प्राइवेट अस्पतालों की अनियमितता पर चार हफ्ते में केंद्र सरकार से मांगा जवाब
निजी अस्पतालों द्वारा कोरोना मरीजों के बिल प्रतिपूर्ति पर सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका पर सुनवायी शुरू
प्राइवेट अस्पतालों ने कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन कर मरीज के परिजनों से अधिक धनराशि वसूली
दून निवासी अभिनव थापर ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी जनहित याचिका
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून। कोरोना मरीजों से अत्यधिक बिल वसूली के रिफंड को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार व स्वास्थ्य मंत्रालय को चार हफ्ते के अंदर जवाब देने को कहा है।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ व न्यायाधीश श्रीमती बी वी नागरथना वाली संयुक्त पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवायी करते हुए केंद्र सरकार को जवाब देने को कहा।
अधिवक्ता दीपक कुमार शर्मा व कृष्ण बल्लभ ठाकुर ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की संयुक्त पीठ ने इस याचिका के ” प्राइवेट हॉस्पिटल के अत्याधिक बिल चार्ज करने की अनियमिताओं , मरीजों को रिफंड जारी करने व पूरे देश के लिये सुनिश्चित गाइडलाइंस जारी करने विषय मे स्वास्थ्य मंत्रालय, केंद्र सरकार सरकार को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।”
दून निवासी अभिनव थापर व अन्य ने कोरोना मरीजों से वसूले गए लाखों रुपए की वसूली को लेकर जुलाई माह में जनहित याचिका दायर की थी। कई अस्पतालों ने कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन कर मरीजों के परिजनों से अनाप शनाप रकम वसूली थी। इस मुद्दे पर सुनवायी के बाद अगर फैसला हक में आता है तो इससे करोड़ों लोगों को चुकाए गए बिल की प्रतिपूर्ति हो सकेगी।
गौरतलब है कि भारत में 3.38 करोड़ लोगों को कोरोनो हुआ जोकि पूरे विश्व मे चिंताजनक पहले स्थान पर है। कोरोना से लोगो को जान-माल हानि के साथ-साथ आर्थिक मार भी झेलनी पड़ी है ।
कोरोनकाल में केंद्र सरकार ने जून 2020 में ” प्राइवेट हस्पतालों के कोरोना मरीजों हेतु चार्ज सुनिश्चित किया गया था ” , किन्तु फिर भी कई राज्यो के मरीजों से लाखों रुपये के बिल वसूले गये। लिहाजा,कोरोना मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों द्वारा ” अत्यधिक ख़र्च की प्रतिपूर्ति – आमजन को प्राइवेट अस्पतालों से पैसे वापसी” के लिये देहरादून, उत्तराखंड निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में कहा कि पूरे देश में प्राइवेट अस्पतालों के लिये जून 2020 में गाइडलाइंस जारी कर ” प्राइवेट अस्पतालों के कोरोना मरीजों हेतु चार्ज सुनिश्चित किया गया था ।” समय-समय पर केंद्र और लगभग सभी राज्यों द्वारा “कोरोना मरीजों के एक-समान दरों की गाइडलाइंस ” जारी की गई थी । कोरोना शुरू होने से अबतक लगभग 1 करोड़ लोगों को कोरोनो के कारण मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ा और अधिकतर लोगों को ” गाइडलाइंस से अधिक बिल” की मार झेलनी पड़ी ।
उल्लेखनीय है कि ” गाइडलाइंस में कोरोना मरीजों के लिए प्राइवेट अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड- 8-10 हजार रुपये, आई०सी०यू०- 13-15 हजार रुपये व वेंटिलेटर बेड- 18 हजार रुपये शुल्क निर्धारित था। इसमें PPE किट, दवाइयां, बेड, जाँच इत्यादि सब ख़र्चे शामिल थे ” किन्तु फिर भी कई राज्यों के मरीजों से लाखों रुपये के बिल वसूले गये।
अतः इन सबके दृष्टिगत देश में कोरोना मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों द्वारा ” अत्यधिक ख़र्च की प्रतिपूर्ति – आमजन को प्राइवेट अस्पतालों से पैसे वापसी” के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई थी। जिससे भारत के लगभग 1 करोड़ कोरोनो-पीड़ित परिवारों को न्याय मिल सके।
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