1903 में बने ऐतिहासिक कर्जन मार्ग को पर्यटन मानचित्र में जगह नहीं
अस्कोट-आराकोट अभियान अस्थाई रिपोर्ट की अंतिम किस्त
पाणा का जूनियर हाईस्कूल ने पेश किया आदर्श उदाहरण
विस्थापन से जूझ रहे इलाके में ढाक तपोवन योजना को लेकर कोई रोष नहीं
..गतांक से आगे
अविकल उत्तराखंड
कनोल गांव में शिक्षक होशियार सिंह बिष्ट और ग्राम विकास अधिकारी हुकुम सिंह बिष्ट ने बताया कि, गाँव में लाटू के साथ गोल्ज्यू का भी मंदिर है. गोल्ज्यू के कुमाऊं से यहाँ पहुँचने की रोचक कहानी उन्होंने बताई.
उन्होंने बताया कि 30 साल पहले तक कुमाऊं के साथ उनके इलाके का जीवंत व्यापार होता था। एक बार बागेश्वर के बैजनाथ के पास चरवाहों की भेड़ें गायब हो गयीं. चरवाहे न्याय देवता गोल्ज्यू के पास पहुंचे और गुहार लगाई। बाद में उनकी भेड़ें वापस दल के साथ आ जुड़ी और उनके साथ एक भैस भी थीं. यह भैस बाद में कनोल पहुंची. तभी से यहाँ गोल्ज्यू का मंदिर है.
बच्चों में गैर बराबरी और छूआछुत का तनाव इस इलाके में देखा जा सकता है। समूची घाटी जंगल की आग के कारण दमघोंटू धुएं से अटी पड़ी है। प्राणमति गाँव में पिछले कुछ दिनों से देवदार और सुरई के जंगल धधकते दिखे हैं।
कर्ज़न मार्ग का सुदर गाँव झिंझी आज भी सड़क, अस्पताल, स्कूल की बाट जोह रहा है और मोबाइल नेटवर्क से यह इलाका वंचित है। दीवान सिंह दिल्लर गांव की व्यथा सुनाते हुए कहते हैं कि आज तक इस गांव का सड़क से न जुड़ पाना हमारे लिए अभिशाप है। झिंझी को जोड़ने वाले पुल का 90 प्रतिशत भुगतान हो चुकने के बाद भी पुल का 10 प्रतिशत कार्य न होना उनके लिए आश्चर्य से कम नहीं है।
समूची यात्रा में पाणा गाँव में जूनियर हाई स्कूल ने एक आदर्श प्रस्तुत किया है। बीस साल से पाणा जूनियर हाई स्कूल में पढ़ा रहे शिक्षक मोहन सक्सेना और उनके सहयोगी ने अपने सौंदर्यबोध से स्कूल को बेहद सुंदर और आकर्षक बनाया है। सारा परिसर गुलाब की अनेक प्रजातियों और सुनियोजित बागवानी से जीवंत बनाया गया है। इन अध्यापकों के समर्पण से ग्रामीणों में भी अध्यापकों के प्रति सम्मान का भाव बना हुआ है। यदि शिक्षक समर्पित हो तो तस्वीर बदली जा सकती है। पाणा का जूनियर हाईस्कूल राज्य के अनेक शिक्षण संस्थाओं के लिए आदर्श उदाहरण हो सकता है।
करछी, रैणी और क्वासा आदि गांवों के लोग विस्थापन का इंतज़ार कर रहे हैं। भविष्यबद्री गाँव में पुनर्वास की योजना योजना बनाकर दोनों गाँवों को भिड़ा दिया है। रैनी गाँव एक ढालदार चट्टान पर अटका है और इसके एक तरफ से भूस्खलन शुरू हो चुका है। ग्रामीणों ने बताया की बारिश के दिनों में लोग सारी रात जागते रहते हैं। यहाँ लोगों में ढाक तपोवन योजना को लेकर कोई रोष नहीं दिखा । लोग परियोजना के खिलाफ नहीं बोले। इसी दिन यहाँ एक विद्युत परियोजना में काम कर रहे युवक का शव आया था । तपोवन में उसका शवदाह हो रहा था, शोक में तपोवन बाजार बंद था । लेकिन, कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं था।
तपोवन और रैणी दोनों जल विद्युत् परियोजना से प्रभावित क्षेत्र हैं लेकिन सरकार न दोनों जगह अलग-अलग मुआवजा राशि तय की है। जोशीमठ से आए सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती ने बताया कि जोशीमठ ब्लॉक के 33 गाँव ऐसे हैं जिनका विस्थापन होना है। क्वासा गाँव में कुछ दलित परिवार भी हैं। वह भी आर्थिक और शैक्षणिक रूप से गांव के अन्य लोगों की तरह हैं। लेकिन सामाजिक दूरियां ख़त्म नहीं हुई हैं।
अनेक इलाकों में गैर बराबरी और छूआछुत का तनाव देखा जा सकता है। भू-धंसाव से आक्रांत जोशीमठ में जगह जगह घरों पर क्रास के लाल निशान देखे जा सकते हैं । स्थानीय लोगों के मुताबिक सरकार ने पुनर्वास का मुद्दा उलझा और लटका दिया है । तीर्थयात्रा मार्ग में स्थित जोशीमठ नगर लोगों की आजीविका का भी साधन है, ऐसे में इसे छोड़ने का निर्णय करना भी भूस्खलन प्रभावित परिवारों के लिए आसान फैसला नहीं है। लोग एक अनिश्चय की धार पर लटके हुए हैं।
पर्यटन को लेकर सरकारी समझ और रवैये के कारण एक नया परिदृश्य यात्रा मार्ग पर दिखा। 1903 में बने कर्जन मार्ग को ऐतिहासिक पर्यटन मार्ग के तौर पर न तो पर्यटन मानचित्र में प्रचारित किया जा सका है, और न ही इस 123 साल पुराने सुंदरतम मार्ग का रखरखाव किया जा रहा है। 1903 में बने झूला पुल जिसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए था, तोड़ कर नए पुल को निर्मित किए जाने निर्णय हमारी सामूहिक चेतना और निर्माण संस्थाओं की समझ पर प्रश्न चिन्ह पैदा करता है। अनेक गांवों के लिए पर्यटन आधारित रोजगार की संभावनाएं लिया यह मार्ग पूरी तरह उपेक्षित है। यही स्थिति मातोली बुग्याल, क्वारी पास, पवांलीकांठा समेत अन्य बुग्यालों की है।
अधिकांश घाटियां जंगल की आग के कारण दमघोटू धुए से अटी पड़ी है। प्राणमति गाँव में पिछले तीन दिनों में देवदार और सुरई के जंगल धधधते दिखे हैं।
कर्जन मार्ग का सुदर गाँव झिंझी आज भी मोबाइल नेटवर्क से वंचित है और सड़क, अस्पताल के साथ साथ एक जूनियर हाईस्कूल की बाट जोह रहा है। तीन घंटे की चड़ाई चढ़कर इरानी गाँव के स्कूल से पढ़ाई करना स्थानीय युवाओं के लिए बड़ी चुनोती है। झिंझी में जूनियर हाई स्कूल की जबरदस्त मांग है। दीवान सिंह दिल्लर गाँव की व्यथा सुनाते हुए कहते हैं, आज तक इस गाँव का सड़क से न जुड़ पाना हमारे लिए अभिशाप है।
समूची यात्रा में पाना गाँव में जूनियर हाई स्कूल ने एक आदर्श प्रस्तुत किया है बीस साल से पाना में पढ़ा रहे शिक्षक मोहन सक्सेना और उनके सहयोगी ने अपने सौंदर्यबोध से स्कूल को बेहद सुंदर और आकर्षक बनाया है। सारा परिसर
गुलाब की अनेक प्रजातियों और सुनियोजित बागवानी से जीवंत बनाया है। इन अध्यापकों के समर्पण से ग्रामीणों में भी सम्मान बना है। पाणा का जूनियर हाई स्कूल राज्य के अनेक शिक्षण संस्थाओं के लिए आदर्श उदाहरण हो सकता है
यदि शिक्षक समर्पित हो तो तस्वीर बदली जा सकती है। गोपेश्वर से अभियान के दूसरे चरण में तीर्थाटन, अनियोजित प्रबंधन और प्रदूषण का विकृत रूप देखने को मिला। केदार घाटी गंदगी और प्लास्टिक से पटी पड़ी थीं। नदी नालियां बदबू से बजबजा रही थीं। पवित्र कहलाई जाने वाली नदियों में कूड़ा प्लास्टिक और घोड़े की लीद का सीधे निस्तारण किया जाना दुखद दृश्य रहा है।
यहाँ संचालित की जा रही हेलीकॉप्टर सेवा ने एक नई चुनौती खड़ी की है। ईधन के जलने से निकल रही जहरीली गैस और ध्वनि से उत्पन्न हो रही कंपन संवेदनशील हिमालयी पारिस्थितिकी के असंतुलन के लिए जहां एक ओर घातक कारक बन सकती है वहीं स्थानीय समाज को ध्वनि से होने वाले मानसिक तनाव की ओर भी धकेल सकती हैं।
स्थानीय लोगों का मानना है कि बड़ी संख्या में उड़ रहे हेलीकॉप्टर की आवाज कक्षा में बैठे विद्यार्थियों के लिए एक नया व्यवधान बन रहे हैं। यही नहीं इस आवाज से चौंक कर कई वन्य जीवों के चट्टानों से गिर कर मरने के मामले सामने आए हैं।
सड़कों के जाल गांवों नजदीकी कस्बों से जोड़ तो रहे हैं लेकिन अवैज्ञानिक तरीके के किए जा निर्माण ने जगह-जगह भू स्खलन को बढ़ाया है साथ ही नदियों में फेंके जा मलबे ने नदियों ने विनाशकारी बाढ़ की स्थितियां पैदा की हैं। अधिकांश नदी-घाटियों में पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ से हुई हानि के अवशेष जहां-तहां देखे जा सकते हैं। अनेक जगहों पर नदी के बहाव क्षेत्र में गैर कानूनी हस्तक्षेप और अतिक्रमण भविष्य में नई चुनोतिया पैदा कर सकता है।
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