…सावन शुरू तो रिमझिम गिरे सावन जैसे दिल को छूने वाले गीत बरबस याद आने लगते हैं… बीते 27 जून को पंचम दा की 32वीं पुण्य तिथि गुजरी और रिमझिम गिरे सावन का री क्रिएटेड वीडियो भी छा गया…इस वीडियो में एक उम्रदराज कपल ने 1972 में अमिताभ और मौसमी पर फिल्माए गए इस गाने की हूबहू लोकेशन पर गाने के बोल पर एक्टिंग की..यह भी खूब पसंद किया जा रहा है…
पुण्य तिथि पर बहुत याद आये पंचम दा
लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार सुफल भट्टाचार्य का पंचम दा को याद करता भावपूर्ण आलेख
इस बार सोचा था 27 जून को आभासी दुनिया में एक पोस्ट के जरिये सदाबहार आर.डी. बर्मन को उनके बर्थडे पर एक बार फिर याद करूंगा। पिछले साल मैंने एक पोस्ट के जरिये उन्हें याद किया था। बीते कुछ वर्षों में कोरोना काल ने भारतीय संगीत की दुनिया को गहरा धक्का पहुंचाया। अब गानों का ट्रेंड बदल गया है।
यहां यह भी जोड़ना चाहूंगा कि कोरोना के पहले भी भारतीय फिल्मी संगीत की दुनिया ठिठक सी गई थी। थम सी गई थी। सुर और ताल की दिशाएं अलग-अलग नजर आती थी, और यह सब अब भी चल रहा है। ऐसे में आरडी बर्मन सहज ही याद आते हैं और शायद आगे भी याद आते रहेंगे।
राहुल देव बर्मन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने दौर से बीस साल आगे की म्यूजिक पर काम किया। वह संगीत के लिए ही बने थे। उनकी बनाई धुनें आज भी हर उम्र के लोग सुन रहे हैं। गुनगुना रहे हैं। आरडी अगर आज जीवित होते तो हम सब उनका 84 वां जन्म दिन मना रहे होते। यह भी सच है कि उनके गानों की पोटली में सैकड़ों और मेलोडियस गानों के खजाने जुड़ गए होते, हम सब वो भी गुनगुना रहे होते। लेकिन वक्त को शायद कुछ और ही मंजूर था। सिर्फ 55 साल की उम्र में ‘पंचम दा’ ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
थोड़ा पीछे लौटते हैं। मुझे एक इंटरव्यू याद आ रहा है। कुछ साल पहले एक बांग्ला चैनल पर मैं अमित कुमार (किशोर कुमार के पुत्र) का साक्षात्कार देख रहा था। इस इंटरव्यू में वह आरडी बर्मन का जिक्र कर रहे थे। आर डी उन दिनों फिल्मी दुनिया में वापसी के लिए संघर्ष कर रहे थे। बात भी चल रही थी उनकी (आरडी) वापसी पर।
1994 में ‘1942 ए लव स्टोरी’ रिलीज हुई थी। इस फिल्म के संगीत ने धूम मचा दी थी। बकौल अमित कुमार, 4 जनवरी 1994 को अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले आरडी ने अपने एक करीबी मित्र को भरोसा दिलाया था कि वह जोरदार वापसी करने जा रहे हैं।
बकौल अमित कुमार उन्होंने उस मित्र से कहा था, बस इंतजार करो…मेरी बात याद रखना, आरडी को लोग फिर याद करेंगे। वह शायद ‘1942 ए लव स्टोरी’ का ही जिक्र कर रहे थे। विधु विनोद चोपड़ा की इस फिल्म के गानों ने वाकई धूम मचा दी थी। ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’…और ‘कुछ न कहो…’ जैसे गानों के साथ आरडी की वापसी तय हो गई थी, लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था। इस वापसी का जश्न पंचम की किस्मत में नहीं था। फिल्म के संगीत को प्रतिष्ठित फिल्म फेयर अवार्ड के लिए भी चुना गया था लेकिन अवार्ड लेने के लिए आरडी मंच पर मौजूद नहीं थे।
इसी इंटरव्यू में अमित कुमार ने एक और किस्सा भी शेयर किया था। यह था संगीत की दुनिया में उनके (अमित कुमार के) पदार्पण का। बकौल अमित, उनके पिताजी यानि किशोर कुमार ने एक समय ‘पंचम’ से अमित को गाने का एक मौका देने की गुजारिश की थी, तब आरडी टाल गए थे, कहा था वक्त आने पर देखा जाएगा। फिर वक्त का पहिया घूमा। 1967 में बांग्ला में ‘बालिका वधू’ बनाने वाले तरुण मजूमदार ने इस सुपरहिट फिल्म को हिन्दी में बनाने का फैसला किया। बांग्ला में उन्होंने मौसमी चटर्जी को ब्रेक दिया था।
इस फिल्म ने बंगाल में तहलका मचाया था। नौ साल बाद यह फिल्म हिन्दी में बनाई गई। कलाकार थे सचिन और रजनी शर्मा। निर्देशक तरुण मजूमदार ही थे। फिल्म में संगीत के लिए ‘पंचम’ को साइन किया गया था। यह फिल्म 1976 में रिलीज हुई थी। फिल्म के मुख्य गाने के लिए आरडी को एक ‘फ्रेश’ आवाज की तलाश थी। एक दिन सुबह अचानक उन्होंने किशोर कुमार को फोन किया और कहा, अमित को साथ लेकर स्टूडियो आ जाओ। किशोर शायद आरडी का इशारा समझ गए थे और इस तरह आरडी ने अमित को ब्रेक दे दिया।
अमित ने जो गाना गाया उसके बोल क्या थे…याद कीजिए …जी हां…उसके बोल थे ‘बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती…ये नदियां…ये रैना…और तुम।’अमित कुमार का यह गीत आज भी लोगों को बखूबी याद होगा। अमित कुमार ने गाया भी बेहद खूबसूरती से। फिल्म रिलीज होते ही यह गाना रातों-रात हिट हो गया।
अमित कुमार को भी फिल्म इंडस्ट्री में धमाकेदार इंट्री मिल गई। यहां मैं इस गाने का किस्सा इसलिए बयां कर रहा हूं, क्योंकि अब भी यह गाना उतना ही पसंद किया जाता है जितना आज से 45 साल पहले किया जाता था। हालांकि अमित कुमार को सोलो प्रसिद्धि ‘लव स्टोरी’ से मिली यह भी सच है।
फिल्मी संगीत में आरडी बर्मन को यूं ही ‘ट्रेंड सेटर’ नहीं कहा जाता है। उनका संगीत आज भी उतना ही फ्रेश है जितना आज से 50 साल पहले था। इसमें दो राय नहीं कि पंचम दा ने अपने दौर से 20 साल आगे की म्यूजिक पर काम किया और उसे हिन्दुस्तानी परिवेश में ढाला भी खूबसूरती से। यह मैं नहीं, उनके गाने खुद बयां करते हैं।
आइए उनके कुछ गानों की बात करते हैं। 1966 में बनी ‘तीसरी मंजिल’ के लाजवाब गाने आज भी सुने जाते हैं। आरडी की यह पहली हिट फिल्म थी। कहा जा सकता है कि इस फिल्म ने हिंदी फिल्मों के संगीत का ट्रेंड भी बदल दिया था। मुझे ऐसा लगता है कि 1966 से 1985 तक आरडी और बस आरडी… की ही हर तरफ गूंज रही।
इस दौरान कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ऊषा खन्ना, रविन्द्र जैन जैसे और भी बड़े नाम सामने आए लेकिन आरडी अपने म्यूजिकल एक्सपेरिमेंट के जरिए अलग ही छाप छोड़ते रहे। इसमें उनके द्वारा आजमाए गए म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट (माउथ आर्गन, सेक्साफोन, बेस और इलेक्ट्रिक गिटार) के अद्भुत प्रयोग का भी कमाल रहा है।
खैर लौटते हैं गानों पर, ‘तीसरी मंजिल’ के बाद ‘कारवां’ का एक गाना ‘पिया तू अब तो आ जा’ और ‘प्यार का मौसम’ का ‘तुम बिन जाऊं कहां’ मुझे बेहद पसंद है। यह गाने आरडी के संगीत को नई ऊंचाइयों पर ले जाते हैं। ‘तुम बिन जाऊं कहां’ को किशोर और मोहम्मद रफी ने गाया। 1969 में यह फिल्म रिलीज हुई थी। संगीत के जानकार आज तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि, रफी और किशोर में किसने बेहतर गाया है। दोनों ही गाने लाजवाब हैं।
70 का दशक यानि सिने संगीत की मेलोडी का दशक। दो राय नहीं कि तमाम संगीतकारों की मौजूदगी के बावजूद यह दशक आरडी के नाम रहा। ब्लाक बस्टर ‘आराधना’ में यूं तो म्यूजिक डायरेक्टर सचिन देव बर्मन थे, लेकिन कहा जाता है कि फिल्म में सहायक संगीत निर्देशक रहे आरडी ने ही गानों को फिनिशिंग टच देने की जिम्मेदारी निभाई। तब शायद सचिन दा बीमार थे। 52 साल बीत गए लेकिन ‘रूप तेरा मस्ताना’ का क्रेज आज भी कम नहीं हुआ है।
देव आनंद की ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में ‘दम मारो दम…अपने दौर से बीस नहीं शायद चालीस, पचास साल आगे का ही गाना था। इस कड़ी में यादों की बारात का…‘आपके कमरे में कोई रहता है’ और हम किसी से कम नहीं का ‘क्या हुआ तेरा वादा…को भी नहीं भूलना चाहिए। यह अलग तरह का संगीत था। ताजगी से भरा हुआ। बेहद सुरीला।
आरडी ने 1961 से अपना फिल्मी सफर ‘छोटे नवाब’ से शुरू किया था और वह 33 वर्षों तक सक्रिय रहे। फिल्मों की बात करें तो कोरा कागज, अमर प्रेम, हरे रामा हरे कृष्णा, यादों की बारात, बुड्ढा मिल गया, सीता और गीता, मेरे जीवन साथी, रामपुर का लक्ष्मण, परिचय, अपना देश, बॉम्बे टू गोआ, आप की कसम, शोले, आंधी, हम किसी से कम नहीं, घर, कस्मे वादे और गोलमाल के संगीत ने सत्तर के दशक को बांधे रखा।
1980 में ‘खूबसूरत’ के संगीत को भी बेहद पसंद किया गया। सनम तेरी कसम, रॉकी, सत्ते पे सत्ता और लव स्टोरी में आरडी बर्मन का जादू चलता रहा। हालांकि इसके बाद का दौर उनके लिए अच्छा नहीं रहा। कुछ बड़े प्रोडक्शन हाउस ने पंचम से किनारा किया। इसमें नासिर हुसैन कैम्प (यादों की बारात, हम किसी से कम नहीं, कारवां, जमाने को दिखाना है, जबरदस्त) का जिक्र करना जरूरी होगा।
1988 में आरडी बर्मन को दिल का दौरा पड़ा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। नई धुनों पर वह काम करते रहे। वैसे लिखने को तो आरडी बर्मन पर अभी काफी कुछ बाकी है। मसलन उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए Instruments। उनकी orchestra टीम के सदस्यों या आरडी ने जिन्हें प्रमोट किया, उनके ‘पंचम’ बनने की कहानी और भी बहुत कुछ…लेकिन यह सब फिर कभी।
फिलहाल, मुझे दस साल पहले सुरों की मलिका लता मंगेशकर का ट्विटर पर आरडी बर्मन पर लिखा याद आ रहा है…लता जी लिखती हैं ‘आज मुझे 13-14 साल का एक छोटा लड़का याद आ रहा है, जो एस डी बर्मन साहब की रिकॉर्डिंग के दौरान खाकी शॉर्ट और सफेद शर्ट पहने हुए मेरे पास मेरा ऑटोग्राफ लेने आया था। बर्मन दा ने मुझसे कहा कि यह मेरा बेटा पंचम है, अभी सरोद सीख रहा है। उस दिन मैं पहली बार पंचम से मिलीं। उसके कुछ सालों बाद मुझे महमूद साहब से यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पंचम उनकी फिल्म में संगीत दे रहा है और वह मेरा गाना रिकॉर्ड करना चाहते हैं।’
लता जी ने लिखा, ‘उस फिल्म का नाम ‘छोटे नवाब’ था और गाना था ‘घर आ जा घिर आई।’ मुझे गाना सुनने के बाद यह जानकर बड़ा अच्छा लगा कि इतना छोटा लड़का इतना अच्छा संगीत दे रहा है। मैंने वह गाना गाया और उसके बाद यह सिलसिला चलता रहा। मैंने उसके निर्देशन में कई गाने गाए, वह छोटी उम्र में इस दुनिया से चला गया। इसका मुझे बहुत दु:ख है। मैंने उसका आखिरी गाना ‘कुछ ना कहो’ रिकॉर्ड किया था।’
आरडी बर्मन को गुजरे 29 साल हो गए लेकिन अपने सुरीले गानों के जरिए आज भी वह हमारे बीच मौजूद है। अंत में रिमझिम बरसात के बीच बासु चटर्जी निर्देशित ‘मंजिल’ फिल्म का बेहद रोमांटिक गाना ‘रिमझिम गिरे सावन…को सुनिए और पंचम को याद करिए।
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