प्रदीप सती
आज से 50 बरस पहले 2 जनवरी 1974 की उस सुबह देहरादून के टाउन हॉल के बाहर एक अलग तरह की हलचल थी। कुछ देर के बाद टाउन हॉल के भीतर एक बहुत बड़े टेंडर की नीलामी के लिए बोली लगने वाली थी। वह टेंडर था, देहरादून से करीब 300 किलोमीटर दूर चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसे रैणी गांव के जंगल से लगभग ढाई हजार बेशकीमती पेड़ काटने का।
तय समय पर अधिकारी टाउन हॉल पहुंचे और नीलामी की प्रक्रिया शुरू हो गई। आखिरकार इलाहाबाद की साइमंड नामक कंपनी ने सबसे ज्यादा बोली लगा कर टेंडर हासिल कर लिया।
तत्कालीन सरकार ने स्थानीय लोगों के विरोध की परवाह न करते हुए साइमंड कंपनी को वन कटान का ठेका दे दिया था। ठेका हासिल करने के बाद कंपनी ने पेड़ों की कटाई शुरू करने के लिए 26 मार्च का दिन तय किया।
26 मार्च 1974 को योजना के मुताबिक कंपनी के ठेकेदार और मजदूर जंगल को तबाह करने रैणी पहुंच गए। उस दिन कंपनी की गोद में खेल रहे प्रशासन ने कुछ ऐसा ‘प्रपंच’ रचा था कि गांव के ज्यादातर पुरुष किसी खास मकसद से गांव से करीब 80 किलोमीटर दूर गोपेश्वर गए हुए थे। गांव में केवल महिलाएं और बच्चे ही थे।
यह प्रपंच इसलिए रचा गया था ताकि पुरुषों की गैरहाजिरी में पहाड़ की ‘अबला’ महिलाएं पेड़ कटान का विरोध न कर पाएं और कंपनी का काम आसान हो जाए।
लेकिन उस दिन पहाड़ की ‘अबला’ समझी जाने वाली महिलाओं ने जो किया, न तो कंपनी और न ही उसे संरक्षण देने वाली सत्ता ने, सपने में भी उसकी कल्पना की होगी।
बमुश्किल 20-22 की संख्या में इकट्ठा हुई महिलाओं ने उस दिन जंगल बचाने के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए ठेकेदार को खदेड़ कर ऐसी क्रांति की जो इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में ‘चिपको आंदोलन’ के नाम से अमर है।
26 मार्च को जब गांव के ज्यादातर पुरुष गोपेश्वर पहुंचे तो दूसरी तरफ साइमंड कंपनी का ठेकेदार मजदूरों को लेकर चुपचाप रैणी पहंच गया। इसी दौरान मजदूरों को जंगल जाते हुए किसी ने देख लिया और इसकी सूचना गौरा देवी तक पहुंचा दी।
ठेकेदार के पहुंचने की खबर मिलते ही गौरा देवी सभी महिलाओं को लेकर जंगल की ओर चल पडीं।
गौरा देवी ने जोर से आवाज लगाई और कहा, ‘भाइयो, यह जंगल हमारा मायका है। इससे हमें चारा, लड़की, जड़ी-बूटी, फल-फूल मिलते हैं। जंगल काटोगे तो बाढ़ आएगी,हमारे बगड़ बह जायेंगे। आप लोग हमारे साथ चलो। जब हमारे मर्द आ जाएंगे तब फैसला कर लेंगे।’
ठेकेदार और वन विभाग के कारिंदो ने गौरा देवी समेत सभी महिलाओं को काम में बाधा डालने के जुर्म में गिरफ्तार करने की धमकी दी लेकिन महिलाएं अपने विरोध पर कायम रहीं। धमकी से बात न बनती देख ठेकेदार ने बंदूक निकाल ली।
ठेकेदार की इस गीदड़ भभकी के जवाब में गौरा देवी ने जो किया, वह पहाड़ की उस बेटी के पहाड़ जैसे जज्बे का अमर दस्तावेज बन चुका है।
गौरा देवी ठेकेदार के सामने खड़ी हो गईं और अपनी सीना तानकर कहा, ‘पहले मुझे गोली मारो फिर काट लो हमारा मायका !’

