केदारनाथ उपचुनाव- जीत-हार की जिम्मेदारी किन किन भाजपा क्षत्रप के बीच बंटेगी ?

प्रदेश अध्यक्ष पद से महेंद्र भट्ट की विदाई से पहले केदारनाथ उपचुनाव परिणाम पर टिकी निगाहें

सीएम,सांसद व संगठन अध्यक्ष की उपचुनाव में केंद्रीय भूमिका

अविकल थपलियाल

रुद्रप्रयाग। नामांकन के बाद केदारनाथ उपचुनाव को लेकर भाजपा में विशेष हलचल देखी जा रही है। कांग्रेस के आक्रामक रुख को देखते हुए भाजपा  क्षत्रपों की रणनीति व अन्य सवालों का बाजार गर्म है।

मंगलौर व बदरीनाथ उपचुनाव की हार के बाद केदारनाथ उपचुनाव की जीत- हार के कारकों को लेकर पार्टी के अंदर अभी से ही सियासत तेज हो गयी है।

एक अहम सवाल यह भी उठ रहा है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट अपनी मूल  विधानसभा बदरीनाथ की हार का ‘दाग’  केदारनाथ में धो पाएंगे? प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई से पहले क्या महेंद्र भट्ट जीत के हार के साथ संगठन की कुर्सी छोड़ेंगे। राज्यसभा सांसद बनने के बाद उत्तराखण्ड भाजपा को अब नया अध्यक्ष भी चुनना है।

भाजपा के गलियारों में ऐसे राजनीतिक सवाल अहम तौर पर सुना और गुना जा रहा है। केदारनाथ उपचुनाव में मुख्य तौर पर  सीएम, गढ़वाल सांसद,प्रभारी मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को एक नयी अग्नि परीक्षा से गुजरना है ।

हालांकि, जुलाईं महीने में बदरीनाथ उपचुनाव में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए राजेन्द्र भंडारी की हार के पीछे कई कारण गिनाए गए। भाजपा कैडर बाहरी भंडारी के भाजपा में आने से पहले ही जला भुना बैठा था। बदरीनाथ सीट पर महेंद्र भट्ट भाजपा से और राजेंद्र भण्डारी कांग्रेस के टिकट पर एक दूसरे के खिलाफ कई बार चुनावी जंग में उलझ चुके थे।

लेकिन लोकसभा चुनाव के समय भाजपा के गढ़वाल प्रत्याशी अनिल बलूनी ने रातों रात कांग्रेसी विधायक राजेन्द्र भंडारी को भाजपा में शामिल करवा करवा दिया था। इस दल बदल की भाजपा के बड़े नेताओं को ऐन वक्त पर ही पता चला था।बाद में भंडारी को दल बदल करने पर कांग्रेसी विधायकी से इस्तीफा देना पड़ा था।

भंडारी के कांग्रेस में शामिल होने से चमोली भाजपा में अंदरखाने चिंगारी सुलग उठी थी। इसी चिंगारी ने बदरीनाथ विधानसभा उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा प्रत्याशी राजेन्द्र भंडारी को झुलसा दिया था। और कांग्रेस के लखपत बुटोला पांच हजार मतों से चुनाव जीत गए । जबकि तीन महीने पूर्व हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बदरीनाथ विधानसभा से ठीक ठाक लीड लेकर कुल डेढ़ लाख मतों से पौड़ी लोकसभा का चुनाव जीते थे।

चूंकि, अनिल बलूनी के व्यक्तिगत प्रयास से भण्डारी रातों रात भाजपा में शामिल हुए थे। लिहाजा भण्डारी की हार का एक बड़ा हिस्सा नये नये बने गढ़वाल सांसद के खाते में भी जोड़ा गया।
बदरीनाथ व मंगलौर उपचुनाव की हार व लोकसभा चुनाव के दौरान अन्य दलीय नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा के अचकचाए नेता व कार्यकर्ताओं ने पार्टी कैडर को तवज्जो देने की मांग को जोर शोर से उठाना शुरू कर दिया था।

बलूनी के सांसद बनने के बाद पौड़ी लोकसभा क्षेत्र के दूसरे उपचुनाव केदारनाथ की सरगर्मी जोरों पर है। केदारनाथ उपचुनाव में पार्टी ने अपने ही कैडर की पुरानी नेत्री व पूर्व विधायक आशा नौटियाल को ही चुना। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में आशा नौटियाल ने बागी तेवर अपनाते हुए कांग्रेस से भाजपा में आयी शैलारानी रावत के खिलाफ चुनाव लड़कर कांग्रेस प्रत्याशी मनोज रावत की जीत की पटकथा लिख दी थी ।

अब 2024 के केदारनाथ उपचुनाव में पार्टी ने शैलारानी रावत के निधन के बाद उनकी पुत्री ऐश्वर्या को टिकट देने के बजाय आशा नौटियाल पर भरोसा किया।

प्रसिद्ध धार्मिक स्थल अयोध्या व बदरीनाथ सीट पर हार के बाद भाजपा प्रतिष्ठा से जुड़ी केदारनाथ सीट पर जीत की कोशिशों में जुटी है। बीते दिनों सीएम धामी कई विकास घोषणाएं करने के बाद कह चुके हैं कि जब तक केदारनाथ से नया विधायक नहीं चुन लिया जाता तब तक उन्हें ही अपना विधायक मानें।

बहरहाल, केदारनाथ उपचुनाव में सीधा मुकाबला कांग्रेस के मनोज रावत व भाजपा की आशा नौटियाल के बीच है। कांग्रेस कई मुद्दों को लेकर विशेष तौर पर हमलावर है। भाजपा टिकट के अन्य दावेदार ऐश्वर्या व कुलदीप की भूमिका की चुनाव परिणाम में अहम भूमिका रहेगी। 20 नवंबर को मतदान है।

बदरीनाथ की हार के बाद केदारनाथ उपचुनाव की जीत -हार की जिम्मेदारी सीएम धामी, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट व नये सांसद अनिल बलूनी के खातों में जोड़ी जाएगी या फिर किसी एक को बलि का बकरा बनाया जाएगा। फिलहाल,देखना यह है कि प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट की निकट भविष्य में होने वाली विदाई खुशनुमा अंदाज में होती है या फिर गम के साये में….

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