गर्मियों में खंडूड़ी को सीएम की कुर्सी से हटा दिया गया। लेकिन हाईकमान ने एक बार फिर कोश्यारी को सीएम नहीं बना कर निशंक को बनाया। अलबत्ता कोश्यारी ने प्रकाश पंत और खण्डूड़ी ने निशंक को सीएम दवेदरनके तौर पर प्रस्तुत किया था। पार्टी में हुए गुप्त मतदान में खंडूडी गुट का पलड़ा भारी रहा। और निशंक ने सीएम पद की शपथ ली।
बदलाव की कहानी यहीं तक नहीं थमी। भाजपा में एक नया खेल शुरू हुआ। और कभी विरोधी रहे खण्डूड़ी व कोश्यारी ने हाथ मिलाते हुए निशंक को कुर्सी से हटवा दिया। इस बदलाव के बाद एकक बार फिर बीसी खण्डूड़ी सीएम बने। इस बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में कोश्यारी की भूमिका सबसे अहम रही। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आयी।
2017 में भाजपा विधानसभा चुनाव जीती। इस बार भी भगत सिंह कोश्यारी सीएम की दौड़ में आगे देखे गए। सम्भवतया आखिरी मौके के तौर पर कोश्यारी को उम्मीद थी कि नेतृत्व उन्हें मौका देगा। लेकिन मोदी- शाह ने कोश्यारी के ही करीबी रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को कमान सौंपी।
बेशक एक समय त्रिवेंद्र की कोश्यारी से काफी नजदीकी थी। खंडूड़ी के विरोध के समय त्रिवेंद्र सिंह रावत हर समय कोश्यारी के साथ खड़े रहे। एक समय त्रिवेंद्र को कोश्यारी का बायां हाथ माना जाता था।
लेकिन सत्ता संभालने के बाद त्रिवेंद्र व कोश्यारी के रिश्तों पर भी बर्फ जमने लगी। दरअसल, इससे पहले ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के चयन के समय से ही त्रिवेंद्र और भगत दा की दूरियां बढ़ने लगी थी। प्रदेश अध्यक्ष की जंग में भगत दा ने आखिरी समय पर अजय भट्ट को अध्यक्ष बनवा दिया था। और त्रिवेंद्र पूरा खेल देखते रह गए थे।
इधर, 2017 में सीएम बनने के समय कोश्यारी लोकसभा सदस्य थे। धीरे-धीरे त्रिवेंद्र के खिलाफ भी भाजपा के अंदर माहौल बनाये जाने लगा। नये मोर्चे पर राजनीतिक जंग शुरू हुई। और त्रिवेंद्र को भी कार्यकाल पूरा किये बिना मार्च 2021 में सीएम की कुर्सी से हटना पड़ा। नये सीएम तीरथ रावत भी जुलाई में रुखसत कर दिए गए। और युवा पुष्कर सिंह धामी को नया सीएम बनाया गया।
2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत व स्वंय की हार के बावजूद मोदी-शाह ने पुष्कर सिंह धामी को ही फिर से सीएम बना सभी वरिष्ठ नेताओं को चौंका दिया।
चंपावत उपचुनाव जीतने के बाद पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड की कई चुनौतियों से जूझ रहे है। बेरोजगार युवाओं का आन्दोलन, जोशीमठ आपदा, भर्ती घोटाले व अंकिता भंडारी हत्याकांड जैसे ज्वलन्त मुद्दों की उठ रही लपटों के बीच मुंबई छोड़ उत्तराखण्ड आ रहे बुजुर्ग भगत सिंह कोश्यारी का ‘स्टडी प्लान’ युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी का कितना मार्गदर्शन कर पायेगा, देखने वाली बात अब यही ही है..
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