पर्यावरण के योद्धा मनोज मिश्रा कोटद्वार के प्रसिद्ध मिश्रा परिवार के सदस्य
पर्यावरण के लिए समर्पित की जिंदगी, लोग कहते थे यमुना मैन
अविकल उत्तराखण्ड/GNT/राजू सजवान/NBT
यमुना के घाटों से लेकर अदालतों तक के चक्कर लगाने वाले ‘यमुना जिए अभियान’ के संरक्षक मनोज मिश्रा का 4 जून की दोपहर 12.30 बजे भोपाल में निधन हो गया. वो 70 वर्ष के थे और कोरोना संक्रमण के चलते वह लंबे समय से बीमार थे.
भारतीय वन सेवा (IFS) के पूर्व अधिकारी और यमुना में प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले योद्धा मनोज मिश्रा का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. सेवानिवृत्त होने के बाद से ही मनोज यमुना जिए अभियान चलाने सहित देश भर की नदियों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे थे. मनोज मिश्रा के परिवार में उनकी मां, पत्नी एवं बेटी हैं. मनोज करीब दो महीने पहले कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे. जिसकी वजह से उनके फेफड़े 80 प्रतिशत खराब हो चुके थे. उन्होंने भोपाल के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली.
कौन थे मनोज मिश्रा?
1979 बैच के भारतीय वन सेवा के अधिकारी मनोज मिश्रा अविभाजित मध्यप्रदेश में कई जिलों में पदस्थ रहे एवं वन विहार भोपाल सहित कई राष्ट्रीय अध्यारण्यों में निदेशक रहे. सीसीएफ पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त के बाद उन्होंने यमुना विशेष तौर पर दिल्ली में इसकी अप स्ट्रीम एवं डाउन स्ट्रीम में प्रदूषण को लेकर सत्याग्रह किया एवं न्यायालयों में कई याचिकाएं दर्ज की, जिसके बाद नदियों के संरक्षण के लिए कई आदेश पारित किए. इसके बाद प्रति वर्ष नदी सप्ताह का आयोजन प्रारंभ किया.
भारतीय वन सेवा में अधिकारी रहे मनोज मिश्रा ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगभग 22 वर्षों तक काम किया. प्रमुख वन संरक्षण के पद पर पहुंचने के बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी. मनोज ने 11 नवंबर, 2011 को दिल्ली की यमुना के डूब क्षेत्र और उनसे जुड़े जलाशयों का दौरा किया. वह हैरान थे कि डाउनस्ट्रीम यमुना पूरी तरह कूड़े-कचरे और निर्माण मलबों से पटी पड़ी है. इसके बाद यमुना के संरक्षण के लिए यमुना जिए अभियान की शुरुआत की. इस अभियान के जरिए यमुना को प्रदूषित करने वाले तमाम कारकों के खिलाफ उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी. यमुना को पुनर्जीवित कर देने कि चिंता उनके भीतर रच-बस गई थी. कई आदलती लड़ाइयों के बाद यमुना की सफाई को लेकर कई निर्देश जारी किए गए. लेकिन इसे लागू करने के लिए भी उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी.
पर्यावरणविद मनोज मिश्रा का कोटद्वार से गहरा नाता
यमुना मैन मनोज मिश्रा का कोटद्वार से गहरा नाता रहा। दुगड्डा-कोटद्वार के प्रसिद्ध मिश्रा परिवार से सम्बन्ध है। गोविंदनगर में उनका पैतृक आवास है। मनोज मिश्रा के पिता रमेश चन्द्र मिश्रा साहित्यकार थे । और माता जी पदमा मिश्रा राजकीय कन्या इंटर कालेज,कोटद्वार में शिक्षिका थी। 1977 में मिश्रा परिवार देहरादून शिफ्ट हो गया। उनकी बहन श्रद्धा मिश्रा का विवाह आर्मी अफसर से हुआ। बहन ने हाईस्कूल तक शिक्षा कोटद्वार से ही ली।
आर्ट ऑफ लिविंग वालों को देनी पड़ी क्षतिपूर्ति राशि
मनोज मिश्रा ने 2016 में वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल के लिए आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन द्वारा बाढ़ के मैदानों को हुए नुकसान पर एनजीटी के समक्ष एक याचिका भी दायर की थी. ट्रिब्यूनल ने तब फाउंडेशन पर 5 करोड़ रुपये की पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति राशि लगाई थी. इन पैसों का इस्तेमाल डूब क्षेत्र को बेहतर करने के लिए किया जाना था. मनोज के निधन पर सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर जल मंत्री सौरभ भरद्वाज और दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार ने भी शोक जताया.
मनोज मिश्रा के निधन पर सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर जल मंत्री सौरभ भरद्वाज और दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार ने भी शोक जताया.
कई लोगों ने लिखा, ‘मनोज जी, आप बहुत याद आएंगे। नदियों की तरह आपके विचार और साहस हम सबमें बहता रहे।’ दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने ट्वीट कर गहरा दुख जताया है। उन्होंने लिखा, ‘श्री मनोज मिश्र जी के असामयिक निधन से गहरा दुख पहुंचा है। मैं स्तब्ध हूं। यमुना के बेटे के रूप में वह उसके पुनरुद्धार के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे। वह पर्यावरण के एक योद्धा थे। मेरी संवेदनाएं उनके दोस्तों और परिवार के साथ हैं।’
कुछ महीने पहले मनोज मिश्र ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यमुना की स्थिति दिल्ली में बद से बदतर होती चली गई। 1994 में पहला एक्शन प्लान आया, 2002 में दूसरा, 2012 में तीसरा लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। हां, कोविड काल में जब लॉकडाउन लगा तब अप्रैल 2020 में यमुना नदी ने अपने आप को स्वस्थ कर लिया था। उन्होंने कहा था कि तब ऐसा हुआ क्योंकि उद्योगों के कचरे आने बंद हो गए।
वरिष्ठ पत्रकार राजू सजवाण ने कुछ यूं याद किया यमुना मैन मनोज मिश्रा को
बात 2008 की है। मैं तब हिंदुस्तान में था। मेरा नोएडा से दिल्ली ट्रांसफर हुआ। दिल्ली में मुझे कुछ ऑफबीट पर काम करने को कहा गया।
सोचा, क्यों ना यमुना पर कुछ किया जाए। मुझे पता चला कि कुछ लोग यमुना किनारे बन रहे कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज का विरोध कर रहे हैं। बस मैं पहुंच गया, वहां कुछ लोग बैठे थे। उनमें से एक मनोज मिश्रा भी थे, जिन्हें मैं नहीं जानता था। पर मेरी उत्सुकता तब बढ़ गई, जब मुझे पता चला कि वहां जल पुरुष के नाम से प्रसिद्ध राजेंद्र सिंह जी आने वाले हैं।
उन्हें मैं जानता था। कुछ देर इंतजार के बाद वह आए, उनसे मैंने बातचीत की। उन्होंने तब बताया कि कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज यमुना की जमीन पर बसाया जा रहा है और इसका व्यापक विरोध किया जा रहा है। यह लड़ाई मनोज जी के नेतृत्व में लड़ी जा रही है।
उन्होंने मेरा परिचय मनोज जी से करवाया। मनोज जी अदालत में भी कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज के खिलाफ लड़ रहे थे। हालांकि बाद में डीडीए ने उसे नेशनल इंटरेस्ट में बता कर सुप्रीम कोर्ट से अपनी जीत हासिल की।
लेकिन उसके बाद से मनोज जी और मेरा ऐसा परिचय हुआ कि मैंने यमुना पर लगातार स्टोरीज करनी शुरू कर दी। वह मेरे गाइड थे जो मुझे बताते थे कि कहां यमुना के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
मनोज जी यमुना ही नहीं पर्यावरण के प्रति बेहद सजग थे। मुझे हैरानी होती थी कि मध्यप्रदेश में चीफ फॉरेस्ट कंजरवेटर की नौकरी छोड़ कर वह यमुना की लड़ाई लड़ने दिल्ली आ गए थे।
पिछले कुछ सालों से मैं मनोज जी से नहीं मिला। लेकिन जब वे मेरे ट्वीट पर अपनी प्रतिक्रिया देते तो लगता कि भाई साहब मेरे आसपास ही हैं। मैं उन्हें भाई साहब ही कहता था।
पिछले दिनों जब पता चला कि मनोज भाई साहब बीमार हैं तो बार-बार मन में डर लगा रहता था। आज दिन में जब उनके जाने के बारे में सुना तो मन बैठ सा गया।
खास बात यह थी कि आज ही दिल्ली वालों ने यमुना को बचाने के लिए एक मानव श्रंखला बनाई थी। जिन साथियों ने यह काम किया, वह भी मनोज जी से जुड़े हुए थे, लेकिन शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि ऐसा करके वे लोग मनोज भाई साहब को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहे हैं। Santosh Kumar Ravishankar Tiwari
शायद उनकी यह लड़ाई अब उनकी नहीं रही, पूरी दिल्ली की हो गई है। इसी उम्मीद के साथ आपको विदाई …। अलविदा भाई साहब!!
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