उत्तराखण्ड की फॉरेस्ट फायर पर सुप्रीम कोर्ट ‘फायर’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प्रदेश सरकार,जंगल की आग रोकें, बारिश का इंतजार न करें

सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को सुनाई खरी खरी,जमकर हुई ‘फायर’

अगली सुनवाई 15 मई को

अविकल उत्तराखंड 

नई दिल्ली/देहरादून। इधर सीएम धामी जंगल में लगी आग की समीक्षा के दौरान कई कार्मिकों को निलम्बित कर दिया। रुद्रप्रयाग जाकर जंगल से चीड़ की पत्तियां पिरूल बटोरने का सन्देश दे रहे थे। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने आग से हुए नुकसान पर सुनवाई करते हुए प्रदेश सरकार को जमकर खरी खोटी सुना दी। इस मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई करते हुए सरकार को आड़े हाथ ले लिया।

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि बारिश या कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) के भरोसे नहीं बैठा जा सकता। इसकी जल्द रोकथाम के उपाय करें। जवाब में सरकार बोली- 0.1% एरिया ही प्रभावित है आग से।

उत्तराखंड में आग से 1316 हेक्टेयर जंगल जल चुका

उत्तराखंड में अप्रैल के पहले हफ्ते से लगी आग से अब तक 11 जिले प्रभावित हुए हैं। इसमें गढ़वाल मंडल के पौड़ी रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी ज्यादा प्रभावित हैं और देहरादून का कुछ हिस्सा शामिल है। जबकि कुमाऊं मंडल का नैनीताल, चंपावत, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ ज्यादा प्रभावित हैं।

वन विभाग, फायर ब्रिगेड, पुलिस के साथ-साथ सेना के जवान रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे हुए हैं। आर्मी एरिया में आग पहुंचती देख एयरफोर्स के MI-17 हेलिकॉप्टर की मदद ली गई है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड के जंगलों में अप्रैल के पहले हफ्ते से आग लगी है। बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
उत्तराखंड के जंगलों में अप्रैल के पहले हफ्ते से आग लगी है। बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार, 8 मई को सुनवाई हुई। राज्य सरकार ने कोर्ट में अंतरिम स्टेटस रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश की। उत्तराखंड सरकार ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच को बताया कि नवंबर 2023 से अब तक जंगलों में आग लगने की 398 घटनाएं हो चुकी हैं। हर बार ये आग इंसानों ने लगाई गई।

सरकार के वकील उपमहाधिवक्ता जतिंदर कुमार सेठी ने बताया कि उत्तराखंड के जंगलों का सिर्फ 0.1% हिस्से में ही आग चपेट में है। इस मामले में अब 15 मई को सुनवाई होगी।

उत्तराखंड में अप्रैल के पहले हफ्ते से लगी आग से अब तक 11 जिले प्रभावित हुए हैं। जंगलों की आग में झुलसने से 5 लोगों की मौत हो चुकी है और चार लोग गंभीर रूप से घायल है। आग से 1316 हेक्टेयर जंगल जल चुका है।


कोर्ट रूम LIVE: सरकार ने बताया- 350 आपराधिक केस दर्ज किए गए हैं, जिनमें 62 लोगों के नाम

सरकार के वकील सेठी: आग के मामले में 350 आपराधिक केस दर्ज किए गए हैं, जिनमें 62 लोगों के नाम हैं। लोगों का कहना है कि उत्तराखंड का 40% हिस्सा आग की चपेट में है, जबकि पहाड़ी इलाके में सिर्फ 0.1% हिस्से में ही आग है।

याचिकाकर्ता और एन्वायर्नमेंटलिस्ट एडवोकेट राजीव दत्ता: मैंने इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को भी अप्रोच किया था। NGT ने दो साल पहले उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिए थे, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया।

जतिंदर सेठी: उत्तराखंड के जंगलों में आग लगना कोई नई बात नहीं है। हमारा वन विभाग हर गर्मी में इसका सामना करता है। हम इसके लिए लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म प्लान बनाते हैं और इसे फॉलो करते हैं। एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर भी आग बुझाने में लगे हैं।
एडवोकेट राजीव दत्ता: राज्य सरकार जितना बता रही है, समस्या उससे कहीं ज्यादा गंभीर है।

जस्टिस बीआर गवई: आपको (राज्य सरकार) मामले में सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी को भी शामिल करना चाहिए।
बहस के दौरान एडवोकेट राजीव दत्ता ने अमेरिकी सिंगर बिली जोएल के एलबम Storm Front से 1989 का हिट गाना सुनाया। इस पर जस्टिस संदीप मेहता ने जस्टिन टिंबरलेक के 2006 के एलबम FutureSex/LoveSounds से गाना सुनाया।

कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और याचिकाकर्ताओं से कहा कि मामले की रिपोर्ट सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) से शेयर करें और उनसे ओपिनियन लें।

उत्तराखंड की जंगल आग पर SC बोला- जल्द उपाय करें:बारिश या क्लाउड सीडिंग के भरोसे नहीं रहें; सरकार बोली- 0.1% एरिया ही प्रभावित

उत्तराखंड के जंगलों में अप्रैल के पहले हफ्ते से आग लगी है। बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
उत्तराखंड के जंगलों में अप्रैल के पहले हफ्ते से आग लगी है। बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया जा रहा है।
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड सरकार से कहा कि बारिश या कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) के भरोसे नहीं बैठा जा सकता। इसकी जल्द रोकथाम के उपाय करें।

आग लगने की वजह

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, उत्तराखंड में 15 फरवरी से 15 जून यानी 4 महीने फायर सीजन होता है। मतलब फरवरी के मध्य से जंगलों में आग लगने की घटनाएं शुरू हो जाती हैं, जो अप्रैल में तेजी से बढ़ती हैं। बारिश शुरू होते ही ये 15 जून तक धीरे-धीरे खत्म हो जाती हैं।

कुछ स्थानों पर आग लगने का कारण सर्दियों के मौसम में कम बारिश और बर्फबारी होना है। जंगलों में पर्याप्त नमी नहीं होने से गर्मियों में आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। कम नमी की वजह से पेरूल के पत्तों में ज्यादा आग लगती है। पहाड़ों से पत्थर गिरने की वजह से भी आग की घटनाएं बढ़ती हैं।

कुछ जगहों पर इंसान द्वारा भी आगजनी की घटनाएं होती हैं। जंगलों में हरी घास उगाने के लिए स्थानीय लोग भी आग की घटनाओं को अंजाम देते हैं। इन पर वन विभाग नजर रखता है।

सरकार केउपाय

एयरफोर्स के MI-17 हेलिकॉप्टर नैनीताल के भीमताल से पानी लेकर आग बुझा रहे।
एयरफोर्स के MI-17 हेलिकॉप्टर नैनीताल के भीमताल से पानी लेकर आग बुझा रहे।

आग लगने पर क्या एक्शन लिया गया

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने काम में लापरवाही बरतने पर अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
आग लगाने के मामलों में 383 केस दर्ज किए हैं। इसमें 315 अज्ञात लोगों के खिलाफ, जबकि 59 मामले नामजद दर्ज किए गए हैं।
बार-बार इस आग की घटनाओं में लिप्त पाए जाने पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी। खेतों में फसल कटाई के बाद पराली जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।
शहरी क्षेत्र में वनों के आसपास कूड़े के ढेर में आग लगाने पर भी पूर्ण रोक लगाई गई है।
प्रदेशभर में आग की घटनाओं को रोकने के लिए 1438 फायर क्रूज स्टेशन बनाए गए हैं, जिसमें तकरीबन 4000 फायर ब्रिगेड को तैनात किया गया है।

आग बुझाने के लिए क्या किया जा रहा

प्रदेशभर में 3700 कर्मचारियों को आग बुझाने के लिए लगाया गया है। 4 महीने के फायर सीजन में वन मित्रों की तैनाती होती है।
इसके अलावा पीआरडी, होमगार्ड, पीएससी, युवा और महिला मंगल दलों के साथ-साथ स्थानीय लोगों की मदद ली जा रही है।
आग बुझाने के लिए मुख्य रूप से झाप (हरे पत्तों की लकड़ी) लोहे और स्टील के झांपा इस्तेमाल किए जाते हैं।

क्या है क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग एक आर्टिफिशियल बारिश कराने का एक तरीका है। इसमें विमान से सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस को साधारण नमक के साथ बादलों पर छोड़ा जाता है। एक तरह से ये बादल में बीज डालने जैसा है। ये कण हवा से नमी को सोखते हैं और कंडेंस होकर इसकी मात्रा (द्रव्यमान) को बढ़ा देते हैं। इसके बाद बादलों से बारिश की मोटी बूंदे बनती हैं और बरसने लगती हैं।

क्लाउड सीडिंग किसी भी मौसम में नहीं होती। यानी तेज धूप हो और बादल ना हों तो ऐसे में कोई क्लाउड सीडिंग मुमकिन नहीं है। इसके लिए आसमान में कम से कम 40% बादल होने जरूरी हैं, जिनमें थोड़ा बहुत पानी भी हो।
(साभार-भास्कर)

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