अधिकारियों की गोद में गाँव: अब बदलेगी तस्वीर और तकदीर !

बोल चैतू

“फाइल में लिखा है ‘रोशनी हुई’,
गांव में रात भर जुगनू ही जले!”

यह चर्चा अक्सर होती रहती है कि जब हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ तो पहले सीएम वाई एस परमार ने गांवों पर फोकस किया। बागवानी, पर्यटन व अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर प्रदेश व ग्रामीण इलाकों की आर्थिकी मजबूत की।

साल 2000 में उत्तराखंड गठन के बाद यहां के नीति नियंताओं ने पर्यटन, बागवानी व ऊर्जा प्रदेश का नारा देकर आत्मनिर्भर प्रदेश बनाने का नारा दिया। लेकिन पहाड़ की जवानी और पानी को रोक नहीं पाए।

बागवानी,ऊर्जा और पर्यटन के क्षेत्र में ग्रामीण इलाके उम्मीदों के अनुरूप आत्मनिर्भर नहीं हो पाए। पहाड़ी जिलों से जनता मैदानी इलाकों में ठीया बनाने लगी।

पलायन आयोग की रिपोर्ट में 1700 से अधिक गांव भूतिया घोषित किये गए। इनमें 700 गांव ऐसे थे जो सिर्फ बीते दस साल में खाली हुए। पलायन के आंकड़े इससे भी ज्यादा भयावह है।

वैसे तो गांवों को सजाने व संवारने के लिए कई केंद्रीय व राज्य सरकार की विकास योजनाएं चल रही है। मौजूदा समय में होम स्टे व बागवानी को ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिकी मजबूत करने का खास हथियार माना जा रहा है।

उत्तराखण्ड के कई पूर्व व मौजूदा सीएम व सांसद गांवों को गोद लेते रहे हैं। 2013 की केदार आपदा के बाद कुछ संस्थाओं व जनप्रतिनिधियों ने भी अलग से गांवों को गोद लेने का ऐलान किया था।

इन गोद लिए गांवों का विकास किसी से छुपा नहीं है। नेता ही गोद लिए गांवों को भूल जाते हैं। इन गोद लिए गांवों की दुर्दशा चुनावी मुद्दा भी बनती रही है। कमजोर सिस्टम व दृढ़ इच्छाशक्ति ने प्रदेश के गांवों का बुरा हाल कर दिया है।

अगर सरकार स्वरोजगार के साथ गांवों के बिजली,पानी ,स्वास्थ्य व शिक्षा पर मन वचन और कर्म से फोकस करे तो बिगड़ी स्थिति कुछ सालों में सुधर सकती है।

कुछ समय पहले सीएम धामी की पहल पर प्रवासी उत्तराखंडी भी गांवों की ओर मुद्दे और कुछ गांवों को गोद लिया। इन गांवों की सूरतेहाल कितनी संवरेगी,यह भी भविष्य बता देगा।

इसके लिए सरकार को बेहतर ,कर्मठ व जुझारू अधिकारियों की फौज तैयार करनी होगी। पहाड़ से जुड़े मुद्दों और समस्या की बेहतर समझ रखने वाले अधिकारियों का एक क्लस्टर तैयार करना होगा। ग्रामीणों से सतत संवाद स्थापित कर गांवों के विकास का खाका खींचना होगा।

राज्य के कई अधिकारी अंधी कमाई में जुटे हुए हैं।  कई जगह इनके निवेश की खबरें आम है।
पहले तो राज्य के ऐसे चर्चितव भृष्ट अधिकारी किनारे किये जायँ। शासन से लेकर तहसील के अधिकारियों की एक श्रृंखला बनाकर गांव के विकास का रोडमैप को अमलीजामा पहनाया जाय।

इस बीच, सीएम धामी ने एक और पहल करते हुए 40 वरिष्ठ अधिकारियों को गांवों को गोद लेने का आदेश जारी किया  है। इस बाबत बाकायदा शासनादेश भी हो चुका है।

उम्मीद है कि अब ये अधिकारी सुरक्षित व आरामदायक कमरों से बाहर निकल गोद लिए विकट भौगोलिक परिस्थितियों वाले गांवों में आमूल चूल परिवर्तन करेंगे।

ढोल पीट पीट कर गांवों को गोद लेने वाले नेता तो जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे,लेकिन उत्तराखण्ड के वरिष्ठ अधिकारी धनुर्धर अर्जुन की तरह विकास के इस स्वंयवर में घूमती मछली की आंख को भेद पाएंगे..बोल चैतू..

                                 अविकल थपलियाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *