स्मृति शेष- श्याम बेनेगल
नागेन्द्र
अविकल उत्तराखंड
वह कालेज के दिन थे जब लखनऊ के बसंत सिनेमा हाल में एक फिल्म लगी थी ‘अंकुर’। चमकीले कागज पर अत्यंत कलात्मक अंदाज में एक पोस्टर, नहीं ब्रोश्यर ज़ारी हुआ था और हमारे हाथ तक पहुंचा था। वह लखनऊ में रंगमंच का उत्कर्ष काल था और मेफ़ेयर सिनेमा हाल ने अपनी बेहतरीन फ़िल्मों के प्रदर्शन से एक अलग ही दर्शक वर्ग तैयार कर दिया था।
‘ब्लेज फ़िल्मस’ का वह ब्रोश्यर अपने आप में हर उस इंसान को खींचने के लिए पर्याप्त था, जिसकी रंगमंच की दुनिया या ऐसी कलात्मक फ़िल्मों में तनिक भी रुचि थी। और इस तरह ‘अंकुर’ हमारे सचेतन जीवन की शुरुआती कुछ फ़िल्मों में जुड़ गई थी जो हमने कालेज कट करके देखीं थीं।
‘अंकुर’ की पूरी कहानी ने जो भी असर छोड़ा हो, उसका अंतिम दृश्य आज भी दिल-दिमाग़ पर ताजा है। वही दृश्य जहां ज़मींदार का क्रूर बेटा एक मूक बधिर किसान (साधु मेहर) को चाबुक की बेतहाशा मार से अधमरा कर देता है और शायद उसी के आक्रोश में एक छोटा बच्चा उस ज़मींदार के घर की कांच की खिड़की को निशाना बनाकर एक पत्थर दे मारता है। प्रतिरोध में उठा यह पत्थर बाद में हिन्दी सिनेमा में बदलाव का ऐसा निर्णायक पत्थर बन जाता है कि यह न सिर्फ़ सिनेमा बल्कि पूरे कला जगत में बदलाव का एक प्रतीक बनकर उभरता है। यह हिन्दी सिनेमा में नए तेवर की शुरुआत में पहला नहीं भी, तो एक नया मील का पत्थर तो बन ही गया था। ‘अंकुर’ का वह पत्थर और यह फ़िल्म युवा पीढ़ी के बीच एक कल्ट बनकर उभरी थी।
‘अंकुर’ श्याम बेनेगल की पहली फ़िल्म थी। उनकी अगली फ़िल्म ‘निशांत’ इसी ‘अंकुर’ के अंकुरण की अगली कड़ी थी। बड़ी कलात्मक सूझबूझ के साथ जब निशांत का पहला दृश्य पर्दे पर आया, वह वही दृश्य था, जब ज़मींदार की खिड़की का शीशा चटाक से टूटा था।
फ़िल्म वहीं से आगे बढ़ी थी, जहां अंकुर खत्म हुई थी। आनायास नहीं है कि समांतर सिनेमा के नाम से शुरू हुए उस नए दौर की इन फ़िल्मों का आज भी जब नाम लिया जाता है इसे बदलाव का सिनेमा, हिन्दी सिनेमा में क्रांतिकारी दौर की शुरुआत जैसे नामों से याद किया जाता है। अंकुर और निशांत दोनों ही फिल्में बेनेगल की शुरुआती फिल्म होने के अलावा शबाना आज़मी, साधु मेहर और अनंत नाग के यादगार अभिनय के लिए भी याद की जाती हैं। संयोग से ये तीनों ही तब सिनेमा और कैमरे के लिए नए थे और बतौर निर्देशक श्याम बेनेगल की भी यह शुरुआत थी। आनायास नहीं था कि इन फ़िल्मों की तुलना दो बीघा ज़मीन (बिमल राय) और पथेर पांचाली (सत्यजीत रे) से की जाने लगी थी, या कहें कि इन फ़िल्मों ने उनकी तासीर को ताजा कर दिया था।
आज जब श्याम बेनेगल के निधन की खबर अचानक फ़्लैश हुई तो उनकी फ़िल्मों से लेकर प्रतिरोध के विभिन्न चरणों में उनकी मौजूदगी, उनके सार्थक हस्तक्षेप, उनकी जिजीविषा से लेकर भारत एक खोज जैसा सर्वकालिक महत्व का टेलीविज़न धारावाहिक जेहन में कौंध रहा है। कौंध रहा है 90वें जन्मदिन की पार्टी पर उनका मुस्कराता चेहरा जिस पर बीमारी के कोई निशान दर्ज नहीं हैं। जन्मदिन की इस पार्टी के वीडियो में उनके साथ चर्चित अभिनेता कूलभूषण खरबंदा, नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, रजित कपूर, अतुल तिवारी, दिव्या दत्ता, कुणाल कपूर आदि दिख रहे हैं।
जन्मदिन मनाने के नौ दिन बाद नब्बे वर्ष की आयु में इस जीनियस फ़िल्मकार ने हम सबको अलविदा कह दिया। अभी की मीडिया रिपोर्ट बता रही हैं कि श्याम दो दिन पूर्व अपने घर पर गिर गए थे, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया। कहने को तो वह किडनी की बीमारी से भी ग्रस्त थे लेकिन किसी मुंबइया फिल्मी दोस्त का ठीक ही कहना है कि साठ के बाद किडनी की बीमारी कोई बीमारी नहीं, बीमारी का एक ज़रूरी दिखता पड़ाव सरीखा होता है अगर वह गम्भीर न हो। और बेनेगल को ऐसी कोई गम्भीर बीमारी नहीं थी। वह उम्र के सापेक्ष स्वस्थ और सक्रिय थे, लेकिन गिरने के कारण शायद अंतिम दो दिन कोमा में रहे और सोमवार 23 दिसंबर को शाम 6:30 आंखें मूंद लीं।
श्याम बेनेगल का जन्म 1934 में सिकंदराबाद में हुआ था। कॉपीराइटर के तौर पर करियर की शुरुआत की और फिर अपनी प्रतिबद्धता और अपने अलग दिखने वाले काम से बहुत जल्द ही उन्होंने हिन्दी सिनेमा में ऐसा मुकाम हासिल कर लिया कि न सिर्फ़ खुद अलग दिखे, हिन्दी सिनेमा में एक नये दौर की शुरुआत करते हुए खुद भी एकदम अलहदा खड़े दिखे। हिन्दी सिनेमा में शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, साधु मेहर, मोहन अगाशे, अनंत नाग, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी ही नहीं गोविंद निहलानी सरीखे ऐसे नाम उन्हीं की देन हैं जिनकी चर्चा करते हुए उनका नाम खुद ब खुद सामने आ जाता है। अभी तो मंडी, कलयुग, मम्मो, ज़ुबैदा, मेकिंग ऑफ़ महात्मा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ‘द फ़ॉरगाटेन हीरो’ जैसी फ़िल्मों के नाम याद आ रहे हैं जो बेनेगल ने हमें दीं।
श्याम बेनेगल का जाना महज एक फ़िल्मकार का जाना ही नहीं है, हिन्दी सिनेमा में बदलाव का एक दौर खड़ा करने वाले, सिनेमा ही नहीं बौद्धिक जगत और संघर्ष की जमात के बीच लम्बे समय तक मुखर प्रतिरोध की आवाज़ बनी रही आवाज़ का खमोश हो जाना भी है।
निर्देशक सुधीर मिश्रा ने श्याम बेनेगल के निधन के बाद X पर पोस्ट करते हुए उनके काम को इस तरह याद किया: “अगर श्याम बेनेगल ने एक बात सबसे अच्छी तरह व्यक्त की है तो वह है साधारण चेहरे और साधारण जीवन की कविता!” एक अन्य ट्वीट में लिखा, “ श्याम बेनेगल के बारे में बहुत कुछ लिखा जाएगा, लेकिन इस तथ्य के बारे में बहुत कम लोग बात करेंगे कि उनकी फिल्मों में एक विलाप था और इस तथ्य का दुख था कि हम सभी संभव दुनियाओं में से सबसे अच्छे में नहीं रह रहे थे।”
निर्देशक निर्माता शेखर कपूर ने ट्विटर पर श्याम बेनेगल की एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, “उन्होंने ‘नई लहर’ सिनेमा का निर्माण किया। श्याम बेनेगल को हमेशा ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा उन्होंने अंकुर, मंथन और अनगिनत अन्य फिल्मों के साथ भारतीय सिनेमा की दिशा बदल दी। उन्होंने शबाना आजमी और स्मिता पाटिल जैसे महान कलाकारों को स्टार बनाया। अलविदा मेरे दोस्त और मार्गदर्शक।”
कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर ने ट्वीट करते हुए लिखा, “भारत के न्यू वेव सिनेमा के दिग्गज श्याम बेनिगल के निधन पर शोक व्यक्त करता हूं, जिन्होंने अपने पीछे सिनेमाई उपलब्धियों का एक बड़ा भंडार छोड़ा है। मेरी बहनें और मैं उन्हें बचपन से जानते थे, जब वे एक विज्ञापन पेशेवर थे, जिन्होंने पहले ‘अमूल बेबीज’ के रूप में उनकी तस्वीरें खींची थीं। उनका प्रभाव हमेशा बना रहेगा, लेकिन उनका जाना सिनेमा और मानवता के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।”
ये हैं श्यान बेनेगल की बेस्ट फिल्में
श्याम बेनेगल ने हिंदी सिनेमा का कई सुपरहिट और बेहतरीन कहानियों वाली फिल्में जी हैं. इनमें से कई आज भी दर्शकों की फेवरेट हैं. नीचे देखिए लिस्ट में किस-किस का नाम शामिल हैं…
मंडी – श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित ये फिल्म साल 1983 में रिलीज हुई थी. जिसमें वेश्यालय की दुनिया को पर्दे पर उतारा गया था. फिल्म में शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकार नजर आए थे।
अंकुर – ये श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित पहली फीचर फिल्म थी. जो साल 1974 में रिलीज हुई थी. इसमें अनंत नाग और शबाना आज़मी नजर आए थे।
कलयुग – ये भी श्याम बेनेगल की बेहतरीन फिल्मों में से एक हैं. दिसमें राज बब्बर, रेखा और शशि कपूर जैसे दिग्गज कलाकार नजर आए थे।
मम्मो – श्याम बेनेगल की ये फिल्म साल 1994 में आई थी. जिसकी खूब चर्चा हुई थी. फिल्म में इसमें फरीदा जलाल, सुरेखा सीकरी, अमित फाल्के और रजित कपूर थे।
इनके अलावा श्याम बेनेगल की बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट में ‘जुबैदा’, ‘द मेकिंग ऑफ द महात्मा’, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोसः द फॉरगोटन हीरो’ जैसी फिल्मों का भी नाम शामिल है।
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