नवरात्र विशेष- पहाड़ी नारी ने स्वर्गीय बहुगुणा को भेजे पत्र में क्या लिखा..
वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास की कलम से
अविकल उत्तराखंड
देहरादून । नवरात्र में उत्तराखंड की उस महिला का जिक्र जरूरी समझ रहा हूं जो मन को झकझोरती हैं। उस महिला के बच्चे शालीनतावश इसका जिक्र कहीं नहीं कर ते। लेकिन हमें आपको तो जानना ही चाहिए।
वह दौर था जब प्रख्यात राजनेता एचएन बहुगुणा ने एक संदेश देकर सामाजिक अलख जगाने की कोशिश की थी कि ब्राहमणों और दलितों का आपसी विवाह संबंध होना चाहिए। एचएन बहुगुणा अपने प्रगतिशील विचारों के लिए जाने जाते थे। उनके इस आह्वान में सामाजिक समरसता का एक बड़ा संदेश था। जाहिर था कि इस बात की चर्चा दूर दूर तक हुई । वह जमाना सोशल मीडिया का नहीं था इसलिए ऐसी टिप्पणियां नहीं हुई जो समाज में किसी तरह विद्वेष फैलाए।

एचएन बहुगुणा की यह बात उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में भी पहुंची। तब पहाड़ की एक महिला ने इसे सुनकर एचएन बहुगुणा को पत्र लिखा। मान्यवर बहुगुणाजी मेरी भी बेटी है और आपका भी बेटा है। दोनों विवाह की उम्र के हैं। आपका सुझाव बहुत अच्छा है। आप बड़े राजनेता है। आप यह कदम उठाकर हमें प्रेरित कीजिए। आप अपने बेटे ( यानी विजय बहुगुणा ) का विवाह भी किसी दलित परिवार के लड़की से कीजिए। और अगले ही दिन मैं भी अपनी बेटी की शादी किसी दलित युवा के साथ कराऊंगी। यह पत्र बहुगुणाजी तक पहुंचा। ये शादियां तो तब नहीं पाई। लेकिन एचएन बहुगुणा को इस पत्र ने झकझोर दिया। अब वो अपने बेटे की शादी किसी दलित युवती से नहीं करा सके ये एक अलग प्रसंग है। न जाने क्या परिस्थितियां आईं ।
लेकिन एच एन बहुगुणा की भी प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने इस पत्र चुपचाप पढ़कर छिपाया नहीं। उन्होंने प्रख्यात समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मधु दंडवते से इस पत्र का जिक्र किया। आज के राजनेताओं में यह संभव नहीं। मधु दंडवते ने उस पत्र को पढकर एक पत्र इन महिला को भेजा और कहा कि आपने देश के नेताओं को अच्छा संदेश दिया है। नेता जो करेंगे समाज उसका अनुकरण करेगा ।
उन्होंने यह बताने की कोशिश की थी कि राजनेता जिस बात को कहते हैं उसका आचरण भी कर सकें तो समाज आगे बढेगा। इतना जरूर था कि जब उस पत्र के बाद एच एनबहगुणा पहाड़ों में आए तो वह उस महिला से मिलना नहीं भूले। यह प्रसंग इस मायने में भी गौर किया जा सकता है कि समाजवादी पिछड़ों की आवाज कहे जाने वाले नेता मुलायम सिंह यादव ने अपने बच्चों का रिश्ता किया तो उत्तराखंड के समर्थ सवर्ण परिवारों में किया। जिस मुस्लिम वर्ग को साधते हुए वह राजनीति करते रहे या उनके वंशज कर रहे हैं उन मुस्लिम को तो दूर पिछड़े दलित परिवार की किसी बिटिया को बहू नहीं बनाया।
जिस लालू को माडिया के एक वर्ग ने जमीनी नेता कहकर पुकारा वंचित गरीब गुरबाओं का मसीहा कहकर ताज पहनाया, अल्पसंख्यकों का खेवनहार बताया उनके नौ बच्चों में किसी एक का भी मुस्लिम परिवार से विवाह नहीं हुआ। किसी गरीब परिवार की बिटिया को लालू अपने महल में बहू बनाकर नहीं लाए। न अपनी बिटिया की किसी मुस्लिम दलित युवक से विवाह कराया। रिश्ता करना था तो अरबों में खेलने वाला मुलायम खानदान नजर आया। शायद उस महिला ने पांच छह दशक पहले एचएन बहुगुणा को इसी बात का संकेत दिया था कि पहले आप अनुसरण करो। फिर समाज करेगा। समाजवादी प्रगतिशील नेता अपने बच्चों को कान्वेंट में पढाते हैं तो दूसरे बच्चों को मदरसे में तालीम लेने के लिए कहते हैं।
अजब थी उस महिला की दढ़ता और जुझारुपन । केवल आठवीं कक्षा तक पढी थीं। लेकिन बेटे ने दसवीं की परीक्षा का फार्म भरा तो उन्होंने भी दसवीं की परीक्षा का फार्म भर लिया। बेटा भी पास और मां भी परीक्षा में सफल। फिर बारहवीं में बच्चों ने बारहवीं की परीक्षा दी तो वह पीछे क्यों रहतीं। उन्होंने भी बारहवीं की परीक्षा दी और पास हो गई। अब विश्वविद्यालय में बीए की परीक्षा का समय आया। उन्हें कुछ संकोच हुआ कि एक ही समय में श्रीनगर विश्वविद्यालय में बच्चों के साथ परीक्षा देने कैसे जाएं। तो उन्होंने सेंटर बदल लिया। गोपेश्वर से फार्म भरा और वहीं से वह स्नातक भी हो गई। उनके पति का ट्रांसफर अलग अलग जगह होता रहता था । लेकिन उन्होंने स्पष्ट कहा कि मैं अपने बच्चो की शिक्षा के लिए श्रीनगर से कहीं नहीं जाऊंगी। यहीं बच्चों को पढाऊंगी।
लेकिन इतना भर नहीं एक बार हिंदी साहित्य अकादमी के जरिए चर्चित पत्रिका सरिता में कहानी प्रतियोगिता की तो उन्होंने एक कहानी लिख कर भेज दी। जबकि बड़े बडे साहित्य के दिग्गजों ने अपनी कहानी भेजी थी । इस महिला की कहानी का चयन हुआ तो वह दिल्ली बुलाया गया। वह अपने बेटे के साथ सम्मान ग्रहण करने गई। यह महिला और कोई नहीं दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल की मांजी शशि ध्यानी हैं। आठ साल पहले उन्होंने इस दुनिया को छोड़ दिया था । लेकिन अपने पीछे संघर्ष कौशल की ऐसी मिसाल छोड़ी है। उनका मार्गदर्शन और प्रेरणा है कि प्रो सुरेखा डंगवाल एक जानी मानी शिक्षाविद्द के रूप में हैं। सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रंजना देसाई के नेतृत्व में यूसीसी का ड्राफ्ट बनाने वाली समिति की वह सदस्य रही हैं। पर्वत की नारी संघर्ष और जीवटता के अलग अलग प्रसंगों में सामने आती हैं। शशि ध्यानी भी उनमें एक है। उनकी जिंदगी प्रेरणा देती है।
Total Hits/users- 30,52,000
TOTAL PAGEVIEWS- 79,15,245