निकाय व पंचायती राज संस्थाओं ने 353.34 करोड़ के 119 उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीँ किये
बीस साल बाद भी उत्त्तराखण्ड-उत्तर प्रदेश के वित्तीय मामले अनसुलझे
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून।
भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की उत्तराखंड के वित्तीय स्थिति पर आज विधान सभा पटल पर जो रिपोर्ट रखी गई उससे एक बात यह साबित हुआ की 2016-17 में राज्य का राजस्व घाटा अपने न्यूनतम स्तर पर आया और यह 383 करोड रहा।
जबकि इससे पूर्व 2014 -15 में राजस्व घाटा 917 करोड था । 2015 -16 में यह बढ़कर 1852 करोड हो गया । यह बहुत खराब स्थिति बन गई थी। 2017-18 में भी राजस्व घाटा फिर बढ़कर 197 8 करोड़ हो गया। लेकिन 2018-19 में चालू वर्ष में थोड़ा सुधार हुआ और राजस्व घाटा 980 करोड़ तक रहा।
2016-17 जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे उस समय राजस्व घाटा अपने न्यूनतम स्तर 383 करोड़ पर था। इस रिपोर्ट में कई अन्य बातों का उल्लेख किया गया है जिसमें प्रदेश की पंचायती राज संस्थाएं के उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा नहीं करने का उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट में यह साफ लिखा है कि वित्तीय नियमावली में यह प्रावधान है कि विशेष प्रयोजन के लिए जो धनराशि दी गई है उसके लिए विभागीय अधिकारियों द्वारा उपयोगिता प्रमाण पत्र प्राप्त करना चाहिए और उसके सत्यापन के बाद ही बात की धनराशि स्वीकृत करनी चाहिए । लेकिन मार्च 2019 तक 353.34 करोड़ के अनुदान से संबंधित कुल 119 उपयोगिता प्रमाण पत्र नहीं दिए गए और न ही अधिकारियों ने उपयोगिता प्रमाण पत्र ही विभाग से जमा करवाये।
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि विभागीय अधिकारियों ने विशेष उद्देश्य के लिए मार्च 2018 तक जो 37.66 करोड़ का अनुदान दिया था उसके लिए 25 उपयोगिता प्रमाण पत्र मार्च 2019 तक महालेखाकार लेखा एवं हकदारी को प्रस्तुत नहीं किए गए । इन प्रमाणपत्रों की प्रस्तुत नहीं किए जाने पर यह पता नहीं चल पाया कि प्राप्तकर्ता ने उस धनराशि का सही उपयोग किया है कि नहीं।
रिपोर्ट में ताकीद किया गया कि यह सरकार का दायित्व है कि वह अवमुक्त धनराशि के संबंध में विभाग द्वारा उपयोगिता प्रमाण पत्र पेश किए जाने को सुनिश्चित करें।
रिपोर्ट में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बीच 20 साल के बाद भी 8758.82 करोड़ की धनराशि के अभी तक विभाजन नही होने पर की गई टिप्पणी भी गौरतलब है।
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राज्य के वित्त पर यह रिपोर्ट उत्तराखंड के महालेखाकार (लेखा परीक्षा) ने 20 जुलाई 2020 को प्रस्तुत की। और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक राजीव महर्षि ने 27 जुलाई 2020 को इस प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर किए।
राज्य के वित्त पर लेखा परीक्षा के इस प्रतिवेदन को 31 मार्च 2019 के बजट व 14वें वित्त आयोग की सिफारिश व सरकार के वित्तीय प्रबंधन के आंकलन के बाद अंतिम रूप दिया गया। राज्य के वित्त से जुड़े सभी पहलुओं राजस्व घाटा,राजकोषीय घाटा, पेंशन आदि कई अन्य मामलों का समग्र विश्लेषण किया गया है।
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