एक बेहद ही दुःखद समाचार मिला। सारा आकाश, रजनीगंधा, छोटी सी बात, प्रियतमा, चित्त चोर, खट्टा-मीठा, प्रियतमा, प्रेम विवाह, एक रुका हुआ फ़ैसला आदि अनेक यादगार फिल्मों का निर्देशन करने वाले बसु चटर्जी का निधन हो गया। वो 93 बरस के थे। 2003 में मेरी उनसे खातों-ख़िताबत हुई थी। वो दूर दर्शन के लिए उनकी नज़र में 26 सर्वश्रेष्ठ कहानियों पर एक धारावाहिक बना रहे थे। उनमें उर्दू की दुनिया से मेरे पिता, जनाब रामलाल, की कहानी ‘ओसी’ (ऑफ़िसर कोच) भी थी। इसे फिल्मांकन के लिए मेरी परमीशन चाहिए थी, जो मैंने सहर्ष दे दी।
बसु की ‘पिया का घर’ मेरी पंसंदीदा फिल्म रही है। इस पर मेरा एक विस्तृत लेख भी है। वो फिर कभी। फिलहाल बसु की याद में इसी फ़िल्म का एक दृश्य पुनः प्रस्तुत है।
घर में नई बहु आयी है
– वीर विनोद छाबड़ा
जिसने भी किसी को फट्टे वाला कच्चा पहन टहलते हुए देखा है तो उसे ‘पिया का घर’ का वो दृश्य ज़रूर याद होगा। नहीं याद आया तो मैं याद दिलाता हूँ। फिल्म का मध्य हिस्सा था वो।
सेवानिवृत गिरधारीलाल शर्मा (आगा) जी के चार मंज़िली चाल के उस एक बीएचके फ्लैट में उनके मित्रों की महफ़िल जमी है। मित्र कोई दूर के नहीं, पड़ोसी हैं, एक ऊपरी माले का तो दूसरा नीचे के माले का । एक टैक्सी ड्राइवर कन्हैया (मुकरी) है और दूजा दर्जी बाबू राव कुलकर्णी (केश्टो मुख़र्जी). ताश चल रही है, शायद रम्मी। साथ में चाय पे चाय चल रही है। बीच-बीच में पान भी चबाया जा रहा है। श्रीमती शर्मा (सुलोचना चैटर्जी) ख़ुशी ख़ुशी उनकी सेवा में लगी है।
शाम गहरी हो चुकी है। राम (अनिल धवन) परेशान है कि ये लोग यहां से हिलें तो घर की बत्तियां गुल हों ताकि वो एकांत में अपनी नवेली पत्नी मालती (जया भादुड़ी) से प्यार की दो बातें कर सके। अचानक कुलकर्णी कहता है, एक एक चाय और चलेगी। मगर कन्हैया आपत्ति करता है, नहीं, सिर्फ पानी। जब देखो चाय पीता रहता है। ये सुन कर वहीं बैठा राम और भी परेशान हो जाता है। वो मालती को सुनाने के लिए ज़ोर से कहता है, मालती कल सुबह ऑफिस जल्दी जाना है, मेरा नाश्ता तैयार रखना। रसोई में खड़ी मालती ये सुन कर वहां आती है। उस समय बहुत देर से पालथी मार कर बैठा कुलकर्णी खड़ा होकर अपनी टांगें झटक रहा होता है। उसने फट्टे वाला कच्छा धारण किया हुआ है।
ये दृश्य देखकर मालती का चेहरा शर्म से लाल हो जाता है, वो तुरंत लौट जाती है। सास श्रीमती शर्मा ये दृश्य देख लेती है। वो मालती के पीछे पीछे जाती हैं। उससे धीमे स्वर में कुछ पूछती हैं। मालती कुछ बताती है। इस पर श्रीमती शर्मा मुस्कुराती हैं। वो लौट कर शर्मा जी को आवाज़ देती हैं। हंसते हुए वो उनके कान में कुछ कहती हैं। शर्मा जी की भौंवें तन जाती हैं। वो कुलकर्णी को आदेश देते हैं, कुलकर्णी खड़े हो जाओ। कुलकर्णी सकपका कर खड़ा हो जाता है। शर्मा जी उसे करीब आने को कहते हैं। डरा-डरा सा कुलकर्णी आज्ञा का पालन करता है। उसकी टांगें भी तनिक कांप रही हैं। शर्मा जी साधिकार कहते हैं, कुलकर्णी हमारे घर में नई बहु आयी है। कल से पायजामा पहन कर आया करो। ये सुन सब हंस पड़ते हैं। कन्हैया बोल उठता है, ये सबके कपड़े काटता है, मगर अपने लिए एक पायजामा नहीं सिल सकता।
मुझे अच्छी तरह याद है, पूरी फिल्म के दौरान हाल में बैठे दर्शकों के चेहरों पर कभी भीनी-भीनी तो कभी चौड़ी मुस्कान फैलती रही, मगर इस दृश्य पर ठहाका लगा था। एक अच्छी नसीहत व्यंग्य की चाशनी में घोल कर पिलाना डायरेक्टर बसु चैटर्जी ही जानते थे।
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०४ जून २०२०
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