शिक्षक की मौलिक नियुक्ति तिथि में बदलाव की वजह नहीं बता पाया शिक्षा विभाग
राज्य सूचना आयुक्त ने शिक्षा विभाग की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून । राज्य सूचना आयुक्त विपिन चंद्र ने सरकारी शिक्षक की मौलिक नियुक्ति सम्बन्धी तिथि में परिवर्तन सम्बन्धी मामले की सुनवाई करते हुए माध्यमिक शिक्षा के तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी आशुतोष भंडारी को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए 25 हजार का जुर्माना ठोका ।
आयोग में दूसरी अपील के निस्तारण में दिए गये आदेश का पालन नहीं करने पर सूचना आयुक्त ने शिक्षा विभाग की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी भी जताई। और 28 जुलाई की सुनवाई में लोक सूचनाधिकारी को व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित रहने के भी निर्देश दिए।
गौरतलब है कि अपीलार्थी रूप चन्द्र लखेड़ा ने मौलिक नियुक्ति तिथि में हुए परिवर्तन पर विभाग से सूचना मांगी थी । लेकिन शिक्षा विभाग ने जवाब दिया कि यह सूचना विभाग में उपलब्ध नहीं है।
लिहाजा, आयोग का मानना है कि यदि मौलिक नियुक्ति तिथि 10/08/1994 है तो उसे किस आधार पर 25/02/1995 में परिवर्तित किया गया है। आज सुनवायी के समय लोक सूचना अधिकारी से पूछा गया कि वे मौलिक नियुक्ति तिथि में बदलाव का आधार बताये? किन्तु लोक सूचना अधिकारी ऐसा कोई आधार / नियम / प्रावधान नहीं दिखा पाये।
सूचना आयुक्त विपिन चन्द्र का आदेश
आशुतोष भण्डारी, तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी / उप निदेशक (माध्यमिक शिक्षा), कार्यालय निदेशक (माध्यमिक शिक्षा), उत्तराखण्ड, देहरादून को सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की धारा-20 (1) के अन्तर्गत कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है कि क्यों न उन पर रू0 250/- (दो सौ पचास रूपये) प्रतिदिन की दर से अधिकतम रू० 25,000/- (पच्चीस हजार रूपये) की शास्ति अधिरोपित कर दी जाये?
आयोग द्वारा पत्रावली में संलग्न अभिलेखों का अवलोकन/परीक्षण किया गया। द्वितीय अपील के निस्तारण आदेश में लोक सूचना अधिकारी को स्पष्ट निर्देश दिये गये थे कि “ऐसा कोई आधार/नियम/प्रावधान है, जिसके तहत मौलिक नियुक्ति तिथि 10/08/1994 को 25/02/1995 में परिवर्तित किया गया है।” किन्तु अद्यतन तक आयोग के उपरोक्त आदेश का अनुपालन नहीं हुआ है, जो न केवल आयोग के आदेश की अवहेलना है अपितु सूचना अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का स्पष्ट उलंघन है।
यद्यपि मौलिक नियुक्ति सम्बन्धी अभिलेख निदेशालय में उपलब्ध होना अपेक्षित है। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि उनके द्वारा अपने कार्यालय से सूचना देने का कोई प्रयास न करके एक प्रशासनिक तरीके से औपचारिकता निभाते हुए अपर निदेशक, माध्यमिक शिक्षा उत्तराखण्ड द्वारा दिनांक 30/01/2023 को मात्र मण्डलों को पत्र लिखकर प्रकरण की इतिश्री कर दी है और आगे की कार्यवाही सम्बन्धित अभिलेख प्राप्त होने पर करने की बात कही गयी है, परन्तु उसकी प्रति अपीलार्थी को नहीं दी गयी है और न ही उसके उपरान्त कोई अनुस्मारक पत्र ही भेजा गया है। जिससे स्पष्ट है कि विभाग द्वारा उक्त प्रकरण को गम्भीरता से न लेते हुए मात्र खानापूर्ति की गयी है। जबकि जिम्मेदारी लोक सूचना अधिकारी की बनती थी. चूंकि आयोग द्वारा आदेश उन्हें ही दिये गये थे।
वर्णित स्थिति में श्री आशुतोष भण्डारी, तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी / उप निदेशक (माध्यमिक शिक्षा), कार्यालय निदेशक (माध्यमिक शिक्षा), उत्तराखण्ड, देहरादून को सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की धारा-20 (1) के अन्तर्गत कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है कि क्यों न उन पर रू0 250/- (दो सौ पचास रूपये) प्रतिदिन की दर से अधिकतम रू० 25,000/- (पच्चीस हजार रूपये) की शास्ति अधिरोपित कर दी जाये?
साथ ही क्यों न उनके विरूद्ध अधिनियम की धारा-20 (2) के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही हेतु उनके विभागाध्यक्ष को संस्तुति की जाये। वह अपना लिखित स्पष्टीकरण आयोग को आगामी सुनवायी की तिथि से पूर्व प्रेषित कर सकते हैं तथा आगामी सुनवायी की तिथि दिनांक 28/07/2023 पर स्वयं व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपना पक्ष लिखित रूप से प्रस्तुत कर सकते हैं तथा समर्थन में यदि कोई साक्ष्य हों तो उसे भी आयोग के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं।
सुनवायी के उपरान्त उपस्थित अपीलार्थी के कथनानुसार उक्त प्रकरण सम्बन्धित वरिष्ठता के बिन्दु पर सचिव विद्यालय शिक्षा द्वारा संज्ञान लिया गया था किन्तु उसका निराकरण नहीं हुआ है। अतः आज के आदेश की एक प्रति सचिव, विद्यालय शिक्षा (मा०शि०), उत्तराखण्ड शासन, देहरादून को इस आशय से प्रेषित की जाती है कि वे उक्त प्रकरण का शीघ्र निस्तारण करते हुए आयोग के उपरोक्त आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करायें। ताकि प्रस्तुत प्रकरण का निस्तारण किया जा सके।
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